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किताबें अंग्रेजी की लोकप्रियता हिंदी में

 ट्रेन हो या बस या फ्लाइट, इन दिनों हर तरफ युवाओं को उपन्यास, या कोई रोचक टाइटल वाली किताब पढ.ते देखा जा सकता है. ऐसे समय में जब यह कहा जा रहा है कि लोग किताबों से दूर हो रहे हैं और लिटरेचर पढ़ने की संस्कृति समाप्त होती जा रही है, उस दौर में ये तसवीर कुछ और ही कहानी बयां करती दिखती है. पिछले कुछ वर्षों में देश की रीडिंग हैबिट में बदलाव लाने का काम किया है. अंगरेजी में लिखनेवाले उन भारतीय लेखकों ने, जो युवाओं की जुबान में उनकी बात कर रहे हैं. अब तो इनके हिंदी अनुवाद भी काफी लोकप्रिय हो रहे हैं. पॉपुलर लेखन के मौजूदा परिदृश्य पर अवनीश मिश्रा का लेख- जानकी पुल.
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भारतीय प्रकाशन जगत इन दिनों सितारों की रोशनी से जगमगा रहा है. आखिर यह जगमगाहट क्यों न हो. उसके पास नाज करने के लिए खालिस भारतीय बेस्ट सेलर लेखक हैं, ‘वन मिलियन कॉपी सोल्डकी गौरव भरी घोषणाएं हैं. हजारों कॉपियों के प्री सेल ऑर्डर्स हैं. यह दरअसल, नये उभरते हुए लेखकों की सफलता की वह कहानी है, जो पिछले सात-आठ साल से धीरे-धीरे एक क्रांति की शक्ल लेती जा रही है और जिसने भारत के पब्लिशिंग व्यवसाय की सूरत को बदल कर रख दिया है.

अब लेखकों की लोकप्रियता वाया बुकर प्राइज या विदेशों में धूम मचाने की खबरों के नहीं आ रहीं. भारतीय लेखक ओवरसीज(विदेशी) बाजार में सफलता के पुराने नुस्खों के सहारे कहानियां लिखने के बजाय भारतीय पाठकों के लिए किताबें लिख रहे हैं. दरअसल, उन्हें विदेशी बाजार की कोई जरूरत भी नहीं क्योंकि भारत में ही उनकी किताबें हजार दो हजार नहीं, लाखों की संख्या में बिक रही हैं. यह उदारीकरण के बाद के भारत की सफलताकी अनगिनत कहानियों में से शायद सबसे ताजातरीन कहानी है, जिसके कई पन्ने अभी पलटे जाने बाकी हैं. भारत के नयी पीढ़ी के अंगरेजी लेखकों की सफलता की कहानी का उदारीकरण से गहरा नाता है. यह बेवजह नहीं है कि अंगरेजी लेखकों की नयी पीढ़ी में ज्यादातर चेहरे ऐसे हैं, जिनका वास्ता साहित्य या लेखन से पहले कभी नहीं रहा. इनमें से ज्यादातर कॉरपोरेट जगत में अपने लिए खास मुकाम बनाने वाले युवा हैं. इनका दावा है कि वे यंग इंडिया की धड़कनों को किसी और के मुकाबले बेहतर सुन सकते हैं और उसे वह कहानी सुना सकते हैं, जिसे वह सुनना चाहता है.

इस कहानी को शुरू करने के कई बिंदु हो सकते हैं, लेकिन हम आज से करीब आठ साल पहले लौटते हैं. किताब की दुकानों पर फाइव प्वाइंट समवनकिताब नजर आती है. लेखक का नाम : चेतन भगत. परिचय : आइआइटी दिल्ली और आइआइएम अहमदाबाद से पढ़ाई, इंवेस्टमेंट बैंकर. इसके बाद उनकी नयी किताब आयी वन नाइट द कॉल सेंटर. ये दोनों किताबें बिक्री के नये रिकॉर्ड स्थापित करती हैं. रूपा पब्लिकेशन, जिससे चेतन भगत की अब तक की सभी किताबें छपी हैं, के अनुसार भगत की इन दोनों किताबों की सम्मिलित बिक्री 10 लाख से ज्यादा का आंकड़ा पार कर चुकी है. जब वन नाइट द कॉलसेंटर बाजार में आयी तो पहले तीन दिन में 50000 कॉपियों की पहली प्रिंट बाजार से हाथों-हाथ उठा ली गयी. यहां से चेतन भगत सिर्फ पास टाइम लेखक नहीं रह जाते, वे सेलिब्रिटी में तब्दील में हो जाते हैं. उनकी अगली तीनों किताबें थ्री मिस्टेक्स ऑफ माइ लाइफ, टू स्टेट्स और रिवोल्यूशन 20-20 दुकानों से ऐसे उठायी जाती हैं, जैसे सुबह के समय अखबार वाले के यहां से अखबार खरीदे जाते हैं. चेतन भगत अब सिर्फ एक बेस्ट सेलर लेखक नहीं हैं. मीडिया चेतन भगत को यंग इंडिया की यंग आवाज बतलाता है. वे न्यूज चैनलों पर दिखायी देते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए संडे कॉलम लिखते हैं. देश भर में घूमघूम कर मोटिवेशनल स्पीच देते हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स उन्हें 2008 में भारत का सबसे ज्यादा बिकने वाला अंगरेजी लेखक करार देता है. टाइम मैगजीन उन्हें विश्‍व के सबसे ज्यादा प्रभावशाली 100व्यक्तियों में शुमार करती है. वह भी तब जब उनके पास न तो कोई अंतरराष्ट्रीय सम्मान है और न आलोचकों को उनकी किताबों में किसी किस्म की साहित्यिक गुणवत्ता नजर आती है.

