भूली-बिसरी अभिनेत्री, फिल्म-निर्माता प्रमिला पर विपिन चौधरी का एक रोचक लेख- जानकी पुल.
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हिंदी सिनेमा अपनी स्थापना के शानदार सौ वर्ष पूरे होने की खुशगवार आलम में सराबोर है. सिनेमा की इस नींव को पुख्ता करने में संगीतकारों, गायक-गायिकाओं, निर्देशक, स्टंटमैन, निर्माताओं के अलावा पर्दे के पीछे के हजारों-हज़ार कलाकारों का योगदान भी शामिल है. मनोरंजन जगत में कई ऐसी विभूतियां भी हैं जिनके सिर पर सेहरा है सिनेमा में मील के पत्थर स्थापित करने का. ऐसी कई शानदार शख्सियतों के हिम्मत की दास्ताँ यहाँ दर्ज है जो अपने जीते जी मिसाल बन कर उभरी. इनमें से एक नाम था ‘प्रमिला’ का, वह शानदार अभिनेत्री तो थी ही देश की पहली महिला निर्देशिका होने का गौरव भी हासिल हैं.
आज इक्कीसवीं सदी में हम जिस स्त्री सशक्तिकरण की बात करते हैं, उसी सशक्तिकरण की सुगबुगाहट हमारे हिंदी सिनेमा में महिलाओं की रचनात्मक शक्ति के रूप में सामने आने लगी थी. इस दौर में सशक्त अभिनेत्रियों का सिनेमा जगत में पदार्पण हुआ और दर्शकों पर उनका जादू सर चढ कर बोलने लगा.
उस काल में मुंबई की फिल्म लाइन में अधिकतर लड़कियां शिक्षित नहीं थी. दुर्गा खोटे,लीला चिटनिस, शांता हुबलीकर, सविता देवी तथा माया बैनर्जी के अतिरिक्त अन्य लड़कियां अधिकतर पारंपरिक रूप से सार्वजनिक प्रदर्शन करने वाले परिवारों में से थी.
वहीं दूसरी ओर कोलकाता के एक पढ़े –लिखे, अमीर यहूदी परिवार में ३० दिसम्बर १९१६ में जन्मी ‘ईस्थर’ ने मात्र सत्रह साल की उम्र में नाटक कंपनी में शामिल होने के लिये अपना घर छोड़ दिया था. उन्होंने खलनायिका और स्टंट किरदारों के रूप में लगभग तीस फिल्मों में काम किया. इस कला निपुण अभिनेत्री के जीवन ने बारे में हम जायदा ना जान पाते यदि ईस्थर उर्फ ‘प्रमिला’ खुद अपने मुहँ से अपने जीवन की घटनाओं का जिक्र ना करती. उन्होंने मुम्बई की संस्था “स्पैरो” में अपने घरेलू, निजी और फ़िल्मी जीवन से जुडे अनुभव साझा किये.
“स्पैरो” मुंबई की एक संस्था है, जिसके द्रश्य-श्रवय कार्यशाला में सहभागी महिला कलाकारों के आत्मकथ्यों पर आधारित एक श्रंखला आयोजित की गई. इन कलाकारों ने खुद यहाँ आकर अपने जीवन अनुभव को युवाओं के सामने साँझा किया. उनकें इस साक्षात्कार का वीडियो बनाया गया और इन्हें २००३ में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जिसका संपादन कथाकार सुधा अरोड़ा ने किया..
फ़िल्मी जीवन की शुरुआत
एक दिन जब ईस्थर अपनी कजिन ‘रोज़’से मिलने इम्पीरियल कंपनी गयी, जहाँ फिल्म ‘रिटर्न ऑफ तूफान मेल’की शूटिंग चल रही थी. निर्देशक आर.एस.चौधरी ने प्रमिला कों देखा और अपने साथी अर्देशिर ईरानी को कहा मुझे ऐसी ही लड़की की जरुरत है और प्रमिला को स्क्रीन टेस्ट के बाद तुरंत ही अनुबंधित कर लिया.
इन्हीं अर्देशिर ईरानी ने १९३७ में ‘इम्परिअल फिल्म कंपनी’के बैनर तले प्रथम रंगीन फिल्म ‘किसान कन्या’का निर्माण किया था.
अर्देशिर इरानी अक्सर प्रमिला को अक्सर कहते की फिल्म उद्योग को उनकी तरह शिक्षित लड़कियों की आवश्यकता है.
उन दिनों फिल्मों में गैर हिंदू नाम रखने का प्रचलन नहीं था सो निर्देशक बाबूराव पेंढारकर ने ‘ईस्थर’ का नाम बदल कर ‘प्रमिला’ रख दिया.
