तेजेन्द्र शर्मा हिंदी ‘डायस्पोरा’ लेखन का सबसे जाना-पहचाना नाम है. इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने आप्रवासी हिंदी कहानी को एक नई ज़मीन दी, नई पहचान दी. हाल में ही उनका नया कहानी संग्रह आया है ‘कब्र का मुनाफा’. प्रस्तुत है उसी संग्रह से एक कहानी- जानकी पुल.
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जिल की निगाहें अपनी बेटी पर लगी हैं।
आज शुक्रवार है। घर की परम्परा यही है कि शुक्रवार की शाम एलिसन, उसका पति पीटर, पुत्र टॉम और पुत्री टीना चारों मां के घर आ जाते हैं और रात का भोजन वहीं करते हैं। जिल ने बेटी की शादी के वक़्त अपने दामाद के सामने यही शर्त रखी थी कि जब जब शुक्रवार की शाम एलिसन का परिवार लंदन में होगा, तो सभी लोग ममी पापा के साथ ही डिनर करेंगे।
डाइनिंग टेबल पर हल्के नीले रंग का मेज़पोश ; जिल ने चिकन हॉटपॉट बनाया है। साथ में ब्रॉकोली, गाजर, मटर की उबली हुई सब्ज़ी है। पीटर अपने साथ बोरदो व्हाइट वाइन मेन सैन्सैक रोज़ 2006 ले आया था जिसे आते ही फ़्रिज में सीधा लिटा कर रख दिया था। वही वाइन की बोतल इस वक़्त गिलासों में उंडेली जा रही है। जिल को दामाद की इस छोटी सी बात से ही अपार सुख मिल जाता है।
टैरेंस के सामने यह सिलसिला दो साल तक चला और फिर टैरेंस ही चल दिया। एलिसन जवान हो गई थी मगर अभी जिल बूढ़ी नहीं हुई थी। अकेलापन खाने को दौड़ता था। जिल चाहती थी कि हर शाम शुक्रवार की शाम हो जाए। एलिसन और उसका पति हर रोज़ उसके साथ ही खाना खाया करें। टॉम तो टैरेंस के सामने ही पैदा हो गया था। टीना के जन्म की साक्षी केवल जिल ही थी। पीटर भी अपने दफ़्तर के काम से स्कॉटलैण्ड गया हुआ था।
डाइनिंग टेबल के हेड पर कुर्सी आज भी खाली रखी जाती है। उस कुर्सी पर हमेशा टैरेंस बैठा करता था। जिल हमेशा ही अपने पति की दाईं ओर बैठा करती थी – आज भी वहीं बैठती है। उसने पीटर से कहा भी कि वह अब पापा की सीट पर बैठ जाया करे, मगर पीटर रस्मी चीज़ों से दूर ही रहता है। जिल हमेशा ही ख़ूबसूरत कपड़े से बने छोटे छोटे तौलिये बनाती है ताकि खाने के बाद उनसे हाथ पोंछे जा सकें। उन तौलियों पर स्वयं ख़ूबसूरत कढ़ाई करती है। फिर नीले रंग के चूड़ियों जैसे छल्लों मे उन्हें गोल करके रखती भी है। किन्तु पीटर के अतिरिक्त और कोई भी उनसे हाथ नहीं पोंछता। वे जैसे रखे जाते हैं ठीक वैसे ही उठा दिये जाते हैं। सभी लोग पेपर नैपकिन से हाथ पोंछ लेते हैं।
जिल ने किचन बहुत ही लज़ीज़ रंगों से सजाया है। किचन में सफ़ेद, नारंगी और मशरूम रंगों का इस्तेमाल किया है।
अंडरग्राउण्ड रेल्वे की बेकरलू लाइन में ड्राइवर है पीटर। हमेशा चिढ़ाता रहता है एलिसन को, “तुम हाई स्ट्रीट बैंक वाले कोई बैंकर थोड़े ही हो। तुम लोग तो बस दुकान चला रहे हो।… अरे काम तो हम लोग करते हैं। ” एलिसन बहुत गर्व से अपनी सहेलियों को बताती है कि उसका पति रेलगाड़ी चलाता है। उसे बचपन से ही चाह थी कि उसका पति जो भी हो वह इंजन चलाता हुआ आए। आज की रेलगाड़ी में इंजन तो होता नहीं, मगर रेलगाड़ी तो है।
