ज्ञान मुखर्जी की फिल्म ‘किस्मत’ १९४० में रिलीज हुई थी. इसे हिंदी का पहला ‘ब्लॉकबस्टर मूवी’ कहा जाता है. उस फिल्म को याद कर रहे हैं सैयद एस. तौहीद– जानकी पुल.
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ज्ञान मुखर्जी की ‘किस्मत’खुशी और गम के पाटों में उलझे शेखर (अशोक कुमार) एवं रानी (मुमताज़ शांति) की बनती–बिगडती तकदीरों की दास्तां है। कथा एक तरह से शेखर और रानी की कहानियों का सुंदर संगम है। किस्मत को हिन्दी की पहली बडी ‘ब्लाकबस्टर’फ़िल्म होने का गौरव प्राप्त है। सन1943 में रिलीज़ होकर ,दो वर्ष से भी अधिक समय तक रजत पटल की शोभा बनी रही। अभिनेता अशोक कुमार निगेटिव नायक ‘शेखर’की भूमिका में है। हिन्दी सिनेमा में इस मिज़ाज़ का ‘हीरो ‘किस्मत’में पहली बार देखा गया…अशोक कुमार का ‘शेखर’चोर–उचक्का जैसा अस्वीकार्य सामाजिक तत्त्व होकर भी दया, करूणा,प्रेम, मित्रता की मिसाल है।
फ़िल्म कथा कुछ यूं है :
शेखर (अशोक कुमार) एक मशहूर चोर है, अक्सर ही धंधे(चोरी) को अंज़ाम देने में कानून के शिकंजे में फ़ंस जाता है. हम देखते हैं कि कथा के आरंभ में वह सेंट्रल जेल से रिहा हुआ. पुलिस अधिकारी उम्मीद करता है कि इस लम्बी सज़ा के बाद शेखर फ़िर आगे चोरी न करेगा । पर कानून के लम्बे हांथों का हवाला देते हुए वह फ़िर न पकडे जाने का विश्वास खो चुका है । तात्पर्य यह कि वह आगे भी इस काम को करेगा,क्योंकि जब तक पुलिस होगी,चोर भी होंगे ।रिहा होकर, फ़िर से पुरानी राह( अपराध) पर चल देता है। एक सोने की घडी