प्रमिला १९४७ में ‘मिस इंडिया’ बनी.
कह नहीं सकते की देश के आज़ाद होते ही मिस इंडिया बनी प्रमिला के प्रति लोगो का रुख कैसा रहा होगा. वे एक खास तरह के प्रेस वोट से मिस इंडिया बनी थी और एक खूबसूरत संयोग के तहत १९६७ में प्रमिला के बेटी ‘नाकि जहाँ’ भी अपनी माँ के नक्शे क़दमों पर चलते हुए ‘मिस इंडिया’ बनी.
फिल्म निर्माण पूरी तरह से पुरुषों का श्रेत्र माना जाता था यह प्रमिला की ही अबूझ सर्जन शक्ति और जिजीविषा थी कि उसी दौर की वे एक सशक्त अभिनेत्री के साथ-साथ सफल फिल्म निर्देशक रही.
सहनायिका के अपने किरदारों में भी वे अपनी जान डाल देती थी और स्टंट वोमेन के तौर पर भी प्रमिला ने खूब चपलता और फुर्ती दिखलाई. बतौर स्टंट नायिका उन्हें कई बार चोट आई, एक्शन फिल्म ‘जंगल किंग’में काम करते हुए उनकी रीढ़ की हड्डी में बेहद गंभीर चोट आई. दूसरी दुर्घटना भी इसी फिल्म के दौरान हुई जब वे नदी में डूबते-डूबते बची.
प्रमिला ने अपने जीवन काल में तीन शादियाँ की, पहली शादी उन्होंने एक मारवाड़ी नाट्य निर्देशक ‘माणिकलाल दांगी’से की पर यह रिश्ता ज्यादा समय नहीं चला दूसरी शादी उस समय के प्रसिद्ध अभिनेता ‘कुमार’ से हुई. ‘कुमार’पहले से शादीशुदा थे.पर प्रमिला उन के साथ बिताये अपने जीवन को अमूल्य पूँजी मानती हैं.
जब ‘कुमार’अपने परिवार के साथ १९६८ में पाकिस्तान चले गए तो प्रमिला बुरी तरह टूट गयी फिर भी जीवन की लय से कदम ताल तो मिलनी ही थी. वे फिर से फिल्म निर्देशन और वितरण के काम में सक्रिय हो गयी उसके बाद उन्होंने एक पारसी निर्देशक ‘नारी गढ़ली’के साथ अपना घर बसा लिया. सिल्वर प्रोडशन के बैनर तले उन्होंने अपनी सोलह फिल्में निर्देशित की.
प्रमिला के जीवन की रोचक घटनाएँ
कई रोचक बातें प्रमिला के जीवन काल में घटी. जैसे महाराष्ट के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई के निर्देश पर प्रमिला को एक जासूस समझ कर उन दिनों गिरफ्तार कर लिया जब वे अपनी फिल्मों के विक्रय के लिए पाकिस्तान जाया करती थी.
प्रमिला की जिन मदहोश आखों के लोग दीवाने थे उनकी भी एक न्यारी ही कहानी थी. बात दरअसल यह थी की प्रमिला की नज़रे इस हद तक कमज़ोर थी की वे मात्र एक इंच की दूरी तक भी नहीं देख सकती थी. वह सदा ध्यान रखती कि मंच पर किसी अन्य पात्र या वस्तु तक पहुँचने के लिये उसे कितने कदम चलना होगा. चश्मे के बिना उसे चीज़े स्पष्ट नज़र न आकर महज़ धब्बे मात्र ही नज़र आते थे.
जब उन्होंने फिल्म ‘धून’में नर्गिस के साथ काम किया तो नर्गिस कहती” भग्वान के लिये मुझे इस प्रकार मत देखो, मैं अपने सभी संवाद भूल जाती हूँ तब प्रमिला कहती “मैं आपकी ओर नहीं देख रही हूँ.
‘शमा प्रोडक्शन’की फिल्म ‘नहले पर दहला’के लिए श्रेष्ठ गीतकार ‘डी.एम. मधोक’ने “मेरी चोली में हैं दो अनार”नामक गीत प्रमिला के लिए लिखा. जिस ने काफी सनसनी फैलाई. ( उस वक्त जब अभिनेत्री माधुरी दीक्षित का जन्म भी नहीं हुआ था).
प्रखर अभिनेत्री की हाजिरजवाबी
प्रमिला ने बताया कि निर्देशक ‘जे.बी.वाडिया’ने अपनी फिल्म ‘जंगल किंग’के लिए प्रामिला को बुलाया और प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही कहा
“तुम अपनी साड़ी ऊपर उठाओगी”
प्रमिला ने तुरंत पलटकर उत्तर दिया यदि मुझे ऐसा करने के लिए मुझे बुलाया है तो ये रहा आपका अनुबंध.