एलिसन को बोलने में हमेशा झिझक होती है। वह बेचारी ‘स ’को ‘फ़ ’बोलती है। झिझकती है बात करने में। क्लास में हमेशा बच्चे उसका मज़ाक उड़ाते थे। हीन भावना की शिकार हो जाती थी। हमेशा जिल ही उसे हौसला देती। बचपन से ही उससे अपना नाम बार बार बुलवाती थी – एलिफ़न । जिल को अपने नाम से परेशानी होने लगती है। भला क्यों उसके नाम में ‘स ’ नहीं आता ?जैसे एलिसन अपने पापा को टैरेंफ़ कहती थी उसे भी तो ‘फ़ ’लगा कर कुछ कह सकती थी। उसने अपने बच्चों के नाम ऐसे रखे थे ताकि उनमें ‘स ’अक्षर आए ही नहीं। बहुत धीमे सुर में बात करती है। बचपन से ही जिल ने स्पीच-थिरेपिस्ट से अपनी पुत्री का इलाज करवाना शुरू कर दिया था। शुरू शुरू में काफ़ी फ़ायदा हुआ मगर फिर जैसे सब थम सा गया। एलिसन अपने आपको एली कहने लगी है। एलिफ़न कहने में शर्मिंदगी महसूस करती थी।
पीटर ने जब एलिसन को शादी के लिये प्रोपोज़ किया था, वह उस समय बेकार था। सोशल सिक्योरिटी के पैसों पर ज़िन्दगी बिता रहा था। एली को देखते ही उसके दिल के तार एक ऐसा संगीत बजाने लगे जो उसने पहले कभी नहीं सुना था। उसे पहले तो यह संगीत समझ ही नहीं आया क्योंकि यह न तो जैज़ था और न ही डिस्को। यह सीधा सादा क्लासिकल भी तो नहीं था। इस संगीत की एक एक थाप के साथ पीटर जैसे उड़ने लगता था।
एली का साथ पीटर के लिये भाग्यशाली भी साबित हो रहा था, “एली, तुम मुझे कितना प्यार करती हो। अगर तुम बैंक में नौकरी न करती होती तो भला हम दोनों ज़िन्दगी कैसे बिता पाते? तुम बेटी का सारा ख़र्चा भी उठाती हो।”
“तुम इतने फ़ॉर्मल न बनो पीटर। हमने एक दूफ़रे की नौकरियों के फ़ाथ तो प्यार नहीं किया न। इन्फ़ान नौकरी इफ़लिये करता है क्योंकि उफ़का परिवार होता है। कोई इफ़लिये फ़ादी नहीं करता क्योंकि उसके पाफ़ एक नौकरी भी है।”
पीटर का जीवन पटरी पर चलने लगा था जब उसे रेल्वे में नौकरी मिल गई। रेलगाड़ी चलाने का काम। बचपन से ही इंजन ड्राइवर बनने के सपने देखा करता था। एली उसकी इस महत्वाकांक्षा से भली भांति परिचित थी। उसे हमेशा प्रोत्साहित भी करती थी। पीटर ने अपनी महत्वाकांक्षा पूरी भी कर ली। मगर दो बच्चों को जन्म देने के बाद एलिसन के शरीर की बनावट पटरी से उतरने लगी। वह साइज़ बारह के कपड़े पहनने वाली एली नहीं रही। अब उसे साइज़ अट्ठारह के कपड़े ख़रीदने पड़ते हैं, “एली, तुम्हारा वज़न बढ़ता जा रहा है।… तुम मोटी होती जा रही हो।… अपने शरीर का ध्यान रखा करो।”
“क्या फ़र्क पड़ता है?अरे मैं तो पतले बदन से भी तुमको ही प्यार करती हूं और अब मोटी हो रही हूं, तो भी तुमको ही प्यार करती हूं।”
“मगर मुझे अच्छा नहीं लगता कि मेरी बीवी देखने में रेलगाड़ी का इंजन लगे । थोड़ा स्मार्ट दिखो न!अपने लिये न सही, मेरे लिये ही सही। जिम जाया करो। खाने में बदलाव लाओ। ऐसे नहीं चलेगा। तुम वोदका तो बिल्कुल बन्द ही कर दो। हर एक पैग के साथ एक गिलास कोकाकोला या पेप्सी का लेती हो। दोनो शुगर से भरपूर होती हैं। फिर खाने के साथ वाइन अलग लेती हो।… मैं कुछ नहीं जानता। तुमको वज़न तो कम करना ही होगा।”पीटर की झुंझलाहट साफ़ सुनाई दे रही थी।
एलिसन परेशान !
