हाल में ही राजकमल प्रकाशन से एक किताब आई है ‘प्रारंभिक रचनाएं’, जिसमें नामवर सिंह की कुछ शुरूआती रचनाओं को संकलित किया गया है. संपादन भारत यायावर ने किया है. उसमें नामवर जी की कुछ आरंभिक कविताएँ भी हैं. उसी में से कुछ चुनी हुई कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल.
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१.
कभी जब याद आ जाते
कभी जब याद आ जाते
नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन
न दुःख मिलता न सुख मिलता
न जाने प्रान क्या पाते.
तुम्हारा प्यार बन सावन,
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन
विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मडराते.
झुका-सा प्रान का अम्बर,
स्वयं ही सिंधु बन-बनकर
ह्रदय की रिक्तता भरता
उठा शत कल्पना जलधर.
ह्रदय-सर रिक्त रह जाता
नयन घट किंतु भर आते.
कभी जब याद आ जाते.
२.
नभ के नीले सूनेपन में
नभ के नीले सूनेपन में
हैं टूट रहे बरसे बादर
जाने क्यों टूट रहा है तन!
बन में चिड़ियों के चलने से
हैं टूट रहे पत्ते चरमर
जाने क्यों टूट रहा है मन!
घर के बर्तन की खन-खन में
हैं टूट रहे दुपहर के स्वर
जाने कैसा लगता जीवन!
३.
फागुनी शाम
फागुनी शाम अंगूरी उजास
बतास में जंगली गंध का डूबना
ऐंठती पीर में
दूर, बराह-से
जंगलों के सुनसान का कुंथना.
बेघर बेपरवाह
दो राहियों का
नत शीश
न देखना, न पूछना.
शाल की पंक्तियों वाली
निचाट-सी राह में
घूमना घूमना घूमना.
४.
पारदर्शी नील जल में
पारदर्शी नील जल में सिहरते शैवाल
चांद था, हम थे, हिला तुमने दिया भर ताल
क्या पता था, किंतु प्यासे भी मिलेंगे आज
दूर होंठों से, दृगों से सम्पुटित दो नाल
५.
पथ में साँझ
पथ में सांझ
पहाड़ियां ऊपर
पीछे अंके झरने का पुकारना
सीकरों की मेहराब की छाँव में
छूटे हुए कुछ का ठुन्कारना
एक ही धार में डूबते
दो मनों का टकराकर
दीठ निवारना
याद है, चूड़ी के टूक-से चांद पे
तैरती आंखों में आँख का ढारना?
इन कविताओं को पढ़ने के बाद इन्हें सामने बैठकर,नामवर जी के मुंह से सुनने की इच्छा जाग गई है..क्या ऐसा हो सकता है? स्वाति.
namaskaar
har ek rachnaa anupam hai jis hum padh kar aatmik anubhuti kar sakte hai .rasawadan kar sakte hai . aabhar prabhat jee naamwar jee ko padhwane ke liye , aise kaman aage bhi rahegi
saadar
यार ऐसी कविताएं अब पढ़ने का मन तो नहीं ही करता है… जो 50 साल पीछे घसीट ले जाएं!
बहुत अद्भुत जानकारी ,सुखद अनुभव नामवर जी की काव्य रचनाएँ पढ़ कर हुआ . बहुत शुक्रिया
मंजुल भटनागर
NAMVAR JI KE IN GEETON KO PAHLI BAR PADHNE KA SAUBHAGYA MILA.IN GEETON KE ADHAR PAR VE APNE SAMAY KE PRATHAM PANKTI KE GEETAKAAR HAIN.
alochak ke bheetar ke kavi ko dekh pana ek sukhad anubhav hai.bhavpravan kavitayen.sukriya jankipul.