निर्देशक के कहाँ नहीं मेरा मतलब यह था कि मैं महज देखना चाहता था कि तुम बाघ की खाल में कैसी लगोगी.
इस पर प्रमिला ने फौरन ही अपनी साड़ी ऊपर खिसका दी और कहा
‘अच्छी तरह से देख लीजिए आपने ऐसी टाँगे नहीं देखी होंगी’
जहाँ तक सारी बातें सपष्ट हो तो प्रमिला कों कोई परेशानी नहीं होती थी.
१९३८ में बनी फिल्म ‘मदर इंडिया’में प्रमिला ने लाल रंग की तैराकी की पोशाक पहनी.
ऐसा ही एक और प्रसंग है जब प्रकाश मूविटोन की फिल्म बिजली में मलमल में सोने और चांदी की तारों की कशीदे वाली काली पोशाक धारण करनी थी.
फिल्म के निर्देशक बलवंत भट्ट थे. प्रमिला ने देखा की वह काली पोशाक प्रतिदिन आधा इंच ऊपर हो जाती थी. जब इस बारे में प्रमिला ने अपने निर्देशक से कहाँ तो वे बोले ड्रेस वाले से पूछों तब प्रमिला ने अपने ड्रेस वाले से पूछा कि ‘श्यामलाल यह क्या हो रहा है’.
श्याम लाल ने अजीब सा ऊतर दिया कि बारिश के कारण यह पोशाक सिकुड रही है. उस विशेष अनुबंध में प्रमिला ने पहले ही कह दिया था कि वह छोटे कपडे नहीं पहनेगी.
आखिर में प्रमिला वह पोशाक अपने घर ले गई और फिर उसके बाद वह कभी नहीं सिकुड़ी.
जब प्रमिला की फिल्म फिल्म ‘धून”निर्मित हुई तब उन्हें सबसे अधिक कठिन सेंसरकर्ता
मोरारजी देसाई का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा, “प्रमिला के उत्तेजक आखें, सेक्सी वक्ष और नितंब सब काट दो.
लेकिन हाज़िर जवाब प्रमिला ने पलट कर मोरारजी देसाई से कहा यदि आप आजीवन मुझे दस हज़ार रूपये देंगे तो वह अपनी शारीरिक रचना का कोई भाग काट सकती हैं.
उन्हीं दिनों के विख्यात फोटोग्राफर ए. जे. पटेल की प्रमिला प्रिय माडल थी. प्रमिला के चित्र ‘ईल्सट्रेट्रिड वीकली’में छपते और पुरस्कृत होते.
प्रमिला ने ज़री बोर्डर की साड़ी और उसे पहनने की शैली से एक नए फैशन की शुरूआत की.
प्रमिला कों होलीवुड में काम करने का अनुबंध मिला. हुआ यों कि ‘जॉन कानफील्ड’
ने प्रमिला को ‘डॉटर ऑफ इंडिया’में अभिनय करने के लिए अनुबंध किया. लेकिन दुर्भाग्यवश उसी समय द्वितीय महायुद्ध शुरू हो गया था.
प्रमिला एक अन्य रोचक घटना के तहत एक अनोखी फिल्म की चर्चा करती हैं यह फिल्म थी सन १९४९ में बनी फिल्म ‘उल्टी गंगा’.इस फिल्म की कहानी ऐसी स्त्रियों की कहानी थी जो पुरुषों के लिए निर्धारित सभी काम मसलन, इंजन चलाना, रेलवे स्टेशन का प्रबंधन करना, आवागमन नियंत्रित करना, विवाह में अपनी शर्ते मनवाना आदि. लड़कियां, लड़कों पर सीटियाँ बजा रही हैं स्त्रियां अपने पतियों को ‘केवल पुरुषों’के लिए सवारी डिब्बो में बैठ कर सहयात्रियों कों उनका ध्यान रखने को कहती हैं.
इस कार्यशाला में महिलाओं कों सीख देते हुए प्रमिला कहती हैं कि स्त्रियों को अपना जीवन वैसा ही स्वीकार करना चाहिये जैसा उनके सामने आ खड़ा हो.
अपने जीवन काल में प्रमिला ने कई उतार चड़ाव देखे. ९२ वर्ष की उम्र में फिल्म अमोल पालेकर की एक मराठी फिल्म में अभिनय किया. यह उनकें जीवन की आखिरी फिल्म थी.
फिल्म अ
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