परेशान तो जिल भी है! अपनी बेटी के पीले पड़ते चेहरे से परेशान। जैसे अचानक ख़ुशी उससे नाराज़ होकर उसका साथ छोड़ गई है। समझ नहीं पा रही है। पीटर उसे प्यार भी करता है। एक बेटा एक बेटी – दुनियां का कोई भी इन्सान ऐसे जीवन से भला असन्तुष्ट कैसे रह सकता है।
फिर एलिसन की समस्या क्या है? पीटर के साथ उसका प्रेम-विवाह हुआ है। दोनों एक दूसरे को कब से जानते हैं। यह कैसा ग़म है जो कि एलिसन को खाए जा रहा है। आजकल अचानक उसके पेट में दर्द उठने लगता है। चेहरे पर एक ख़ालीपन सा चिपका रहता है।
बच्चे किसी बात पर रो देते हैं तो एलिसन उनकी पिटाई करने से भी बाज़ नहीं आती। भला इतनी परेशान क्यों रहने लगी है। कहीं कुछ तो है जो उसे खाये जा रहा है। उसने दो एक बार पूछने का प्रयास भी किया, मां, आप नाहक परेशान न हुआ करें। छोटी मोटी बातें तो चलती ही रहती हैं।
जिल जानती है कि बात छोटी मोटी है नहीं। कहीं एलिसन का मोटा होना ही तो इस बात का मुख्य मुद्दा नहीं है। बेबी-फ़ैट तो पहले ही से उसके बदन पर महसूस हो जाती थी। अब दो दो बच्चे पैदा होने के बाद एलिसन का बदन थोड़ा भारी हो गया है। पीटर आज भी जिम जाने में कभी नाग़ा नहीं करता। उसका बदन गठीला भी है और कसाव लिये भी। तो क्या पीटर को अब एलिसन को प्यार करने का दिल नहीं करता। पीटर तो ट्रेन ड्राइवर है। कितनी लड़िकयां साथ काम करती हैं। कितने यात्रियों से मिलता होगा। ट्रेन ड्राइवर पर तो वैसे ही लड़कियां बहुत मरती हैं। कहीं कोई ल़ड़की इन दोनों के जीवन के बीचों बीच तो नहीं आन खड़ी हुई।
एक लड़की उसके अपने और टैरेंस के बीच भी तो आ खड़ी हुई थी। उसने तो जनरल हॉस्पिटल नाम के सीरियल में एक्टिंग भी की थी। छोटी मोटी टीवी स्टार थी। क्या उसके अपने जीवन की कहानी एक बार फिर दोहराई जाएगी। टैरेंस रात को ग्यारह बजे से पहले घर ही नहीं आता था। दोनों के बीच से सेक्स तो ग़ायब ही हो गया था। जिल के लिये इस स्थिति को स्वीकार कर लेना कोई आसान बात नहीं थी।
