Home / ब्लॉग / उनके गीत कभी पुराने नहीं पड़े

उनके गीत कभी पुराने नहीं पड़े


शमशाद बेगम को श्रद्धांजलि देते हुए प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार प्रियदर्शन का यह लेख उनकी गायकी के महत्व को रेखांकित करता है. प्रियदर्शन ने यह लेख ख़ास तौर पर जानकी पुल के लिए लिखा है, जानकी पुल उनके प्रति आभार व्यक्त करता है- जानकी पुल.
===================================


आम तौर पर हिंदी फिल्मों में महिला गायन की स्मृति इस हद तक लता मंगेशकर और आशा भोसले पर आश्रित रही है कि बाकी सारी आवाज़ें जैसे नेपथ्य में चली जाती हैं। हिंदी फिल्मों के सारे पुराने गाने या तो लता मंगेशकर के गाए मान लिए जाते हैं या फिर आशा भोसले के। सुमन कल्याणपुरे से लेकर हेमलता और वाणी जयराम तक की आवाज़ों को लोग लता मंगेशकर के खाते में डालते रहे। यही नहीं, जो आवाजें बड़ी आसानी से लता और आशा से अलग पहचानी जा सकती थीं, उन पर भी कई बार इन दोनों कलाकारों की कीर्ति का परदा पड़ा रहा। शमशाद बेगम और गीता दत्त जैसी निहायत अलग और निजी पहचान वाली आवाज़ों को भी इसका  ख़मियाजा भुगतना पड़ा।
शायद इसी का नतीजा है कि ढेर सारे कर्णप्रिय और लोकप्रिय गीत गाने के बावजूद शमशाद बेगम का नाम बहुत सारे लोगों को अपरिचित या बहुत पुराना जान पडता है। 23 अप्रैल को उनके निधन के बाद जब लोगों ने ‘सीआइडी’ से लेकर ‘आरपारऔर ‘क़िस्मत’ तक के खनकते-खिलखिलाते गीत सुने, तब उन्हें याद आया कि इस आवाज़ की खुशबू और खनक अपना अलग संसार रचती-बसाती है, उसे लता मंगेशकर और आशा भोसले की गायकी से काफी अलग खड़ा करती है।
कायदे से देखें तो शमशाद बेगम एक पुराने पुल का नाम है– नूरजहां और लता मंगेशकर के बीच की वह कड़ीजहां खनक और माधुर्य के बीच, इठलाने और मनुहार के बीच, एक बारीक रेखा होती है। यह उदात्त धीर-गंभीर, उदासी के आंगन में टहलती हुई, विरह के गीत गाती हुई. चांद को पुकारती हुई, आत्मलीन नायिका की आवाज़ नहीं है, वह पूरे माहौल को ज़िंदा कर देने वाली एक ध़डकती-फडकती आवाज़ है- उस अल्हड़, ग्रामगंधी बाला की आवाज़, जो अपनी तुर्श-तिरछी कमनीयता में निमंत्रण भी देती थी और चुनौती भी। ‘बूझ मेरा क्या नाम रे’ या ‘गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे’ जैसे गीतों में शमशाद बेगम की आवाज़ में जैसे पूरा गांव बसा दिखाई पड़ता है, पूरी पगडंडी खुलती नज़र आती है।
गायकी के जानकार बताएंगे कि शमशाद बेगम की तरह खुले गले से गाने वाली गायिकाएं कम हुईं। कहते हैं, उन्होंने बहुत छुटपन से गाना शुरू कर दिया था और उन्हें माइक की ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए किसी सहारे की ज़रूरत पड़ती थी। लेकिन माइक के सामने आ जाने के बाद वे दूर से भी गाती थीं तो आवाज जैसे सप्तकों के पार जाकर सीधे अपने लक्ष्य तक पहुंचती थी।
कई मायनों में यह बराबरी और आज़ादी की मांग करती आवाज़ थी- ऐसी आवाज़ जो समर्पित नायिकाओं नहीं, विद्रोही प्रतिनायिकाओं को माकूल पड़ती है। वह नायक पर रीझी हुई, उसे मनाती हुई, उसमें डूबी हुई आवाज़ नहीं थी, उसके बिल्कुल बराबरी पर खड़ी, उससे मोहब्बत का इसरार करती, उसे छेड़ती आवाज़ थी। वह एक तरह से नायिका को भी अपने खोल से बाहर आने को मजबूर करती आवाज़ थी। फिल्म ‘मुगले आज़म’ की मशहूर कव्वाली ‘तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे’ में वह अनारकली के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा महत्त्वाकांक्षी और स्वतंत्र बहार की आवाज़ है जो सलीम को मोहब्बत की चुनौती देती है।
इस आवाज का सबसे शोख और अल्हड़ रंग खुलता है फिल्म ‘किस्मत’ के गीत ‘कजरा मोहब्बत वाला’ में, जिसमें आशा भोसले और शमशाद बेगम की जुगलबंदी जैसे दुनिया जीत लेती है।
यह सच है कि फिल्मी गायकी के उस सुनहरे दौर ने हमें ढेर सारी नायाब आवाज़ें दीं। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि उस गायकी के वसंतकाल में सबसे खिले हुए फूल का नाम शमशाद बेगम था। जिस गायकी की धूप बाद में लता और आशा की आवाज़ में अपनी पूरी चमचमाहट के साथ हर तरफ़ खिलती दिखी, उसका उषा काल शमशाद बेगम की आवाज़ में बसता है।
एक दौर ऐसा भी रहा कि शमशाद बेगम की आवाज़ जिसे छू देती थी वह सोना हो जाता था। कहते हैं, साहिर लुधियानवी और मजरूह सुल्तानपुरी के पहले कामयाब गीत शमशाद बेगम ने ही गाए। राज कपूर ने जब पहली फिल्म ‘आग’ बनाई तो शमशाद बेगम की आवाज़ का इस्तेमाल किया।  