फाइव प्वाइंट समवन से शुरू होने वाली कहानी 2010 में आयी अमीश त्रिपाठी की किताब इम्मोर्टल्स ऑफ मेलूहासे अचानक एक क्रांति की शक्ल लेती दिखाई देती है. चेतन भगत की तरह मैनेजमेंट पृष्ठभूमि से आने वाले और आइएमएम कलकत्ता के पासआउट अमीश की किताब अपने आकर्षक कवर और कवर के भीतर मिथक, इतिहास, रहस्य-रोमांच से भरी दिलचस्प दास्तानगोई के कारण पाठकों को काफी पसंद आती है. और हफ्ते भर के भीतर देश के बेस्ट सेलर में शुमार हो जाती है. भगवान शिव पर ट्राइलॉजी की दूसरी किताबसीक्रेट ऑफ नागाजभी पाठकों के बीच खासी लोकप्रिय होती है और चंद महीने के भीतर इसकी एक लाख से ज्यादा प्रतियां बिक जाती हैं. अमीश त्रिपाठी बताते हैं कि उनकी दोनों किताबों की कुल मिलाकर अभी तक साढे. सात लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं.

अमीश की ही तरह अगर किसी एक नाम ने खुद को पॉपुलर लेखकों के तौर पर स्थापित किया है तो वह है अश्‍विन सांघी का. जहां अमीश का जोर मिथक की ओर है, तो वहीं अश्‍विन सांघी, जो मूल रूप से एक बिजनेस मैन हैं, अपने उपन्यास की कहानी के लिए इतिहास का इस्तेमाल करते हैं. उनकी पहली द रोजाबल लाइन’(2008) किताब कश्मीर के रोजाबल दरगाह की उस मान्यता से जुड़ी हुई है, जिसके मुताबिक इस दरगाह में ईसा मसीह की अस्थियां सुरक्षित हैं. सांघी की दूसरी किताब चाणक्याज चैंटभी बिक्री के कीर्तिमान स्थापित करने में कामयाब रही है. उनकी तीसरी किताब कृष्णाज कीभी बाजार में आ चुकी है.

अमीश खुद को बिल्कुल नॉन क्रिएटिव इंसान मानते हैं और अपनी किताबों को शिव का आशीर्वाद कहते हैं. दिलचस्प यह है कि अमीश कुछ समय पहले तक एक तरह से नास्तिक थे, लेकिन शिव पर लिखी किताबों ने उन्हें शिव भक्त बना दिया है. अमीश ने जब इम्मोर्टल्स ऑफ मेलूहा लिखने की शुरुआत की, तो बिल्कुल कॉरपोरेट स्टाइल में पहले एक्सेल शीट पर उसकी प्लानिंग की. लेकिन यह मैनेजमेंटी तरीका काम नहीं आया. अमीश के मुताबिक जब तक उन्होंने प्लॉट पर नियंत्रण रखने की कोशिश की, वे कुछ नहीं लिख सके. तब उनकी पत्नी ने उन्हें सलाह दी कि कहानी जैसे बढ.ती है, बढ.ने दो उस पर नियंत्रण करने की कोशिश मत करो. उन्होंने ऐसा ही किया और कहानी बनती गयी. अगर आज अमीश यह कहते हैं कि कहानी वे नहीं लिखते, बस उसके माध्यम भर हैं, तो उसमें उनकी शिव के प्रति गहरी आस्था ही प्रकट होती है. अश्‍विन सांघी अपनी किताबों के लिए प्वाइंट दर प्वाइंट तैयारी करते हैं और लिखना शुरू करने से पहले पूरे उपन्यास का खाका तैयार कर लेते हैं. तीन-तीन बेस्ट सेलर किताबों के बाद भी अगर वे खुद को ऑथर मानने की जगह कहानियां सुनाने वाला ही मानते हैं, तो इसे उनका बड़प्पन ही कहा जा सकता है. दिलचस्प यह है कि अश्‍विन सोमवार से शुक्रवार तक अपने ऑफिस में जम कर काम करते हैं और शनिवार एवं रविवार को किताब लिखते हैं. बाकी दिन भी वे घर लौट कर किताब पर काम करते रहते हैं. किताब लिखने के लिए वे चार हफ्ते की बुक हॉलिडे लेते हैं और उसी में किताब को अंतिम शक्ल देते हैं.