उसे बचपन से सिखाया गया था कि परिवार एक महत्वपूर्ण संस्था है और उसे बचाए रखना है। बेचारी जिल ! समझ नहीं पाती थी कि परिवार को बचाए रखने का दायित्व उस पर ही क्यों है ? टैरेंस क्यों इस बात को नहीं समझ पाता।
यदि समझदार होता तो यह नौबत ही क्यों आती। सप्ताह, महीने, साल बीतने लगे। अकेलापन जिल को सालता रहता। टैरेंस बस पैसे लाता ; घर को चलाता। जिल का बदन उपेक्षा से जलता रहता, तरसता रहता। टैरेंस ने जिल को चेतावनी भी दी थी कि वह थुलथुल होती जा रही है। मगर जिल ने बात सुनी नहीं थी या शायद सुनी थी मगर समझी नहीं थी। जब तक उसे समझ आती टीवी सेलेब्रिटी एमा टैरेंस के जीवन में आ चुकी थी।
अब घुसपैठ हो चुकी थी। जिल के जिमनेज़ियम जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था। जिल खाने पर टैरेंस की प्रतीक्षा करती। फिर अकेली ही खा लेती। बिस्तर पर इंतज़ार करते करते कब नींद आ जाती पता ही नहीं चलता। मगर टैरेंस फिर भी नहीं आता। उसके आने और जाने के बीच का वक़्त जिल के लिये और भी अधिक कष्टदायक होता। जिल एमा से मिल चुकी थी। समझती थी कि एमा को देख कर कोई भी मर्द दीवाना हो जाएगा। मगर ऐसी ख़ूबसूरत लड़की को उसका पति ही क्यों पसन्द आया?
एलिसन का पीला होता चेहरा देख कर जिल समझ रही थी कि उसकी पारिवारिक ज़िन्दगी में से एक चीज़ ख़त्म होती जा रही है। उसे रात को बिस्तर में सेक्स का सुख नहीं मिल रहा। पीटर अपनी नई सहेली के साथ ही तृप्त हो कर घर देर से आता होगा। फिर भला मुटाती हुई एलिसन में उसे क्या दिलचस्पी हो सकती है। कहीं एलिसन भटक तो नहीं जाएगी? भला कब तक इस बेइज्ज़ती को सहती रहेगी। औरत के लिये बिस्तर में अनादर से अधिक दुःखदाई भला क्या हो सकता है?
यदि एलिसन को पति से शरीर का सुख नहीं मिलता तो क्या उसे बाहर खोजने को भटकना कह सकते हैं? पीटर अपनी पत्नी के मोटा होने के कारण बाहर सेक्स खोजे तो जायज़ है मगर एलिसन क्या करे?… नहीं… वह अपनी बेटी को इस तरह सुबक सुबक कर ज़िन्दगी नहीं जीने देगी।… जिल ने स्वयं भी इस अन्याय के विरुद्ध निर्णय लिया था और उसके अपने जीवन में जेम्स चला आया था – उस से सात वर्ष छोटा जेम्स!
