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वे दुनिया से अपनी दुखती रग छुपाकर रखते थे

अरुण प्रकाश ऐसे लेखक थे जो युवा लेखकों से नियमित संवाद बनाये रखते थे. इसलिए उनके निधन के बाद युवाओं की टिप्पणियां बड़ी संख्या में आई. आज युवा लेखिका सोनाली सिंह ने उनको याद करते हुए लिखा है- जानकी पुल.
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मुझे याद है जब अरुण जी से मेरी पहली मर्तबा बात हुयी थी तब मैं लखनऊ में थीI  १५ अगस्त के दिन गाने सुनते हुए मैं कॉरीडोर में टहल रही थीI  ‘स्वप्न घर पढ़कर मैंने उन्हें ख़त लिखा थाI  इसी सिलसिले में उनका फ़ोन आया थाI  फ़ोन पर तक़रीबन दो घंटे हमने कहानियों के बाबत बहस कीI मैं उनके रचनात्मक विचारों से इस कदर प्रभावित हुयी कि दिल्ली आकर उनसे मिलना मेरे एजेंडे में शामिल हो गयाI

कुछ सालों बाद दिल्ली लैंड हुयी पर अपने आलसी मिजाज़ के कारण उनसे मिलना बहुत बाद में संभव हुआI  अक्टूबर की गुनगुनी धूप में उनसे मिलने मयूर विहार वाले घर पहुचीI वीना जी ने मुझे बैठाया और अरुण जी को बुलाने अन्दर चली गयीI  मैं अपनी पारखी नज़रों से Drawing रूम का जायजा ले रही थी जो काफी सुरुचिपूर्ण ढंग से सुजज्जित थाI  दीवार पर अमित कल्ला के बनाये स्केच सुन्दर फ्रेम के  बाहर झाँक रहे थेI  अमित कल्ला अच्छी कविता करते है या ज्यादा अच्छे चित्र गढ़ते है तय नहीं कर पा रही थी कि अरुण जी की आमद हुयी …..नाक में लगी हुयी नली के सहारे आक्सीज़न लेतेज़र्ज़र काया वाले अरुण जी को देखकर मैं सदमे में थीI  फ़ोन पर सुनी गयी आवाज़ कही से उनकी दुर्बल काया से मैच नहीं खा रही थीI  एक पल को मैं अफ़सोस कर बैठी क्यों एक बीमार आदमी को परेशान कर दिया
                                                               
अरे, रोजाना कोई ना कोई मुझसे मिलने आता हैI’ मेरी परेशानी भांपते हुए वह बोलेI वह रुक-रुक कर बातें कर रहे थेI  मैंने उन्हें थोड़ी देर आराम करने की सलाह दी पर वो नहीं माने और लगातार कहानी, कविता, समाज और रचनाकारों पर चर्चा करते रहेI  दोपहर से शाम हो गयीI  मैं जाने को हुयी , उन्होंने और वीना  जी ने जबर्दस्ती कर अपनी बेटी अमृता का जेकेट पहनाकर ही जाने दियाI

मैं वह जैकेट लौटाने का सोचती रहीI  इसी उधेड़बुन में गर्मियां गुज़र गयी,  बारिश बीत गयी, उनींदी सर्दियों ने फिर आहट दी… उन्ही दिनों एक फिल्म अंतरद्वंदरिलीज़ हुयी थी जो बिहार में दहेज़ प्रथा से त्रस्त लड़की वालों द्वारा लड़के का अपहरण कर ज़बरन शादी करवा देने के विषय पर बनी  थीI  मैंने उन्हें फ़ोन करके बताया कि  यह फिल्म उनके उपन्यास कोपल कथा से inspire लगती है
                                                                                                                      
हाँ, मुझे कुछ और लोगों ने भी बताया है, घर आओ, discuss करेंगेI’ ख़ुशी से चहकती आवाज़ सुनाई दी . उनकी दी गयी जैकेट ने मेरे साथ एक साल का वक़्त बिताया था इसलिए लौटने का कोई औचित्य नहीं बनता थाI  इस बार वह पहले से ज्यादा स्वस्थ लग रहे थेI  हालत सुधरती लग रही थी, देखकर तसल्ली हुयीI  देर शाम मैं घर जाने के लिए तैयार हुयीI  मैं ना-ना करती रह गयी पर उन्होंने और वीना जी ने मुझे अपनी बेटी का कार्डीगन पहनाकर ही घर से बाहर निकलने दियाI  मैं वैसे भी जैकेट ना लौटा पाने की शर्मिंदगी में मरी जा रही थी और वे दोनों मुझे कार्डीगन पहनाकर शाल से ढककर भेजने की तयारी में थेI

मैं दूसरे- तीसरे  दिन ही कार्डीगन लौटाने पहुँच गयीI उस दिन वह बहुत खुश नज़र आ रहे थेI उनके दिमाग में नयी कहानी का प्लाट आया था I वह बोल रहे थे, अमृता लिख रही थी और मैं वीना जी के हाथों के बने लज़ीज़ आलू के पराठों का मज़ा ले रही थीI  इतने में किसी ने मेरी कहानी पढ़कर फ़ोन कियाI  सवाल जरुरत से ज्यादा हो रहे थेI  मैंने उसे डांट दियाI  अरुण जी बोले तुम्हे अपने प्रशंसकों  को डील करना नहीं आताI  जिस तरीके से कभी भीष्म साहनी ने उनको इसी बात पर डपटा था, उन्होंने मुझ पर नाराज़गी ज़ाहिर कीI एक पल को लगा जैसे मैं भी किसी परंपरा का हिस्सा बनने जा रही हूँI

हम तक़रीबन हर विषय पर बातें किया करते थेI  धारावाहिकों के चरित्रों,  वास्तु से फेसबुक तक बात पहुँच जाती और वे परेशान हो उठते कि किसी ने उनका अकाउंट हैक कर रखा हैI मेरी एक पसंदीदा लेखिका की खिंचाई करना उनका प्रिय शगल थाI लगता नहीं कि उनके दिल में किसी के लिए कोई बैर भावना थीI  शायद मुझे चिढाने के लिए ही वह उनकी कहानियों का टॉपिक छेड़ दिया करते थेI

उनसे( उनकी drawing रूम से बेडरूम तक सिमटी हुयी जिंदगी देखकर )मिलकर मुझे उस दर्द का अहसास होता था जैसे एक भरी-पूरी , रंगों से भरी दुनिया को देखने के बाद किसी को अँधा कर दिया होI  वह लोगो से आस-पास की दुनिया की खबर लेकर अपना स्वप्न लोक रचता हैI  वह ख़ुशी तब तक है जब तक वह इस भुलावे में रहता हैI  जब हकीकत की दुनिया से उनका  वास्ता होता होगा तो उन पर क्या बीतती होगी – सोचकर ही दिल दहल जाता हैI

वीना जी अक्सर अपने दिलशाद गार्डेन वाले बड़े और खुले- खुले घर की बातें किया करती थी पर अरुण जी कभी इसका ज़िक्र भी नहीं करते थेI  मुझे लगता है कि एक समझदार इंसान दुनिया से अपनी दुखती नब्ज़ छिपाकर रखता है क्योकि वह दुनिया का दर्द पे वार करने का उसूल जानता है I

मौत तो बस नाम से बदनाम है …वर्ना तकलीफ तो ज़िन्दगी भी कम नहीं देती…..उनकी तकलीफें बढती जा रही थीI  अपने जन्मदिन के दिन वह Hospital में भर्ती थेI  उस दिन मुझे अपनी असमर्थता का अहसास हुआ जिस इन्सान के लिए आप कुछ  कर नहीं सकते , उसकी लाचारगी को देखने जाना कहाँ की रिवायत हैI दिल में कुछ टूट सा गया  – फिर उनसे दोबार कभी मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सकीI

कभी – कभी सोचती हूँक्या उन्होंने कभी जाना ना होगा कि यह लड़की मुझे बहलाए रखने के लिए उलटी-सीधी बातें करती हैI  इतनी सच्ची कहानियां लिखने वाला सामने वाले के मन के रेशे-रेशे  पकड़ लेता हैI  मैं कितनी मुर्ख हूँ जो उन्हें बहलाए रखने की कोशिश करती थीI दरअसल वह मुझे बरगलाये  रखते थे कि वह बहल रहे हैI

एक कथाकार केवल कहानियां  नहीं लिखतावह लोगों की जिंदगियां  पढना जानता हैI  उसको पता होता है सामने वाला उसकी जिंदगी के कौन-कौन से चैप्टर  पढना चाहता है पर वह उतने ही चैप्टर पढने देता है जितने की वह पढवाना चाहता हैI  कभी ना लिखी गयी , सर्वोत्तम कृति  उसके अन्दर अनपढ़ी  रह जाती हैI

अरुण प्रकाश जी उन बिरले रचनाकारों में से है जो अपने नाम से नहीं वरन कृतियों के नाम से जाने जाते हैI  जब तक हिंदी साहित्य रहेगा , स्वप्न घर देखने आने वालों का तांता लगा रहेगाI 

 
      

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7 comments

  1. सबसे बड़ा सच…

    मौत तो बस नाम से बदनाम है …वर्ना तकलीफ तो ज़िन्दगी भी कम नहीं देती…..

  2. मौत तो बस नाम से बदनाम है …वर्ना तकलीफ तो ज़िन्दगी भी कम नहीं देती…..

  3. बहुत सुन्दर लगा आप का यह संस्मरण, धन्यवाद

  4. युवा कथाकार सोनालीसिंह ने हिन्‍दी के बिरले कथाकार और एक बेहतरीन इन्‍सान अरुण प्रकाश को याद करते हुए बहुत मन से यह संस्‍मरण लिखा है। उनकी जितनी सराहना की जाय कम है। पिछली बार साल भर पहले जब मैं दिल्‍ली आया तो उनसे बात करके मयूर विहार स्थित आईएफएस अपार्टमेंट मिलने गया था और मुझे भी उनसे उस अवस्‍था में मिलते हुए कुछ वैसा ही अनुभव हुआ, जिसका जिक्र सोनाली ने किया है। वे वाकई इस बात के प्रति चौकस रहते थे कि उनसे मिलने वाले को अधिक चिन्तित न होने दें। ऐसा व्‍यवहार करते थे कि बहुत मामूली-सी तकलीफ है, ठीक हो जाएगी। सोनाली का यह विश्‍लेषण वाकई काबिले तारीफ है कि "मैं जब एक कथाकार केवल कहानियां नहीं लिखता, वह लोगों की जिंदगियां पढना जानता है। उसको पता होता है सामने वाला उसकी जिंदगी के कौन-कौन से चैप्टर पढना चाहता है पर वह उतने ही चैप्टर पढने देता है जितने की वह पढवाना चाहता हैI कभी ना लिखी गयी , सर्वोत्तम कृति उसके अन्दर अनपढ़ी रह जाती है।"

  5. This comment has been removed by the author.

  6. सोनाली ने बहुत अच्छा लिखा है, बधाई.

  1. Pingback: go x san francisco

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