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वरिष्ठ लेखकों की नजर में हिंदी का क्लासिक साहित्य

हिंदी साहित्य में क्लासिक की खोज में युवा लेखक-पत्रकार विनीत उत्पल ने हिंदी के कुछ प्रमुख लेखकों से बात की और यह जानने की कोशिश की कि आखिर उनकी नजर में कालजयी कृतियाँ कौन-सी हैं.  उदय प्रकाश, राजेंद्र यादव, निर्मला जैन, काशीनाथ सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी, चित्रा मुद्गल और देवेन्द्र राज अंकुर के ‘क्लासिक्स’ यहां प्रस्तुत हैं- जानकी पुल.
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बाजार और प्रचार

देश के हर शहर में पाठय़-पुस्तकों की दुकानें मिल जाती हैं लेकिन साहित्यिक किताबों की अलग दुकानें शायद ही दिखेंगी। यदि संयोगवश किसी दुकान में साहित्यिक कृतियां मिलेंगी तो उन किताबों की जगह किसी कोने में होगी। इसका सीधा-सा मतलब है कि या तो हिन्दी की साहित्यिक कृतियों की मांग नहीं है या फिर विक्रेता जागरूक नहीं हैं। आज हर शहर में म्यूजिक स्टोर दिख जाते हैं। मॉल्स, मेट्रो स्टेशनों, हवाई अड्डों पर जो भी बुक शॉप हैं, वहां अंग्रेजी की किताबें धड़ल्ले से बिक रही हैं लेकिन हिन्दी साहित्य का कोना दिखाई तक नहीं देता। रेलवे स्टेशनों पर जो भी दुकानें हैं, वहां या तो पुरानी साहित्यिक पुस्तकें हैं या फिर वही पुस्तक हैं जो यात्रियों के लिए टाइम पास का काम करती हैं। वहां सस्ता साहित्य अधिक होता है।
पुस्तकों की बिक्री के मामले में पाठकों को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि यदि पुस्तकें नहीं बिकतीं तो शहर-शहर पुस्तक मेलों का आयोजन भी नहीं होता। किताब बिकने या न बिकने से अधिक इनकी पब्लिसिटी का दोष है। आज हिन्दी फिल्मों का बाजार व्यापक हो रहा है लेकिन हिन्दी रचनाओं का बाजार सिकुड़ रहा है। हिन्दी की रचनाओं की पब्लिसिटी कितनी होती है, यह सवाल अहम है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पब्लिसिटी के आधार पर ही लोग फिल्में देखने जाते हैं और वह रिलीज होने से पहले ही हिट करार दी जाती है। जब फिल्मी कलाकार को हीरो/हीरोइन के तौर पर प्रमोट किया जा सकता है तो किसी लेखक को क्यों नहीं असली हीरो के तौर पर प्रमोट किया जा सकता है। ऐसे में, यदि किसी किताब की पब्लिसिटी की जाए तो जाहिर सी बात है कि वह किताब धड़ल्ले से बिकेगी। समय बदल चुका है। अब कोई भी दर्शक पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा पढ़कर फिल्म देखने नहीं जाते। यही हाल साहित्यिक रचना का है। यही कारण है कि पुस्तक समीक्षा छपने की प्रथा पुरानी हो चुकी है। यदि किसी पुस्तक के बारे में छपती भी है तो सिर्फ परिचय। अहम बात तो यह है कि परिचय और समीक्षा प्रायोजित होने लगे हैं। यही कारण है कि समीक्षाओं को सिर्फ लेखक ही पढ़ते हैं, आम पाठकों को इससे कोई ज्यादा लगाव नहीं होता। यदि समीक्षा पढ़कर किसी किताब की बिक्री होती तो हिन्दी की किताबें बेस्ट सेलर बनी होतीं।
विनीत उत्पल 
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उदय प्रकाश

1. परीक्षा गुरु- लाला श्रीनिवास दास 2. चंद्रकांता संतति- देवकीनंदन खत्री 3. उसने कहा था- चंद्रधर शर्मा गुलेरी’ 4. गोदान- मुंशी प्रेमचंद 5. मैला आंचल- फणीश्वरनाथ रेणु 6. झूठा सच- यशपाल 7. जहाज का पंछी- इलाचंद्र जोशी 8. बूंद और समुद्र- अमृतलाल नागर 9. शेखर : एक जीवनी- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय 10. बलचनमा- नागार्जुन
राजेंद्र यादव
1. चंद्रकांता संतति- देवकीनंदन खत्री 2. गोदान- मुंशी प्रेमचंद 3. शेखर : एक जीवनी- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय 4. संन्यासी- इलाचंद्र जोशी 5. दिव्या- यशपाल 6. मुर्दे का टीला- रांगेय राघव 7. राग दरबारी- श्रीलाल शुक्ल 8. मैला आंचल- फणीश्वरनाथ रेणु 9. नौकर की कमीज- विनोद कुमार शुक्ल 10. चाक- मैत्रेयी पुष्पा
निर्मला जैन
1.रामचरित मानस- तुलसीदास २. सूरसागर- सूरदास 3. गोदान- मुंशी प्रेमचंद ४. मैला आंचल-फणीश्वरनाथ रेणु  5. शेखर : एक जीवनी- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ६.चाँद का मुंह टेढ़ा है -गजानन माधव मुक्तिबोध ७. ८.आधा गाँव- राही मासूम रजा  ९.अँधा युग- धर्मवीर भारती १०.बूंद और समुद्र- अमृतलाल नागर    
काशीनाथ सिंह