जिल की मानसिकता परिवार तोड़ने वाली नहीं थी। फिर उसका पति भी परिवार तोड़ने की बात नहीं कर रहा था। वह अपने प्यार में व्यस्त था और जिल अकेली तड़पती थी। पहली बार जब जेम्स से मुलाक़ात हुई तो उसके मन में कुछ भी नहीं हुआ था। एक पार्टी में ही तो मिली थी उससे। जेम्स बहुत प्यार से जिल के लिये मार्टिनी बना कर लाया, “जिल, मैं हमेशा इस बात की कल्पना किया करता था कि मेरा उम्र में अपने से बड़ी महिला के साथ इश्क हो जाए।… पत्नी का प्यार और मां का दुलार एक ही जगह मिल जाए।… मैनें तुम्हें दो तीन बार वेस्पर कल्ब में ड्रिंक करते देखा। तुम हर बार अकेली ही थीं। तुम्हें दूर से निहारा करता था।”
“मैंने आमतौर पर मर्दों को अपने से बहुत छोटी लड़की की तरफ़ आकर्षित होते तो देखा है। मगर अपने से बड़ी औरत के सपने देखना… ! मैं कुछ समझ नहीं पाई।”
“दरअसल मैं औरों से कुछ हट कर हूं। मुझे हमेशा लगता है कि अपने से बड़ी औरत मेरे भीतर की झिझक को दूर कर देगी।… वह पहले ही से खेल को समझती और जानती हैं। उसे अपने से छोटे पुरुष के साथ प्रेम करके एक विशेष अनुभूति होती है – एक नया अनुभव। इसलिये मुझे लगता है कि मुझ से बड़ी महिला मुझे प्रेम में इतना सब दे पायेगी जिसके लिये मुझसे छोटी लड़की केवल हक़ जताएगी या फिर लड़ाई करेगी।”
जेम्स की बातें सुन कर जिल के मन में कुछ ऐसा महसूस होने लगा जो उसे पहले कभी नहीं हुआ था। टैरेंस कैथॉलिक है। बाद में तो उसमें बहुत बदलाव आए, किन्तु जिल के साथ विवाह के समय वह खासा पुरातनपन्थी था। शारीरिक संबन्धों के मामले में भी वह कैथॉलिक धर्म की बात करता था, “देखो जिल, जहां तक सेक्स का सवाल है, इसका मूल काम है बच्चे पैदा करना। जैसे इस धरती पर सभी जानवर बच्चे पैदा करने के लिये सेक्स करते हैं, ठीक वैसे ही मनुष्य को भी करना चाहिए। ये फ़ैमिली प्लैनिंग वगैरह के मैं सख़्त ख़िलाफ़ हूं। ”
डर गई थी जिल। यह सोच कर ही परेशान हो उठती कि यदि फ़ैमिली प्लैनिंग नहीं हुई तो वह तो हर साल गर्भवती होती रहेगी। पति से कहे तो कैसे। जिल हमेशा ही गृहिणी रही। उसे न तो नौकरी की इच्छा होती थी और न ही किसी तरह के बिज़नस में उसकी कोई रुचि थी। बस घर चलाती थी, टैरेंस और एलिसन की देखभाल करती थी। उसकी फ़ैमिली प्लैनिंग की अर्ज़ी शायद कहीं ऊपर से ही मंज़ूर हो गई थी। किसी इन्फ़ेक्शन के चलते उसकी बच्चेदानी ही निकाल देनी पड़ी थी। बेचारा कैथॉलिक धर्म बच्चेदानी के साथ ही शरीर से बाहर चला गया था।
जेम्स कितना समझदार है। जिल उसके बारे में ‘था ’ तो कह ही नहीं सकती। आज भी, अपने परिवार के होते हुए भी, जेम्स जिल के काम आता है। उसने अपने रिश्ते की मर्यादा रखी है। जिल ने भी कभी उस पर कोई दबाव नहीं डाला। यह नहीं सोचा कि अब तो टैरेंस है नहीं, जेम्स को चाहिये कि यहीं आ कर बस जाए।… उसने जेम्स को अपना जीवन जीने दिया है और स्वयं अपना जीवन जी रही है। बस जेम्स ने जो ख़ाली स्थान उस समय भरा था, आज भी भर रहा है।
