प्रसिद्ध कवि सुशील सिद्धार्थ के दो जनगीत आज प्रस्तुत हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रहे, जन-लोकपाल के लिए हो रहे आंदोलन के सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ये गीत लिखे हैं- जानकी पुल.
१.
अन्नाजी की बात पर विचार होना चाहिए
अन्नाजी की बात पर विचार होना चाहिए
जन-लोकपाल अंगीकार होना चाहिए.
खेत-खलिहान का अजीब हालचाल है,
चारों ओर फैला परेशानियों का जाल है,
साजिशों का जाल तार-तार होना चाहिए,
जन-लोकपाल अंगीकार होना चाहिए.
रोटी है न कपड़ा मकान है न काम है,
डाकू बने राजा नेक आदमी गुलाम है,
ऐसे जालिमों से होशियार होना चाहिए,
जन-लोकपाल अंगीकार होना चाहिए.
हाथ में है हाथ साथ सच की मशाल है,
आँधियों में रौशनी बचाने का सवाल है,
एक-दूसरे पे ऐतबार होना चाहिए,
जन-लोकपाल अंगीकार होना चाहिए.
२.
उमड़-घुमड़ बरसे.
कोई नदियों पर काबिज
कोई बूँद-बूँद तरसे,
आजादी का बादल अब यकसां
उमड़-घुमड़ बरसे.
दो-चार घरों में सिमट गए
खुशहाली के सपने
गोरे डाकू तो चले गए
अब लूट रहे अपने
खुशियों के वारिस मारे फिरते
दर-दर बेघर से
आजादी का बादल अब यकसां
उमड़-घुमड़ बरसे.
अब जागो ऐसे दूर भगे
सदियों का अँधियारा
रूढियां हटें बेडियाँ कटें
टूटे दुःख की कारा
हर गाँव शहर अब गूँज उठे
जनगणमन के स्वर से
आजादी का बादल अब यकसां
उमड़-घुमड़ बरसे.
bhut acha kam h.ap ka acha lega ap se kasay mil sakta h.mai b kuch likhata hu ap agar us dekha to acha hoga ……………….nikhil