भानु भारती के निर्देशन में गिरीश कर्नाड के नाटक ‘तुगलक’ का भव्य मंचन दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हुआ. इस नाटक की प्रस्तुति को लेकर बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है अमितेश कुमार ने- जानकी पुल.
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“निर्देशक का यह मूलभूत कर्तव्य है कि वह नाटक के अर्थ को सशक्त दृश्यबिंबों के ऐसे क्रम में जमा दे कि दर्शको को अनजाने में ही उसका ग्रहण सुलभ हो जाय।“ इब्राहिम अलकाज़ी ने यह ‘तुगलक़’ के निर्देशकीय में कहा था. तुगलक देखे के लौटा तब से यह लाईन घूम रही थी दिमाग में. घर आया नाटक निकाला और पढ़ा. अब तुगलक को देखने का दरवाजा मेरे सामने खुल चुका था, और फिर वह जमीन दिखने लगी जिस पर इस “तुगलक” की भव्यता का महल खड़ा है, जो दिल्ली सरकार की, भानु भारती की और वर्ष की सबसे महत्वाकांक्षी नाट्य प्रस्तुति है. जिसके लिये जारी किये गये पास बाक्सआफिस खुलने के कुछ घंटो बाद ही बंट गए, जिसकी प्रस्तुतियां दो दिन बढ़ानी पड़ी, जिस प्रस्तुति के विरोध में रंगकर्मियों के एक व्यापक समुदाय में आक्रोश भी रहा, जिसके लिये वैसे अभिनेता काम में लाए गए जो फ़िल्मों में अधिक सक्रिय हैं, जिस नाटक के स्वागत के लिये मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों ने अपनी बांह फैला दिए, जिसके बड़े बड़े होर्डिंग दिल्ली में टंगे थे, जिसे दिल्ली का हर संस्कृति
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matalab
मैं भी वहीँ था दोस्त लेकिन हम कहाँ थे !
यह अब तक मेरे द्वारा पढ़ी गई तुगलक के इस प्रस्तुति की बेहतरीन, बिना किसी लाग लपेट के एक निर्भीक, तार्किक और गंभीर समीक्षा है जिसमें तुगलक नाटक और प्रस्तुति को लेकर अंदर बाहर चल रही राजनीति से जुड़े महत्वपूर्ण तत्वों को समझाने – परखने की सार्थक कोशिश झलकती है. पूर्वाग्रहों, छपास और दरबारी सुख से पूरी तरह मुक्त. अमितेश के पास रंगमंच की समझ और भाषा तो है जिसे वो निरंतर काफी मेहनत से लगातार निखार रहें हैं. हलाकि रंगमंच के वर्तमान आत्ममुग्धता भरे माहौल में ये संभव नहीं फिर भी उम्मीद तो किया ही जा सकता है कि लोग इसे सकारात्मक लें और अमितेश की बातों पर गंभीरता पूर्वक विचार करें. ये एक ऐसे युवा कट्टर रंगमंच प्रेमी हैं जिनकी चिंता के मूल में रंगमंच है, कोई व्यक्ति विशेष या संस्था नहीं. बधाई अमितेश निर्भीकता का निष्पक्ष आलम बरक़रार रहे.
bade log hain. kai kam hain. thik se rehachal nahi karenge to yahi sab hoga. natak ek sadhna hai koi bajaru cheez nahi jise koi bhi kaise bhi karle
bhanu bharti ko tuglak nahi karna chahiye tha. unke bas ka keval ghante bhar ka gharelu natak hai .andha yug ke andhere me kho gaye aur tuglak ke tez ko sambhal nahi paye.ek kahawat hai – kauwa chale hans ki chal.