‘कथा’ पत्रिका का नाम आते ही मार्कंडेय जी याद आते हैं. यह खुशी की बात है कि उनकी मृत्यु के बाद उस पत्रिका का प्रकाशन फिर शुरु हुआ है. संपादन कर रहे हैं युवा कथाकार अनुज. इसका नया अंक मीरांबाई पर एकाग्र है. प्रस्तुत है इस सुन्दर संयोजित अंक का सम्पादकीय- जानकी पुल.
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यह महजएकसंयोगहैकिआज18 मार्चहैऔरमैंमार्कण्डेयकी‘कथा’ औरअपनेजीवनकायहपहलासंपादकीयलिखनेबैठाहूँ।आजहीकेदिनवर्ष2010 कोमार्कण्डेयहमसबकोछोड़इसदुनियासेचलेगएथे। हमसबइसतथ्यसेअवगतहैंकिजबएकसाहित्यकारइसदुनियासेजाताहैतो, वहतोचलाजाताहैलेकिनअपनेपीछेछोड़जाताहैजानेकितनेसुलझे–अनसुलझेअपनेविचार, अपनेआदर्शऔरअपनेढेरसारेअधूरेसपने।मार्कण्डेयभीइसीतरहअपनेपीछेछोड़गएहैं, अपनेआदर्श, कई–कईअधूरेसपनेऔरछोड़गएहैं‘कथा’ कीयहजिम्मेवारी।
जब मार्कण्डेयजीकीबड़ीबेटीडॉ. स्वस्तिसिंहनेमुझेइलाहाबादआनेकाआदेशदियाऔरमुझसे‘कथा’ कोआगेप्रकाशितकरतेरहनेकीअपनीयोजनाबतातेहुएइसकेसंपादनकीमहतीजिम्मेवारीमुझेसौंपनेकीबातकी, तोएकबारगीमैंजैसेसिहर–सागया।मैंजानताथाकिमार्कण्डेयकेजूतेमेंपाँवडालनाआसाननहोगा।लेकिनस्वस्तिजीकेआदेशकोटालनाऔरउन्हेंयहसमझालेनाकि‘कथा’ जैसीपत्रिकाकासंपादनमेरीहैसियतसेबाहरकीचीजहै, ऊँटकोनावपरबैठानेसेकमनथा। आखिरकारमुझेहामीभरनीपड़ीथी।हालांकिमैंनेमार्कण्डेयकेजूतेमेंपाँवतोडालदियाथा, लेकिनजूतेथेकिसम्भालेनहींसम्भल रहे थे। जैसेएकछोटाबच्चाअपनेपिताकेजूतोंकोपहनकरउसेघसीटताहुआपूरेघरमेंघूमतारहताहै, शुरूआतसेआखिरतकमेरीभीहालतकुछवैसीहीरहीथी।अबजूतेथोड़े–बहुतढीलेहोतेतोएक–दोसुखतलेडाललेता, लेकिनयहाँतोपाँवक्या, मेरापूरा–का–पूरा
मुझे यह शोध पत्रिका बहुत पसंद आई। जितना पढ़ पाया हूँ उतने में से नामवर सिंह का आलेख 'साहित्य के इतिहास में मीराँ', इरफ़ान हबीब का शोध आलेख 'मध्यकालीन भारत समाज में स्त्री' (जिसका अनुवाद खुद संपादक अनुज ने किया है), विश्वनाथ त्रिपाठी तथा मैनेजर पांडेय के लेख एवं गुलजार से मीराँ पर ओमा शर्मा की बात बहुत अधिक पसंद आये। इतनी ही मेहनत से इसके आगामी अंक निकलते रहे तो अनुज एक मिसाल बन जाएँगे।
अनुज जी ने कथा के लिए अपनी जितनी रचनात्मक उर्जा लगाया उसकी जितनी तारिफ की जाए कम है उनके परश्रिम के परिणामस्वरूप ही कथा पुनः आ पाई उनसे यही उम्मीद है कि कथा बाजार के दबाव, अटपटे विमर्श और किसी बेकार के वितंडाबाद से बचते हुए हिन्दी साहित्य में रचनात्मकता की नई कथा गढेगी जिसकी बात उन्होंने संपादकीय संकल्प में किया भी है. हम कथा पत्रिका की उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं…
कथा पत्रिका के प्रारम्भ से सारे अंक कहाँ से उपलब्ध हो सकेंगे??
कथा पत्रिका में अपनी कहानियाँ भेजे कैसे ?