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जीवन को छलता हुआ, जीवन से छला गया

आज मोहन राकेश का जन्मदिन है. हिंदी को कुछ बेजोड़ नाटक और अनेक यादगार कहानियां देने वाले मोहन राकेश ने यदा-कदा कुछ कविताएं भी लिखी थीं. उनको स्मरण करने के बहाने उन कविताओं का आज वाचन करते हैं- जानकी पुल.


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कुछ भी नहीं 
भाषा नहीं, शब्द नहीं, भाव नहीं,
कुछ भी नहीं.
मैं क्यों हूँ? मैं क्या हूँ?
जिज्ञासाएं डसती हैं बार-बार
कब तक, कब तक, कब तक इस तरह?
क्यों नहीं और किसी भी तरह?
आकारहीन, नामहीन,
कैसे सहूँ, कब तक सहूँ,
अपनी यह निरर्थकता?
जीवन को छलता हुआ, जीवन से छला गया.
कैसे जिऊँ, कब तक जिऊँ,
अनायास उगे कुकुरमुत्ते-सा
पहचान मेरी कोई भी नहीं आज तक.
लुढकता एक ढेले-सा
नीचे, नीचे और नीचे
मैं क्या हूँ? मैं क्यों हूँ?
भाषा नहीं,
शब्द नहीं,
भाव नहीं,
कुछ भी नहीं.
२.
उन्नीसवाँ सिगार
दिन का उन्नीसवाँ सिगार-
पी लिया.
अपने आत्मदाह में
फिर एक बार जी लिया.
३.
चाबुक
‘क्यों नहीं?’
यह बात
उस एक से ही नहीं,
हर एक से
एक-एक बार कही;
उत्तर के मौन की
विरक्त भाषा-एक-सी
अपनी अधूरी कामना
पीठ पर हर बार
उसी तरह… उसी तरह…
उसी तरह
सही.
४.
जो हमें नहीं मिला
आओ
हम जूझें!
मिटटी के
महामना को पूजें!
बूझें वह सब
जो हममें नहीं है,
जो हमें नहीं मिला,
उस सबसे सूझें!
५.
दिन ढले
दिन ढले, दिन ढले,
आशा के उज्ज्वल दीप जले.
पच्छिम में छिप रहा उजेला, छल-छल बहता पानी
इनके ऊपर मस्त हवा से सुन-सुन नई कहानी,
मुख में ले नन्हे-से तिनके-
कहाँ बसेरा नया बसाने, यह दो पंछी साथ चले?
दिन ढले, दिन ढले.
यह भी दिन, वह भी दिन होगा, जब हम जा मंझधार
ढलते सूरज की लाली में खो सारा संसार,
लहरों में पतवार छोड़कर…
उस घाटी में जा पहुंचेंगे, जिनमें सुन्दर स्वप्न पाले.
दिन ढले, दिन ढले.
(‘दिन ढले’ नामक फिल्म के लिए लिखा गया)

जयदेव तनेजा सम्पादित ‘एकत्र’ से साभार 
   
   
 
      

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7 comments

  1. mohan rakesh jee kee kavitayen padhwane ke liye dhanyawaad.

  2. धन्यवाद प्रभात जी ,कविताओं को पढते पढते ''अनीता ओलक'जी के संस्मरण याद आते रहे !कहीं कहीं ''आधे -अधूरे'' के कुछ द्रश्य भी !

  3. sunder rachnayein

  4. "अपने आत्मदाह में फिर एक बार जी लिया" बवाल है… क्या सटायर है…

  5. … jay hind !!

  6. भाषा नहीं, शब्द नहीं, भाव नहीं
    कुछ भी नहीं
    मैं क्यों हूं? मैं क्या हूं?
    जिज्ञासाएं डसती हैं बार बार
    कब तक…………
    कितनी गहरी और सूक्ष्म अनुभूति है..
    हिन्दी नाटकों के मसीहा श्रद्देय मोहन राकेश जी को जन्मदिन पर नमन! प्रभात जी आपका और जानकी पुल का आभार! हमारी साहित्यिक विभूतियों को इस तरह स्मरण करने और कराने के लिए

  7. kavitaaen achchee lagee.

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