Home / ब्लॉग / 75 साल के नन्द किशोर नवल

75 साल के नन्द किशोर नवल


कल हिंदी के के वरिष्ठ आलोचक नन्द किशोर नवल 75 साल के हो रहे हैं। उनकी अथक ऊर्जा को प्रणाम। आज प्रस्तुत है उनके ऊपर हिंदी के प्रसिद्ध कवि कथाकार प्रेम रंजन अनिमेष का लिखा संस्मरण- जानकी पुल। 
================
         
नवल जी हिंदी के वरिष्ठतम आलोचकों में से एक हैं और अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से अपना एक विशिष्ट स्थान उन्होंने अर्जित किया है. उनके इस रूप से सभी परिचित हैं.  उनके पास अमूल्य अनुभवों की अकूत थाती है और हिंदी साहित्य संसार के अनेकानेक जीवंत संस्मरण. मेरा सौभाग्य रहा है कि उन संस्मरणों के अशेष कोश में से जब तब कई का साझा करने का सुअवसर मिला. अपने संकोची स्वभाव के चलते मैं बोलता कम हूँ. इसका लाभ यह होता है कि उनसे जब भेंट होती है उनकी बातों और संस्मरणों को ध्यान से श्रवण और और ग्रहण करने की कोशिश करता हूँ. मुझे उनसे संस्मरणों की एक पुस्तक की भी प्रत्याशा और प्रतीक्षा है जो निश्चय ही हिंदी जगत के लिए अत्यंत दुर्लभ और संग्रहणीय होगी.      
नवल जी की तरह साहित्य को पूरी तरह समर्पित व्यक्ति बिरले ही मिलेंगे. विशेष कर आज के समाज में. एक अकेला ‘निराला रचनावली’ के संपादन जैसा महत्कार्य उन्हें हिंदी जगत के लिए चिरस्मरणीय बनाने हेतु पर्याप्त है. लेकिन नवल जी की सृजनशीलता अबाध और अग्रगामी रही है… समय के साथ साथ और भी उर्वर और ऊर्जस्वी होती हुई. सक्रिय तो वे सदा से रहे पर वय में वृद्धि के साथ और शारीरिक परेशानियों के बावजूद उनकी रचनात्मक स्फूर्ति दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इसका साक्ष्य हैं पिछले कुछ वर्षों में रचित उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें. मैथिलीशरण गुप्त, तुलसीदास और अब सूरदास… उनकी सृजनशीलता अप्रतिहत और अविराम है.
सहित्य के प्रति पूर्ण अनुराग का एक उदाहरण यह कि सेवानिवृत्ति के उपरांत अपनी समस्त निधियाँ लगा कर उन्होंने महत्वपूर्ण पत्रिका कसौटी के यादगार अंक हिंदी को दिये. उसके कितने अंक उन्हें निकालने हैं और कैसी रूपरेखा होगी यह आरंभ से ही बिलकुल स्पष्ट था उनके आगे. हर अंक में आलोचनात्मक आलेखों के अलावा एक वरिष्ठ एवं नयी पीढ़ी के एक कवि की कवितायें साथ रहतीं. मेरा सौभाग्य कि पहले अंक में युवा कवि के रूप में उन्होंने मुझे चुना. कविताओं के लिए उन्होंने कहा तो अपनी सोलह या अठारह कवितायें मैंने उन्हें दीं. पढ़ने के बाद उनका संवाद मुझे आज भी याद है. मुक्तकंठ सराहना करते हुए दूरभाष पर उन्होंने ये शब्द कहें- आपकी कविताओं ने मेरी पत्रिका को जगमगा दिया है! जिस विश्वास के साथ मैंने इस प्रवेशांक के पहले कवि के रूप में आपको प्रकाशित किया है मुझे भरोसा है आप उसे आगे भी कायम रखेंगे. उनके शब्द सदैव मुझे प्रोत्साहित और श्रेष्ठ रचने के लिए प्रवृत्त करते रहते हैं.
मेरे कविता संग्रहों की पांडुलिपियाँ उन्होंने बड़े ही मनोयोग से देखीं और अपना अमूल्य परामर्श दिया. कवितायें वे बड़ी ही बारीकी से देखते हैं… उनके हर पक्ष का ध्यान रखते हुए. अपने तीसरे संग्रह संगत’ (जो इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है) की पांडुलिपि जब उन्हें भेजी, वे आधुनिक हिंदी कविता का इतिहास पुस्तक को लेकर अत्यंत व्यस्त थे. लेकिन उन्होंने अपना आशीर्वाद दिया और वह हमेशा मेरे साथ रहेगा. आने वाले दोनों कविता संग्रहों (बिना मुँडेर की छत) जो राजकमल प्रकाशन से जल्दी ही आने वाला है और अँधेरे में अंताक्षरी को भी उन्होंने स्नेहपूर्वक देखा है और सराहना के साथ ढेर सारी शुभकामनायें दी हैं. इसके लिए सदैव कृतज्ञ और आभारी रहूँगा उनका. मेरी कहानियों की चर्चा उन्होंने सुनी तो उत्साहित किया- कहानी संग्रह भी शीघ्र ले आइये… मैं पढ़ने को उत्सुक हूँ । यह उनका अगाध स्नेह और उससे मिला अधिकार ही है कि उन्हें इस वय में भी परेशान करने से हम बाज नहीं आते. अगली कविता पुस्तक की पांडुलिपि उनके लिए भिजवा चुका हूँ.
75 वर्ष पूरे होने पर उन्हें नमन और शुभकामनायें कि वे जीवन के सौ बसंत देखें जिससे हिंदी जगत का उपवन उनकी और कई कृतियों से पल्लवित पुष्पित एवं सुरभित  हो…!
       
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

2 comments

  1. नंदकिशोर नवल को मैंने एक ही बार बोलते सुना है. दिल्ली विश्वविद्याल में शिक्षकों का रिफ्रेशर कोर्स चल रहा था और उन्हें रीडर रिस्पांस थीअरि पर बोलने के लिए बुलाया गया था. मैं कोर्स की व्यवस्था टीम में शामिल था और अमूमन बाकी कामों के साथ सबों के व्याख्यान सुनता. नवलजी को सुनकर अभिभूत हो गया. कल्चरल स्टडीज के तहत मैंने कुछ-कुछ ये सब उन दिनों पढ़ा था और मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने जो कुछ भी कहा-बताया, वो बहुत ही सामयिक विमर्शों से जुड़े थे और सबसे अच्छी बात कि उन्होंने इस थीअरि को टिपिकल हिन्दी अंदाज में व्याख्या न करते हुए इसके संदर्भ पर बात की और काव्य हेतु को शामिल करते हुए कहीं से दावे नहीं किए कि ये अवधारणा हमारे यहां पहले से मौजूद थी.

  2. Hi, Neat post. There is a problem together with your web site in internet explorer,
    could test this? IE still is the marketplace leader and a large section of people will pass over your fantastic
    writing due to this problem.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *