बेजोड़ गद्यकार मनोहर श्याम जोशी ने ‘कूर्मांचली’ के नाम से कविताएँ भी लिखी हैं. उन्होंने अपनी कविताओं के विषय में लिखा है कि अज्ञेय उनकी कविताओं को ‘तीसरा सप्तक’ में शामिल करना चाहते थे. लेकिन उन्होंने अपनी कविताएँ अज्ञेय जी को समय पर नहीं दी इसलिए वे ‘सप्तक कवि’ बनते बनते रह गए. लेकिन अपने जीवन काल में उन्होंने अपनी कविताओं का कोई संकलन प्रकाशित नहीं करवाया. उनके मरने के कई साल बाद उनकी कविताओं का पहला संचयन ‘कूर्मांचली की कविताएँ’ नाम से वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हो रहा है. उसी संग्रह से कुछ कविताएँ- प्रभात रंजन.
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१.
यह क्षण
आंखें मिलाये हुए
बांहें उलझाये हुए
हम तुम लेटे हुए हैं दूब में
दूब में खिले हैं फूल धूप के
धूप में खिले हैं फूल रूप के
ऐसे ही लेटे रहें दूब में
आंखें मिलाये हुए, बांहें उलझाये हुए
अभी क्या? अभी तो यह कुछ भी नहीं
(लगता है लेटे हैं रोज की तरह यों ही)
पर कभी गाढ़े वक्त काम आएगी इसी क्षण की याद
क्षण का जीवन शुरु होता है क्षण के मर जाने के बाद.
मुक्तेश्वर, अगस्त १९५२
२.
‘काफल पाको’
आओ सुनें चुपचाप चिड़िया का गान
‘काफल पाको त्वील नी चाखो’१ की मधुर तान
सुनें उसे बस और कुछ न सुनें
कुछ न करें, बस सुनें सुनें
सुनते रहें चुपचाप.
न गिनें कि जंगल में देवदार कितने हैं?
कितने बांज? चीड़ कितने हैं?
न सुनें वायु का रुदन
झरनों की छल छल कल कल
पत्तों की सर सर खर खर
झींगुरों की झिंग झनन झनन
कुछ न करें बस लेटे रहें
पास पास घास पर
सुनते रहें चिड़ियों का गान
‘काफल पाको त्वील नी चाखो’१ की मधुर तान
जब तक अनायास ही
हमारे होंठों से प्यास किसी पिछले जीवन की न फूट पड़े
बन
‘काफल चाखो मील नी चाखो’२ की मधुर तान
१.काफल पके तुने नहीं चखे
२.काफल पके मैंने नहीं चखे
मुक्तेश्वर, अक्टूबर, १९५२
३.
कवि से
कवि यदि गाना हो तो कविता में मत गाओ
कविता दुःख सुख की अभिव्यक्ति नहीं है
और नहीं है सस्ता साधन मन की खाज मिटाने का वह
आप गुदगुदाने का
अपने तन को,
मन को बहलाने का,
या कल्पना रिझाने का.
निश्चय ही कविता
दुःख की या सुख की
अभिव्यक्ति नहीं है
कविता तो वह है जो, सुख-दुःख के आकर भर कर अंतर में
बह जाने के बाद
रहा करता है—
वह जो बच जाता है अपना.
कवि यदि वह बच पाया तो कह जाओ
कवि यदि गाना हो तो कविता में मत गाओ.
अजमेर, जुलाई, १९५३
४.
रिश्ता
एक ही रिश्ता है जिसे मैं मानता हूं
कि सबके अपने सपने हैं
और फिर वे अपने हैं
जिनके कुछ अपने से सपने हैं.
५.
मीनार पर
बहुत परिश्रम कर
एक ऊंची मीनार के शिखर पर पहुँच कर
बैठ कर पालथी मारे
मैं पूरे करने लगा अपने इरादे
हँसने लगा भभाकर
बावरी बेवकूफ दुनिया पर
पर तभी सर्र सर्र
हवा ने कहा मेरे कान पर मुँह धर
‘पगले तू इतने ऊंचे बैठा है
कि तेरी हँसी कोई नहीं सुनता है.’
बहुत अच्छे। जोशी जी की जय हो!