दलित साहित्य के शिखर लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि का आज निधन हो गया. ‘जूठन’ जैसी अमर कृति के लिए पाठक उनको हमेशा याद रखेंगे. हिंदी लेखिका अनीता भारती के लेख के माध्यम से उनको श्रद्धांजलि- जानकी पुल.
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दलित साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर व वरिष्ठ लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का आज सुबह परिनिर्वाण हो गया। वे पिछले एक साल से ‘बड़ी आंत की गंभीर बीमारी‘ से जूझ रहे थे। हिन्दी साहित्य और दलित साहित्य में उनके अवदान और उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोज उनसे मिलने वालों, फोन करने वालों और उनके स्वास्थ्य में शीघ्र सुधार होने की कामना करने वालों की संख्या हजारों में थी।
ओमप्रकाश वाल्मीकिजी पिछले एक सप्ताह से देहरादून के एक प्राईवेट अस्पताल मैक्स में दाखिल थे। उनके स्वास्थ्य की हालत चिंताजनक थी, इसके बाबजूद वह वे बहुत बहादुरी से अपनी बीमारी से लड़ रहे थे। पिछले साल 10 अगस्त 2013 में उनकी बडी आंत का सफल आपरेशन हुआ था। आपरेशन सफल होने के बाबजूद वे इससे उबर नहीं पाए।
ओमप्रकाश वाल्मीकि उन शीर्ष लेखकों में से एक रहे है जिन्होने अपने आक्रामक तेवर से साहित्य में अपनी सम्मानित जगह बनाई है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होने कविता, कहानी, आत्मकथा से लेकर आलोचनात्मक लेखन भी किया है। अपनी आत्मकथा “जूठन” से उन्हें विशेष ख्याति मिली है। जूठन में उन्होने अपने और अपने समाज की दुख-पीडा-उत्पीडन-अत्याचार-अपमान का जिस सजीवता और संवेदना से वर्णन किया वह अप्रतिम है। यह एक बहुत बडी उपलब्धी है कि आज जूठन का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. जूठन के अलावा उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में “सदियों का संताप”, “बस! बहुत हो चुका” ( कविता संग्रह) तथा “सलाम” ( कहानी संग्रह ) दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र (आलोचना) आदि है। बाल्मीकि जी अब तक कई सम्मानों से नवाजे जा चुके है जिनमें प्रमुख रुप से 1993 में डॉ.अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 1995 में परिवेश सम्मान है। हिन्दी साहित्य और दलित साहित्य के शीर्ष साहित्यकार का अचानक असमय चले जाना बेहद दुखद है। वे मात्र अभी 63 साल के ही थे। वो अभी दो-तीन साल पहले ही देहरादून की आर्डनेंस फैक्ट्ररी से रिटायर हुए थे। उनका बचपन बहुत कष्ट-गरीब-अपमान में बीता। यही कष्ट-गरीबी और जातीय अपमान-पीड़ा और उत्पीड़न उनके लेखन की प्रेरणा बने। उनकी कहानियों से लेकर आत्मकथा तक में ऐसे अऩेक मार्मिक चित्र और प्रसंगों का एक बहुत बड़ा कोलाज है। वह विचारों से अम्बेडकरवादी थे। बाल्मीकि जी हमेशा मानते थे कि दलित साहित्य में दलित ही दलित साहित्य लिख सकता है। क्योंकि उनका मानना था कि दलित ही दलित की पीडा़ और मर्म को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है।
ओमप्रकाश बाल्मीकि जी के अचानक जाने से दलित साहित्य का एक स्तंम्भ ढह गया है.
उनकी क्षति बेहद अपूरणीय है।
ओम प्रकाश वाल्मीकि बहुत बड़े इंसान थे . बहुत बड़े लेखक ,बहुत बड़े बुद्धिजीवी ,भाषा के मर्मज्ञ और बड़े साहित्यकार . जो लोग उन्हें दलित लेखक कहते हैं ,वे मुझे निराश करते हैं दलित लेखक क्या होता है भाई ?
एक के बाद एक साहित्यकारों का जाना दुखद ही नही हिन्दी साहित्य की अपूरणीय क्षति है ।