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खेल के चश्मे से कारोबारी दुनिया की समझ

हर्षा भोगले का नाम क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक जादुई क्रिकेट कमेंटेटर हैं. उनकी किताब आई है ‘जीतने के रास्ते’. खेल और प्रबंधन से जुड़े अपने अनुभवों के आधार पर एक व्यवहारिक और प्रेरणादायी पुस्तक. इसकी समीक्षा लिखी है त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने. आपके लिए- जानकी पुल.
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मशहूर दार्शनिक अरस्तु का कथन है, “हम वही हैं,जो हम बार-बार करते हैं। इसीलिए उत्कृष्टता एक क्रिया नहीं है, यह एक आदत है।” इसी बात को साबित करती है एक किताब “जीतने के रास्ते”, जो यात्रा-वैस्टलैंड बुक्स से आई है। लेखक हैं— हर्षा भोगले व अनीता भोगले। हर्षा, लोकप्रिय खेल कमेंटेटर हैं और अनीता, विज्ञापन-कम्युनिकेशन कंसल्टेंट हैं। अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद किया है— नवेद अकबर ने। खेल के बहाने प्रबंधन के गुर बताती यह किताब हमारे लिए महत्वपूर्ण है। चूँकि लेखक के पास विज्ञापन, खेल, रिसर्च आदि कई क्षेत्रों का अनुभव है, इसीलिए इस किताब का लैंडस्केप बहुत बड़ा है। लेखक के अनुसार, “जीतने का फॉर्मुला एक ही रहता है, चाहे आप खिलाड़ी हों, संगीतकार हों, वित्तीय योजनाकार हों, दवाई विक्रेता हों या घरेलू महिला हों।” लेकिन जब आप टीम में होते हैं, तो ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। एक स्टार खिलाड़ी टीम को बना-बिगाड़ भी सकता है। लीडरशिप एक ऐसा गुण है, जो ज़रूरी नहीं कि अच्छे खिलाड़ी में हो।

हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में देखते हैं कि अचानक ही कोई व्यक्ति दुनिया के मानचित्र पर उभरने लगता है। हर तरफ उसी की चर्चा होती है। दरअसल, यह अचानक से नहीं होता। उसके पीछे उसकी मेहनत होती है। हाँ, सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता भी आवश्यक है। इसके बावजूद, “जीतना अजेयता का सबके लिए एक साइज़ का लबादा नहीं है। ये कोई ऐसी ट्रॉफ़ी या पदक नहीं, जो हर डिस्प्ले में समान रूप से अच्छा लगे। कोई गुलाब नहीं, जो हर सभाकक्ष में समान सुगंध बिखेरे। जीतना भिन्न रंगों और आकारों में आता है। कम्पनियों की महत्वकांक्षाएं और उनके लक्ष्य और उद्देश्य नाटकीय रूप से विविध होते हैं।” इस बात को विशेषित करती यह किताब बताती है कि कैसे एक टीम दूसरी टीम पर हावी हो जाती है। कैसे एक टीम लगातार जीतती जाती है। कैसे एक व्यक्ति अपनी जीत को सुरक्षित करता है। कैसे विपक्षी टीम का मनोबल टूट जाता है। इन सवालों का जवाब यह किताब देती है।

यह तय है कि बदलाव जोखिमपूर्ण हो सकता है लेकिन नहीं बदलना अधिक जोखिमपूर्ण होता है। बदलती हुई दुनिया हमारे सामने है। क्रिकेट की बात करें, तो देखते ही देखते गेंद और बल्ले के बीच मुक़ाबला से कहीं ज़्यादा फ़िटनेस,रफ़्तार और रणनीति जैसे तत्व महत्वपूर्ण हो गए। इसे हम समय की माँग कहें या नई प्रतिभाओं का विस्फोट, जिनके लिए पहले से बनाई गई कसौटी किसी काम की नहीं रह गई। माइक्रोसॉफ़्ट, एचएसबीसी, यूनिलीवर, ग्लैक्सो,स्मिथक्लाइन, एवेंटिस, कैडबरीज़, मैरिको, कैस्ट्रॉल, कोल्गेट जैसी कम्पनियों का ज़िक्र करते हुए लेखक मैकिंसी को भी उद्धत करते हैं और असहमति के लिए सहमति को युवा प्रबंधकों के लिए अनिवार्य करार देते हैं। क्योंकि सफलता हमेशा सापेक्षिक होती है, यह समय, अंतराल और परिमाण के साथ बदल जाती है।

किताब की भाषा कॉर्पोरेट की है। यह खेल और प्रबंधन से जुड़े व्यक्तियों की भाषा के ज़्यादा निकट है। जगह-जगह उदाहरण की सहायता से बात को कहने-समझाने का प्रयास किया गया है। योग्यता, रवैया और जुनून की बदौलत सभी परिस्थियों में कैसे जीत हासिल की जाती है, यह भी बताया गया है। यह भी कि जीतने के लिए सिर्फ़ प्रतिभा ही काफ़ी नहीं है, बल्कि मैंका त्याग भी करना पड़ता है। किताब की ख़ास बात यह भी है कि राहुल द्रविड़ ने उत्तरकथन लिखा है, जिसमें उनके निज़ी अनुभव शामिल हैं। अंत में आमुख में लिखे मुकेश अम्बानी की पंक्तियाँ, “खेल के चश्मे से कारोबारी दुनिया को समझना उत्प्रेरक और ऊर्जादायी है। पुस्तक ने प्रभावी प्रबल ढंग से जीतने के बुनियादी नियम तय किए हैं। कॉरपोरेट एवं उद्यमी जगत के महत्वाकांक्षी खिलाड़ियों के लिए यह किताब एक अच्छा तोहफ़ा है।”  

जीतने के रास्ते
लेखक- हर्षा भोगले व अनीता भोगले
प्रकाशक- यात्रा
/वैस्टलैंड बुक्स
क़ीमत- 195 रु.
 
      

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