कितना ख़ालीपन था जिल के जीवन में ! उसके आसपास सन्नाटे का साम्राज्य था। सन्नाटा जो कभी ठोस हो जाता तो कभी तरल !… बैठे बैठे सन्नाटा नटखट हो जाता फिर वापिस गंभीर ! सन्नाटे के साथ खेलना, उससे डरना, उससे बातें करना सभी जिल के जीवन का हिस्सा बन गये थे। सन्नाटा कभी उसका मज़ाक उड़ाता तो कभी उसका दर्द बांटता। एक विशेष किस्म का रिश्ता बन गया था जिल का सन्नाटे के साथ। सन्नाटे की इस दीवार में से एक दिन निकल आया था जेम्स, जिसके आने के बाद सन्नाटे में एक ख़ास तरह का संगीत सुनाई देने लगा था।
जिल अब हर वक़्त एक ख़ुमारी सी में रहती थी। चेहरे पर एक मुस्कुराहट सदा विराजमान। टैरेंस अगर अपने चक्करों में न फंसा होता तो अवश्य ही उसे दिखाई देता कि जिल किसी और ही दुनियां में रहने लगी है। जिल को अब शुक्रवार की प्रतीक्षा रहती। टैरेंस शुक्रवार की शाम चला जाता और रविवार को देर रात या फिर सोमवार को ही लौटता। यह समय जैसे जिल के लिये दुनियां भर की रूहानी किताबों में दर्शाई जन्नत का समय होता। एलिसन को शनिवार की सुबह कॉलेज भेजने के बाद जिल का सारा समय जेम्स के साथ ही बीतता।
जेम्स को मछली खाने का बहुत शौक़ है। उसकी ख़ास पसन्द है प्लेस मछली। अब भी हर शनिवार को वही मछली पकाती है। आज भी जेम्स शनिवार दोपहर का भोजन जिल के साथ करता है। जिल के चेहरे पर एक शाश्वत जवानी आ कर चिपक गई है। जो भी देखता है यही सवाल पूछता है, “आप चेहरे पर क्या लगाती हैं ? भला आपके चेहरे की त्वचा इतनी चमकती कैसे है ? ”
केवल जिल ही जानती है कि चाहे जेम्स ने उसे एक बार भी नहीं कहा कि वह उसे प्यार करता है, फिर भी उसने जो कुछ जिल के लिये किया है, वह तो उसके विवाहित पति ने भी नहीं किया। अचानक जिल के अंदर की कवियत्री मुखर हो उठी है। जो कविताएं उसने कभी स्कूली जीवन में लिखी थीं ; उन कविताओं में से अचानक एक नई जिल जाग उठी।
जेम्स नई पीढ़ी का लड़का है। उसने जिल को उन भावनाओं से परिचित करवाया जिनसे वह सर्वथा अनजान थी। उसके खाने पहनने में भी बदलाव आ गया है। घर के मीनू से लाल मीट जैसे ग़ायब ही हो गया है। बीफ़, पोर्क या लैम्ब अब घर में नहीं पकते। चिकन या फ़िश के ही अलग अलग पकवान बनने लगे हैं।
जिल ने कभी भी इस रिश्ते को कोई नाम देने का प्रयास नहीं किया। दोनों की एक ही सोच – नाम में क्या रखा है ! किन्तु एक बात तय थी कि जो रिश्ता केवल जिल को शारीरिक ख़ुशी देने के लिये शुरू हुआ था, उसका स्वरूप बदलता जा रहा था। अब दोनों एक दूसरे की प्रतीक्षा करते; साथ ही साथ कुछ यूं भी होने लगा था कि दोनों को एक दूसरे के शरीर से प्यार भी होने लगा था। यह प्यार एक अलग किस्म का प्यार था। इस प्यार में जलन या ईर्ष्या के लिये कोई स्थान नहीं था। कहीं भी यह मांग नहीं थी कि अपने अपने साथी से मुक्ति पाई जाए और इकट्ठे एक छत के नीचे रहें। कहीं अपने प्यार का चर्चा नहीं; किसी से बात नहीं; बस क्रिसमिस पर एक दूसरे को भेंट और अपना अपना जन्मदिन साथ मनाना। उससे आगे कुछ भी नहीं। यहां तक कि बिना किसी काम के एक दूसरे को फ़ोन तक नहीं करते थे, किन्तु एक दूसरे की आवश्यकता के बारे में पूरी जानकारी रहती।
एक बार बिस्तर में निरादर होने के बाद जिल ने कभी अपने पति को अपने शरीर के निकट नहीं आने दिया, “अब तुम में बचा ही क्या है?.. यू बोर मी जिल!… तुम अब मुझ से कोई उम्मीद न किया करो। मुझे अपनी ज़िन्दगी जीने दो और तुम अपना कुछ और इन्तज़ाम कर लो। मुझे कोई दिक़्क़त नहीं होगी।”
इन्तज़ाम!