कवि और वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र राजन ने अभी-अभी एक कविता भेजी है. विनायक सेन को अदालती सजा ने हम-आप जैसे लोगों के मन में अनेक सवाल पैदा कर दिए हैं. कविता उनको वाणी देती है और उनके संघर्ष को सलाम करती है-जानकी पुल.
जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थे
वे गुलछर्रे उड़ा रहे थे
जब तुम मरीज की नब्ज टटोल रहे थे
वे तिजोरियां खोल रहे थे
जब तुम गरीब आदमी को ढाढस बंधा रहे थे
वे गरीबों को उजाड़ने की
नई योजनाएं बना रहे थे
जब तुम जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहे थे
वे संविधान में सेंध लगा रहे थे
वे देशभक्त हैं
क्योंकि वे व्यवस्था के हथियारों से लैस हैं
और तुम देशद्रोही करार दिए गए.
जिन्होंने उन्नीस सौ चौरासी किया
और जिन्होंने उसे गुजरात में दोहराया
जिन्होंने भोपाल गैस कांड किया
और जो लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ाते रहे
उनका कुछ नहीं बिगड़ा
और तुम गुनहगार ठहरा दिए गए.
लेकिन उदास मत हो
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
तुम हो हमारे आंग सान सू की
हमारे लिउ श्याओबो
तुम्हारी जय हो।
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हम सब उनके साथ हैं!