साठ के दशक के बाद शमशाद बेगम ने अचानक जैसे गाना छोड़ दिया। उनके बहुत क़रीबी लोगों को ही ये अंदाजा होगा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। यह बात कुछ इसलिए हैरान करती है कि उनका शुरू करना उनके छोड़ने से ज्यादा मुश्किल था। वे एक पाबंदियों वाले परिवार से आई थीं जहां पिता को भी बेटी का खुले में गाना नागवार गुज़रता था। तब उन्होंने सबको मना और समझा लिया
, अपने लिए एक सरहद भी खींच ली कि सिर्फ गीत गाएंगी, सामने नहीं आएंगी। लेकिन जब वे अपने शोहरत के चरम पर थीं तभी अचानक जैसे वे मंच से उठकर नेपथ्य में चली गईं। अब यह बताने वाला कोई नहीं बचा है कि उनकी ज़िंदगी में कौऩ सा ऐसा साज़ सहसा टूट गया था कि उन्होंने यह फ़ैसला किया।
बहरहाल, उनके गीत कभी पुराने नहीं पड़े। उनकी आवाज़ में पुरानी मिट्टी की खुशबू, पुराने घरों का सोंधापन बोलता था। उनकी गायकी के हुलास में पनघटों की खिलखिलाहट और त्योहारों के रंग थे। इस छूटते हुए संसार की बहुत मार्मिक निशानियां उनके गीतों में मिलती हैं। लेकिन शमशाद बेगम की आवाज़ में इस स्मृतिजीविता से भी बड़ी एक चीज़ है- एक दुर्लभ शोखी जो खुलेपन का अपना ही भाष्य रचती है।
यह अनायास नहीं है कि जिस दौर में गीतों में दैहिकता का ताप बढ़ रहा है, मांसलता के सौंदर्य को बहुत सपाट और भोंडी प्रदर्शनप्रियता से विस्थापित किया जा रहा है, तब शमशाद बेगम के उन गीतों के रीमिक्स बन रहे हैं जिनकी दुर्लभ शोखी में तन से ज़्यादा मन विहंसता दिखता है। शमशाद बेगम का जाना और उनका गाना दोनों याद दिला रहे हैं कि हमारे संगीत में शोर और सतहीपन दोनों बढ़े हैं, पांव रोक लेने वाली और मन को बांध सकने वाली धुनें और आवाज़ें अब नहीं बची हैं।
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

