हेमंत शेष हिंदी कविता की प्रमुख आवाजों में एक हैं. उनकी तीन कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल.
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(ओम निश्चल को समर्पित)
१.
–अकेला होना हिल गया हूँ दृश्य में
लौट कर पीछे छूटती सड़क पर फिर अचानक- पेड़.
…
घिरती आ रही है शाम -तोता है वहां कोई ?हरेपन में डूबती कोई अनखुली सी गाँठ.
सोचता हूँ मैं अकेला-
इस समूचे खेल में यह दृश्य है क्या शह या फिर हमारी मात.
०००
२.
–
इतना पास अपनेइतना पास अपने कि बस धुंध में हूँ गिर गए सारे पराजित-पत्र वृक्ष-साधु और चीलें कुछ हतप्रभ हो कहाँ अब लौट आओ- लौट आओ…..सुन रहा अपनी पुकारें ही मैं निरंतर
आवाज़ एक अंधा कुआं है, जल नहीं- जिसमें बरस हैं…. बस
जो गया- वह मृत्यु थी क्या
जो नया, वह बचा है – जल
सुन रहा अपनी पुकारें मैं निरंतर-
दोगे किन्हें ये चिर पुराने स्वप्न- अपने बाद, यायावर ?
०० ३.
–
हवा नहीं, फिर भी चला हूँखो चुके अक्षर पुराने शब्द सारे गुम
हूँ नहीं उस दृश्य में फिर भी नया हूँ कैसा ये संसार हमारे हृदयों को छीलता सा
जा चुके दिन सा बुलाता कोई मेरा नाम
क्या हमारे थे वे चेहरे साथ आये जो यहाँ तक
कौन से थे वे लोग जो बिसरा दिए
एक घड़ी उलटी अब भी निरंतर चल रही है
क्या समय है ये कि कोई प्रश्न
याद नहीं रह गए पाठ
पुराने पहाड़े धुंध गहरी-
और….. मदरसा बंद !
हूँ नहीं उस दृश्य में फिर भी नया हूँ कैसा ये संसार हमारे हृदयों को छीलता सा
जा चुके दिन सा बुलाता कोई मेरा नाम
क्या हमारे थे वे चेहरे साथ आये जो यहाँ तक
कौन से थे वे लोग जो बिसरा दिए
एक घड़ी उलटी अब भी निरंतर चल रही है
क्या समय है ये कि कोई प्रश्न
याद नहीं रह गए पाठ
पुराने पहाड़े धुंध गहरी-
और….. मदरसा बंद !
आभार
मर्म को भेदती कवि की पंक्तियाँ —बहुत सुंदर —
बहुत सुंदर कवितायें… मन को छू गयीं..
Badle mein sirf ek laffz- AABHAAR!
बहुत ही अच्छी कविताएँ. मन छीलती और एक सत्य को उद्घाटित कर कोहरे में खो जाती सी कविताएँ, हेमंत जी की कविताई बहुत पहले से प्रतिमान गढ़ चुकी कविताएँ हैं. मैं उनकी कविताओं की पुरानी प्रशंसिका – मनीषा कुलश्रेष्ठ