यहां एक ध्यान देने वाली बात यह है कि इन किताबों के हिंदी अनुवाद की भी अच्छी खासी बिक्री हुई है. हिंदी में जहां किसी किताब की अमूमन ग्यारह सौ प्रतियां ही छपती हैं, इन लेखकों की किताबों के हिंदी अनुवाद कहीं ज्यादा संख्या में बिक रहे हैं. हालांकि इसकी एक वजह इन किताबों की कीमत भी है. चेतन भगत की किताबों की कीमत 100 रुपये के करीब होती है, जो एक सिनेमा के टिकट की कीमत से भी कम ठहरती है और इसे एक साथ कई लोग पढ. सकते हैं. जाहिर है यह कम पैसे में चोखा मनोरंजन वाला मामला है. अमीश बताते हैं कि उनकी किताबों के हिंदी अनुवादों- मेलूहा के मृत्युंजयऔर नागाओं के रहस्यको अच्छा रिस्पांस मिला है, और हिंदी में आयी उनकी दोनों किताबों की तकरीबन 35 हजार कॉपियां बिक गयी हैं. अश्‍विन सांघी भी हिंदी किताबों की बिक्री से संतुष्ट नजर आते हैं. प्रप्रभात प्रकाशन से मिली जानकारी के मुताबिक चेतन भगत की किताबों के अनुवाद की अच्छी खासी संख्या में बिक्री हुई है.

लेकिन अभी भी हिंदी किताबों की डिस्ट्रीब्यूशन की समस्या बनी हुई है. पिछले दिनों अंगरेजी प्रकाशक वेस्टलैंड और हिंदी प्रकाशक यात्रा द्वारा मिलकर किताबों का नया सेट रिलीज करने के मौके पर यात्रा बुक्स की निदेशक नमिता गोखले ने भी इस समस्या की ओर इशारा किया. अमीश भी इस समस्या की ओर इशारा करते हैं और कहते हैं कि जब तक किताबें दिखेंगी नहीं, तब तक बिकेंगी कैसे और हिंदी की किताबें दिखती नहीं हैं. अमीश ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि किस तरह से उन्हें मराठी में लिखी गयी मृत्युंजय के हिंदी अनुवाद की कॉपी खरीदनी थी और उन्हें इसके लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ी. इस मुश्किल से हिंदी प्रकाशन जगत काफी अरसे से जूझ रहा है और किताबों की बिक्री के लिए पुस्तक मेलों पर उसकी आज भी निर्भरता बनी हुई है. नमिता गोखले को उम्मीद है कि हिंदी का बाजार खुलने को तैयार है और अगर पाठकों तक किताबें पहुंचायी जायें तो कोई कारण नहीं कि वे उसे पढ़ना नहीं चाहेंगे.

अमीश कहते हैं कि यह सही है कि भारत में करोड़ों की संख्या में अंगरेजी बोलने वाले लोग हैं, लेकिन हकीकत तो यही है कि देश के टॉप दस अखबारों में अंगरेजी का सिर्फ एक अखबार है. बाकी सब क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार हैं. ऐसे में कोई कारण नहीं कि जब लोगों को उनकी ही कहानी उनकी ही जुबान में सुनाई जाये तो वे इसे पढ.ना नहीं चाहेंगे. अश्‍विन सांघी भी कहते हैं कि उनके उपन्यास चाणक्य मंत्र की पूरी कहानी कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ जैसे शहरों में घूमती है. यह स्वाभाविक है कि हिंदी प्रदेश के लोग अपनी कहानियां अपनी भाषा में पढ.ना चाहें.