12 comments

  1. आप तमाम मित्रों का शुक्रिया। इससे लिखते रहने का हौसला मिलता है।

  2. शोभित, लता की आवाज़ में अपनी तरह की संपूर्णता तो है ही। मुगले आज़म में ही प्यार किया तो डरना क्या जैसा गाना हो या कई दूसरी फिल्मों के दूसरे गीत, लता की आवाज़ अपने ढंग से जहां ज़रूरी होता है, वहां वह भाव पैदा कर लेती है। दरअसल आशा मेरे लिए लता और शमशाद के बीच की कड़ी हैं। निस्संदेह वे कई बार दोनों को अतिक्रमित करती हैं। बहरहाल, यह मेरी विशेषज्ञता का क्षेत्र नहीं है, बस अनुभव से जो ख़याल आाया, वह लिखा।

  3. नूरजहां और लता के बीच पुल वाली बात जरा पल्‍ले नहीं पड़ी। शमशाद बेगम की आवाज लता जैसे सरेंडरिज्‍म के नजदीक नहीं होकर विद्रोही आशा के ज्‍यादा नजदीक लगती है। नूरजहां से आशा के बीच का पुल ज्‍यादा सटीक होता ।

  4. शमशाद बेगम की आवाज़ उन पुरकशिश आवाज़ों में से एक है जिसने सुरों से लेशमात्र भी न डिगते हुए अपनी अलग आवाज़ की शोखी, खिलंदडपन और जीवन्तता से लता मंगेशकर और आशा भौंसले के होते हुए भी अपनी विशिष्ट पहचान दर्ज करायी…उनके पिता ने बुर्के में रिकॉर्डिंग और फोटो न खींचवाने की शर्त के साथ ही उन्हें गाने की इज़ाज़त दी जिसे अपने विवाह तक वे निभाती भी रही….उनके गानों की रेंज और सुर व् गुणवत्ता के प्रति उनका आग्रह ही शायद उनके कम गानों की एक वजह बना ….वे कहा करती थी कि आर्टिस्ट की पहचान तो उसी आवाज़ है चेहरा नहीं इसलिए गुमनामी में खो जाने को लेकर वे लेशमात्र भी चिंतित नहीं रही….प्रियदर्शन जी का यह लेख उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है….शुक्रिया जानकीपुल…..

  5. shamshad begum and noorjahan both were discovered and promoted by ghulam haidar who once again had great contribution in the making of lata mangeshkar as well. shamshad begum was not a bridge between lata and noorjahan. shamshad begum was shamshad begum only…..a very distinct personality and very distinct voice. noorjahan went to pakistan because her husband decided to migrate to pakistan but shamshad begum opted for india. from early 30s to late 60s (she recorded her last song in 1968-) she sang numerous songs and was never intimidated by lata mangeshkar aur asha bhonsle. she sang beautiful duets with both the sisters and never blamed them for their dwindling career. in one of her interviews she instead blamed her inability (self respect) to beg work from new music directors for her decline. she sang with all the reigning music directors of her time and may be she found herself misfit in the changing times. she was a very down to earth and humble person. few people know that many a times when lata could not sing a song due to her over busy schedule, music directors would call shamshad begum instead to sing that song. she never had any ego problem with lata or asha. it is wrong to blame them for overshadowing shamshad begum. she got her due not only from music lovers but from government too. it is sad to see that new generation of journalists in news channel is not aware about her contribution, though they know a lot about her remixed songs. incidentally shamshad begum's songs were remixed more than lata or asha's songs. once when asked about it – she smiled and said "i don't object to it….what is wrong if new generation gets to know about old songs through this route."

  6. bahut sunder lekh!

  7. बहुत बढ़िया…उनके गाए गीत आज भी पुराने गीतों के शौकीनों के कलेक्शन में मिल जाएँगे…|
    उन्हें श्रद्धांजलि…|

  8. अल्हड और मुक्त स्वर की सम्राज्ञी शमशाद को भावभीनी श्रद्धांजलि. उनकी आवाज जादुई प्रभाव डालती है.रिमिक्स में वह बात आ ही नहीं सकती है.

  9. Você também pode personalizar o monitoramento de determinados aplicativos, e ele começará imediatamente a capturar instantâneos da tela do telefone periodicamente.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *