आज हिंदी सिनेमा के महान अभिनेताओं में एक दिलीप कुमार का जन्मदिन है. उनके जीवन-सिनेमा से जुड़े कुछ अछूते प्रसंगों को लेकर यह लेख लिखा है सैयद एस. तौहीद(दिलनवाज) ने. दिलीप कुमार शतायु हों इसी कामना के साथ यह लेख- जानकी पुल.
============================================
सिनेमा का इतिहास उसे सभी स्थितियों में एक रूचिपूर्ण विषय बनाता है। इस नजर से चलती तस्वीरों का सफर एक घटनाक्रम की तरह सामने आता है। इस संदर्भ में सिनेमा का शिल्प तकनीक से अधिक समय द्वारा निर्धारित होता नजर आता है। समय के साथ फिल्मों की दुनिया का बडा हिस्सा गुजरा दौर हो जाता है। बीता वक्त वर्त्तमान व भविष्यका एक संदर्भ ग्रंथ है। सिनेमा की मुकम्मल संकल्पना दरअसल अतीत से अब तक के समय में समाहित है। हिंदी फिल्मों का कल और आज अनेक कहानियों को संग्रहित किए हुए है। तस्वीरों की कहानी के भीतर कई कहानियां हैं। हिंदी सिनेमा की तक़दीर में इनका योगदान बीते वक्त की बात होकर भी आज को दिशा दे रहा है। कलाकारों व तकनीशियनोके दम पर यह उद्योग संचालित है। यह शख्सियतें कभी न कभीफिल्म उद्योग के एक्टिव कर्मयोगी रहे। इनकी दास्तान–ए–तक़दीर सिनेमा की कहानी को रोचक बनाती है। तस्वीरों के समानांतर और भी जहान बसा देती है। इस अर्थ में कहा जा सकता है कि सिनेमा फिल्मों के कारखाने से कहीं अधिक है। वह चलती फिरती कहानी है।
एक निकट संबंधी की सहायता से युवा युसुफ़ को पुणा स्थित फौजी कैंटीन में पहली नौकरी मिली थी। महज कुछ रुपए की तनख्वाह पे उन्हें सहायक के तौर रखा गया, प्रतिदिनके सामान्य कार्यों का जिम्मा था । वहकाम से खुश थे, लेकिन वोकाम कैंटीन के बंद