1. गोदान- मुंशी प्रेमचंद 2. कामायनी- जयशंकर प्रसाद 3. हिन्दी साहित्य का इतिहास- रामचंद्र शुक्ल 4. परिमल- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 5. त्यागपत्र- जैनेंद्र कुमार 6. बाणभट्ट की आत्मकथा- हजारी प्रसाद द्विवेदी 7. शेखर : एक जीवनी- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय 8. झूठा सच- यशपाल 9. चांद का मुंह टेढ़ा है- गजानन माधव मुक्तिबोध 10. राग दरबारी- श्रीलाल शुक्ल
विश्वनाथ त्रिपाठी
1. अंधेर नगरी- भारतेंदु हरिश्चंद्र 2. शिवशंभू का चिट्ठा- बालमुकुंद गुप्त 3. गोदान- मुंशी प्रेमचंद 4. रंगभूमि- मुंशी प्रेमचंद 5. हिन्दी साहित्य का इतिहास- रामचंद्र शुक्ल 6. अनामिका- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 7. बाणभट्ट की आत्मकथा- हजारी प्रसाद द्विवेदी 8. मैला आंचल- फणीश्वरनाथ रेणु 9. अकाल और उसके बाद- नागार्जुन  10. कामायनी- जयशंकर प्रसाद
चित्रा मुद्गल
1. गोदान – मुंशी प्रेमचंद 2. मुर्दाघर- जगदम्बा प्रसाद दीक्षित 3. काला जल- गुलशेर खान शानी 4. मैला आंचल- फणीश्वरनाथ रेणु 5. राग दरबारी- श्रीलाल शुक्ल 6. झूठा सच- यशपाल 7. शेखर एक जीवनी- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय 8. चित्रलेखा- भगवती चरण वर्मा 9. बूंद और समुद्र- अमृत लाल नागर 10. मृगनयनी- वृंदावन लाल वर्मा
देवेंद्र राज अंकुर
1. कामायनी- जयशंकर प्रसाद 2. गोदान- मुंशी प्रेमचंद 3. आषाढ़ का एक दिन- मोहन राकेश 4. आवारा मसीहा- विष्णु प्रभाकर 5. संस्कृति के चार अध्याय- रामधारी सिंह दिनकर 6. शेखर : एक जीवनी- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय 7. जिंदगीनामा- कृष्णा सोबती 8. क्या भूलूं क्या याद करूं- हरिवंशराय बच्चन 9. महाभोज- मन्नू भंडारी 10. अंधा युग- धर्मवीर भारती
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इन्हें भी पढ़ा जाना चाहिए
उदय प्रकाश
ईदगाह, गुल्ली डंडा, कफन -प्रेमचंद, परती परिकथा, रसप्रिया, मारे गए गुलफाम -फणीश्वरनाथ रेणु, धरती धन न अपना, कभी न छोड़ें खेत – जगदीश चंद, गिरती दीवारें -उपेंद्र नाथ अश्क, वरुण के बेटे -नागाजरुन, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद लेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा – हजारी प्रसाद द्विवेदी, कुरु-कुरु स्वाहा, कसप -मनोहर श्याम जोशी, नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे -विनोद कुमार शुक्ल, जूठन -ओमप्रकाश वाल्मीकि, कालाजल -गुलशेर खान शानी, मुर्दहिया -तुलसीराम, जानो तो गाथा है -पुष्पा तिवारी, राग दरबारी -श्रीलाल शुक्ल, (कविता, आलोचना, यात्रा संस्मरण, आत्मकथा इस लिस्ट में शामिल नहीं है।)
राजेंद्र यादव
आपका बंटी -मन्नू भंडारी, शिगाफ- मनीषा कुलश्रेष्ठ, बाणभट्ट की आत्मकथा -हजारी प्रसाद द्विवेदी, चित्रलेखा -भगवती चरण वर्मा (यह लिस्ट सिर्फ उपन्यासों की है)
देवेंद्र राज अंकुर
दुविधा -विजयदान देथा, भूले बिसरे चित्र -भगवती चरण वर्मा, झूठा सच -यशपाल, काशी का अस्सी -काशीनाथ सिंह, चहारदर -असगर वजाहत, प्रेम की भूतकथा -विभूति नारायण राय
विश्वनाथ त्रिपाठी
देहाती दुनिया -शिवपूजन सहाय, अपनी खबर -पांडेय बेचन शर्मा उग्र’, दूसरी परंपरा की खोज -नामवर सिंह, निराला की साहित्य साधना – रामविलास शर्मा। (गालिब के पत्र, परसाई रचनावली। कवि में विनोद कुमार शुक्ल, नरेश सक्सेना की कविताएं अच्छी लगती हैं। अमरकांत, शेखर जोशी, ज्ञानरंजन, दीपक श्रीवास्तव की कहानियां काफी अच्छी हैं। (यह लिस्ट भारतेंदु युग के बाद की है)
काशीनाथ सिंह

 
      

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4 comments

  1. अलका सरावगी और सुरेन्द्र वर्मा की याद किसी को नहीं आई.

  2. तकरीबन हर सूची में गोदान और मैला आंचल है…अच्छा लगा..

  3. महत्वपूर्ण कार्य के लिए बधाई .कस्बे के नोट्स –निलेश रघुवंशी है .

  4. प्रकाशक किसी भी पुस्तक की मार्केंटिंग लाईब्रेरी तक करने पर ज्यादा जोर देते है.पाठक वर्ग पर कम ध्यान देते है.असली मुनाफा पुस्तकालयों से होता है.वहीं पर सैटिंग-गैटिंग करने में लगे रहते है.दूसरी तरफ विभागों और लेखकों के बीच के संबंधों का समीकरण भी अहम भूमिका निभाता है.लुगदी साहित्य और असली साहित्य का भेद भी नकारात्मक सोच को उजागर करता है.जो विस्तार को रोकता है

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