यह सही है कि आज के दौर की बेस्ट सेलर किताबें अपनी बिक्री संख्या के बावजूद शायद ही साहित्यिक रूप से उम्दा किताबों के तौर पर गिनी जायें. हो सकता है कि आपको इनकी भाषा से भी ऐतराज हो. हो सकता है कि ये किताबें आपको थोड़ी-सी सतही लगें. हो सकता है कि इनमें आपको सिर्फ कोरा मनोरंजन नजर आये. लेकिन क्या यह हकीकत नहीं है कि पॉपुलर राइटिंग से कटने का एक बेहद नकारात्मक परिणाम हमारे सामने में यह है कि आज का बड़ा पाठक वर्ग अच्छी किताबोंसे तो क्या किताबों से ही कट गया है. वह जमाना दूसरा था जब गुलशन नंदा की रूमानियत से भरी किताबें नयी बहुएं अपने घर में चोरी छिपे पढ़ा करती थीं. राजेंद्र यादव जैसे कथाकार अपनी जवानी के दिनों जासूसी उपन्यास चाट डाला करते थे. आज हिंदी किताबें एक खास दायरे में कैद हो कर रह गयी हैं. इस दायरे से बाहर आने की जरूरत है. खुद अंगरेजी प्रकाशन जगत में स्थिति इससे बेहतर शायद ही थी. वहां भी कुछ वर्ष पहले तक पॉपुलर को खास तवज्जो नहीं दी जाती थी और अगर किसी किताब की 5000 प्रतियां बिक जाती थीं तो उसे बेस्ट सेलर करार दिया जाता था. लेकिन नये पॉपुलर लेखकों ने इस परिदृश्य को बदल कर रख दिया है. ये लेखक सलमान रुश्दी, विक्रम सेठ या अरुंधति राय होने का दावा नहीं कर रहे. वे इंटरटेनिंग और इंगेजिंग किताब लिखने की कोशिश कर रहे हैं और पाठक उन्हें अपना रहे हैं. यहां कहीं गुमनामी से एक रविंदर सिंह अपनी प्रेम कहानी लेकर आता है और देखते-देखते उसकी दस लाख कॉपियां बिक जाती हैं. इन लेखकों को अपनी किताबों के प्रमोशन और मार्केटिंग से भी गुरेज नहीं है. बल्कि अमीश कहते हैं कि किताब उनके बच्चे के समान है. वह बाजार में कैसा प्रदर्शन कर रहा है, यह देखना उनकी जवाबदेही है.

दरअसल, चेतन भगत, अमीश त्रिपाठी और अश्‍विन सांघी भारत के लेखकों की उस नयी पीढ.ी का प्रप्रतिनिधित्व करते हैं, जो बड़ा लेखक होने का दावा किये बगैर खुद को सिर्फ एक स्टोरी टेलर मानता है. यह एक ऐसी पीढ़ी है, जिसमें हर किसी के पास कहने के लिए अपनी एक कहानी है और सुनाने के लिए कोई दिलचस्प वाकया है. किसी के पास अपना सपना है (आइ हैव अ ड्रीम : रश्मि बंसल ), किसी के पास अपनी प्रेम कहानी है(आइ टू हैड अ लव स्टोरी : रविंदर सिंह), किसी के पास युवा भारत के लिए मोटिवेशन मंत्र है (व्हाट यंग इंडिया वांट्स : चेतन भगत) किसी के पास वजन घटाने का अचूक नुस्खा है(डॉन्ट लूज योर माइंड, लूज योर वेट : ऋजुता दिवेकर), कोई बस्तर के अनुभव के साथ है (हलो बस्तर: राहुल पंडिता). किसी के पास अपने पेशे से जुड़े बिकाऊ अनुभव हैं (द इंक्रेडिबेल बैंकर, इफ गॉड वाज अ बैंकर : रवि सुब्रह्मण्यम).

यह नया भारत है जो एक दूसरे के अनुभव को साझा करना चाहता है. आप उनसे प्यार करें या नफरत, लेकिन सच्चाई यही है कि नये जमाने के नये लेखकों ने अपनी साधारण सी दिखती कहानियों के ही सहारे भारतीय प्रकाशन जगत को बदल कर रख दिया है. 

 
      

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4 comments

  1. शुक्रिया पुष्यमित्र जी …

  2. बढियां विषय और बढियां लेख… मगर हम हिंदी वालों के पास इसके बारे में सोचने के लिए वक़्त कहाँ है… हम बहस करते हैं कि फलां कवि फलां जगह गया था… और फलां की कविता में अश्लीलता है या नहीं…

  3. Thanks for your helpful article. Other thing is that mesothelioma is generally brought on by the breathing of fibers from asbestos, which is a positivelly dangerous material. It really is commonly noticed among personnel in the engineering industry who have long contact with asbestos. It can also be caused by residing in asbestos insulated buildings for years of time, Genetics plays a crucial role, and some persons are more vulnerable to the risk compared to others.

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