देश में चुनावी रैलियों और भाषणों का माहौल है। राजनीति को हम जिस प्रकार २१ वीं सदी के उत्तर आधुनिक काल में, मात्र बाहुबल और विज्ञापन के द्वितीयक उत्पाद के रूप में देख रहे हैं, उसे एक समर्पित वैज्ञानिक लगभग 90 वर्ष पूर्व भी ठीक इसी रूप में देख रहा था। यह व्यक्तिगत पत्र “आइन्स्टीन” द्वारा सन १९३१ या १९३२ की शुरुआत में “सिगमंड फ़्रायड” को लिखा गया था। जो कि “Mein Wettbild, Amsterdam: Quarido Verlag” में सन १९३४ में प्रकाशित हुआ था। मनोविज्ञान के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान देने वाले प्रोफ़ेसर सिगमंड फ़्रायड को लिखे गये इस पत्र में, अल्बर्ट आइंसटीन की वैश्विक परिपेक्ष में राजनीतिक स्थिति और उसके भविष्य के संबंध में गहरी चेतना स्पष्ट है। पत्र का बहुत अच्छा अनुवाद किया है मेहरवान ने- जानकी पुल.
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प्रिय प्रोफ़ेसर फ़्रायड,
आपमें सत्य को जानने समझने की उत्कंठा, जिस तरह अन्य उत्कंठाऒं पर विजय प्राप्त कर चुकी है, प्रशंसनीय है। आपने अत्यन्त प्रभावी सुबोधगम्यता से दर्शाया है, कि मानव मस्तिष्क में प्रेम और जीवटता के साथ, युद्धप्रिय और विनाशकारी मूलप्रवृत्तियाँ कितने अविलग ढंग से गुँथी हुई हैं। लेकिन, ठीक उसी क्षण आपके वाद-विवाद से परिपूर्ण अकाट्य तर्कों में, मानवता की युद्ध से बाह्य और आन्तरिक मुक्ति के महान लक्ष्य हेतु गहरी अभिलाषा भी प्रकाशमान होती है। इस महान लक्ष्य की घोषणा जीसस क्राइट्स से लेकर गोथे और कान्ट तक, सभी नैतिक और आध्यात्मिक नेताओं के द्वारा किन्हीं अपवादों के बिना तथा देश काल से परे होकर की गयी थी। क्या यह महत्वपूर्ण नहीं है कि इन लोगों को वैश्विक स्तर पर पथप्रदर्शकों के रूप में स्वीकार किया गया, यद्यपि यह भी सत्य है, कि तमाममानवीय मुद्दों की विषय–वस्तु को साँचे में ढालने के उनके प्रयासों में (जनता की) अत्यंत अपर्याप्त सफलता के साथ सहभागिता हुयी।
मैं स्वीकार करता हूँ कि वे महान लोग, जिनकी उपलब्धियाँ येन-केन प्रकारेण, किसी क्षेत्र तक प्रतिबन्धित कर दी जातीं हैं, वही उपलब्धियाँ अपने आसपास के लोगों से उन्हें ऊँचा उठा देती हैं, साथ ही उन्हें समान आदर्श के अपरिहार्य विस्तार का सहभागी भी बनाती हैं। परन्तु, उनका प्रभाव राजनीतिक घटनाओं की विषयवस्तु पर कम है। यह करीब–करीब ऐसे प्रतीत होता है, जैसे उसी क्षेत्र को हिंसा और राजनीतिक सत्ताधारियों की गैरज़िम्मेदारियों पर अपरिहार्य रूप से छोड़ दिया गया हो, जिस कार्यक्षेत्र पर राष्ट्रों की तकदीरें निर्भर करती हैं।
राजनेताओं और सरकारों की वर्तमान स्थिति कुछ बाहुबल और कुछ चर्चित चुनावों के कारण है। वे अपने-अपने राष्ट्रों में नैतिक और बौद्धिक रूप से, जनता के सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि नहीं ठहराये जा सकते। बुद्धिजीवी संभ्रांतों का इस वक्त देशों के इतिहास पर कोई सीधा प्रभाव नहीं है: उनकी सम्बद्धता में कमी, उन्हें समकालीन समस्याओं के निराकरण में सीधे प्रतिभागिता करने से रोकती है। क्या आप इस बात के समर्थन में नहीं हैं, कि जिन लोगों के क्रियाकलाप और पूर्ववर्ती उपलब्धियाँ; उनकी योग्यता और इस महान लक्ष्य की पवित्रता की गारन्टी का निर्माण करतीं हैं, उन लोगों के मुक्त संगठन के द्वारा इस दशा में परिवर्तन किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रवृत्ति के इस गठबंधन के सदस्यों को आवश्यक रूप से शक्ति और विचारों के आदान-प्रदान से, पत्रकारों के समक्ष अपना दृष्टिकोंण प्रेषित करके आपस में संपर्क में रहना होगा। ख़ास अवसरों पर ज़िम्मेदारी सदैव हस्ताक्षरकर्त्ताऒं पर रही है- और यह राजनीतिक प्रश्नों के निराकरण हेतु सामान्य से काफ़ी अधिक और सलामी देने योग्य नैतिक प्रभाव छोड़ती है। उन सभी बुराइयों (जो कि अक्सर ज्ञानवान समाजों को विखन्डन के रास्ते पर ले जातीं हैं) और खतरों (जो कि अविलग रूप से मानव की मनोवृत्तियों की कमज़ोरियों से जुड़े होते हैं) के लिये निश्चित रूप से ऐसे संगठन के लिये शिकारियों की तरह होंगे। इस तरह के प्रयासों को मैं अनिवार्य कर्तब्य से कमतर नहीं देखता हूँ।
यदि ऐसी समझ वाले वैश्विक संगठन का निर्माण हो पाता है, जिसका कि मैंने पूर्व में वर्णन किया; यह युद्ध के विरुद्ध संघर्ष हेतु आध्यात्मिक संस्थाओं को संगठित करने का ईमानदार प्रयत्न भी कर सकता है। यह उन तमाम लोगों के लिये अनुग्रह होगा, जिनके उत्कृष्ट ध्येय निराशाजनक निष्कासन के कारण विकलाँग हो चुके हैं। अंततः, मुझे विश्वास है, यदि अपनी-अपनी दिशाओं के अत्यन्त आदरणीय लोगों का ऐसा संगठन बन पाया, जैसे कि मैंने वर्णित किया, तो राष्ट्र–संघ के उन तमाम देशों को,जो कि वास्तव में एक महान लक्ष्य की दिशा में कार्यरत हैं और जिस ध्येय के लिये संघ का अस्तित्व है, को महत्वपूर्ण नैतिक सहयोग प्रदान करने हेतु अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध हो सकता है।
मैंने यह प्रस्ताव विश्व के किसी अन्य के अलावा आपके समक्ष इसलिये रखा, क्योंकि आप अन्य सभी लोगों की अपेक्षा अपनी इच्छाओं के द्वारा सबसे कम ठगे जाते हैं, क्योंकि आपके आलोचनात्मक निर्णय ज़िम्मेदारी के सबसे गहरे एहसासों पर आधारित होते हैं।
आपका
(अल्बर्ट आइन्स्टीन)
badhia