आज बाल दिवस पर कुछ बाल कविताएँ. कवि हैं भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवि प्रेम रंजन अनिमेष– जानकी पुल.
===============
1.
मोटी रोटी
दादी की यह मोटी रोटी
छूछी भी लगती है मीठी
गेहूँ मकई चना मिला है
घर की चक्की का आटा है
उपलों पर इसको सेंका है
सत कुछ बूढ़े हाथों का है
जैसे जीवन जैसे माटी
सोंधी सोंधी लगती रोटी
2.
अलस
मैं भी रानी तू भी रानी
कौन भरे गगरी में पानी
गगरी खुद जाये पनघट तक
भरकर आ जाये चौखट तक
पर फिर गगरी कौन झुकाये
कोई आये और पिलाये
पानी की देखो मनमानी
सूखे होंठ, आँख में पानी
३.
टमटम
हमने उस पर चलना छोड़ा
रोता रहता इक्के वाला
मैंने वचन उसे दे डाला
तेरा इक्का ले जाऊँगा
कल सूरज इस पर लाऊँगा
खुश हो उसने घोड़ा जोड़ा
खाया और खिलाया थोड़ा
४.
गुपचुप
नजर लगी थी सबकी छुपछुप
गुपचुप गुपचुप खाया गुपचुप
गुपचुप फूटा कर के हल्ला
मुँह में उमड़ा रस का कुल्ला
उस कुल्ले को रहे दबाये
आँखों में आँसू भर आये
फिर सबसे जायेंगे छुपछुप
गुपचुप फिर खायेंगे गुपचुप
५.
माचिस
नन्ही गुमसुम सीधी सादी दिखती माचिस
अपने भीतर आग छुपा कर रखती माचिस
कहती है लौ हूँ मैं जलती जो दीये में
हूँ वह आँच जला करती है जो चूल्हे में
सहल बहुत है यहाँ वहाँ बस आग लगाना
लेकिन मुश्किल अपने दिल में आग जुगाना
हर छूने वाले के हाथ निरखती माचिस
दो कौड़ी की है पर हमें परखती माचिस
६.
डाक
चुहिया इक दिन गयी डाकघर
बड़े लिफाफे में जा छुप कर
दे डाले कुछ प्यारे बच्चे
खत पहुँचा तो वे भी पहुँचे
पत्र सँभाले चला डाकिया
था वह जिसका उसे दे दिया
पाने वाले इसको पढ़ कर
देना तुम जल्दी से उत्तर
७.
छड़ी
छड़ी पुरानी है पर सुंदर
दादाजी चलते हैं लेकर
हरदम साथ लगी रहती है
चलते बात किया करती है
सोचूँ उनके सो जाने पर
ले आऊँ यह छड़ी उठा कर
ऊबड़ खाबड़ जीवन पथ पर
चलूँ उन्हीं की छड़ी टेक कर
८.
जुगाली
करती भैंस जुगाली है
समय अभी कुछ खाली है
भर जाता है जब भीतर
धीरे धीरे ला बाहर
अच्छी तरह मिलाती है
रसमय उसे बनाती है
यह भी सोच निराली है
करना याद जुगाली है
९.
पहेली
मन से एक पहेली रचना
कोई नयी नवेली रचना
सब जिसको सुलझाना चाहें
समझें औ’ समझाना चाहें
हारे नहीं नहीं जो बूझा
सोचे किसको कैसे सूझा
ऐसी अजब पहेली रचना
दुनिया रंग रँगीली रचना
१०.
अलाव
शीत बहुत है तो मत काँपो
थोड़ी आग जला कर तापो
चुन कर लाओ जो कुछ बिखरा
फिर उसको लह लह दो लहरा
आँच सेंत लो इन हाथों में
बचा रखो उसको बातों में
बैठ अकेले दुख मत जापो
११.
जीवन जल
आया सावन बरसा सावन
भर कर रख लो सारे बरतन
धरती इतना हिस्सा पानी
इस तन में भी कितना पानी
भीतर उमगे बाहर छलके
बिना गरज आँसू बादल के
पानी में बजती यह धड़कन
पानी पर चलता यह जीवन
१२.
चिट्ठी
इस दुनिया की पहली चिट्ठी
तिनकों ने पत्तों पर लिक्खी
बाँध दिये कुछ चिडि़यों के पर
उसे ले गयी हवा उड़ा कर
औरों को लिख खुद को पढ़ना
खत लिखना रिश्तों को गढ़ना
यह दुनिया परिवार एक ही
दिल से दिल को भेजो चिट्ठी
बच्चों के लिए लिखना वाकई चुनौतीपूर्ण है। प्रेमरंजन ने इस चुनौती को स्वीकार करके अपनी काव्यक्षमता की रेंज से परिचित कराया है। मेरे प्रिय युवा कवि को बधाई।
Bachpan yaad aa gaya
baal diwas ki shubhkamnaen..