
हमारी भाषा के महान कवियों में एक केदारनाथ सिंह ने इस साल 80 वें साल में प्रवेश किया है, और इसी साल उनका 8 वां कविता संग्रह भी आया है- ‘सृष्टि पर पहरा’। वे आज भी बेहतरीन कविताएं लिख रहे हैं, इस संग्रह की कविताएं इसकी ताकीद करती हैं। कुछ चुनिन्दा कविताएं आपके लिए- जानकी पुल।
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1.
एक पुरबिहा का आत्मकथ्य
(गीता शैली में)
पर्वतों में मैं
अपने गाँव का टीला हूँ
पक्षियों में कबूतर
भाखा में पूरबी
दिशाओं में उत्तर
वृक्षों में बबूल हूँ
अपने समय के बजट में
एक दुखती हुई भूल
नदियों में चंबल हूँ
सर्दियों में
एक बुढ़िया का कंबल
इस समय यहाँ हूँ
पर ठीक समय
बगदाद में जिस दिल को
चीर गई गोली
वहाँ भी हूँ
हर गिरा खून
अपने अंगोछे से पोंछता
मैं वही पुरबिहा हूँ
जहां भी हूँ।
2.
विज्ञान और नींद
जब ट्रेन चढ़ता हूँ
तो विज्ञान को धन्यवाद देता हूँ
वैज्ञानिक को भी
जब उतरता हूँ वायुयान से
तो ढेरों धन्यवाद देता हूँ विज्ञान को
और थोड़ा सा ईश्वर को भी
पर जब बिस्तर पर जाता हूँ
और रोशनी में नहीं आती नींद
तो बत्ती बुझाता हूँ
और सो जाता हूँ
विज्ञान के अंधेरे में
अच्छी नींद आती है।
3.
जाऊंगा कहाँ
जाऊंगा कहाँ
रहूँगा यहीं
किसी किवाड़ पर
हाथ के निशान की तरह
पड़ा रहूँगा
किसी पुराने ताखे
या सन्दूक की गंध में
छिपा रहूँगा मैं
दबा रहूँगा किसी रजिस्टर में
अपने स्थायी पते के
अक्षरों के नीचे
या बन सका
तो ऊंची ढलानों पर
नमक ढोते खच्चरों की
घंटी बन जाऊंगा
या फिर माँझी के पुल की
कोई कील
जाऊंगा कहाँ
देखना
रहेगा सब जस का तस
सिर्फ मेरी दिनचर्या बादल जाएगी
साँझ को जब लौटेंगे पक्षी
लौट आऊँगा मैं भी
सुबह जब उड़ेंगे
उड़ जाऊंगा उनके संग…
4.
एक लोकगीत की अनु-कृति
(जो मैंने मंगल माँझी से सुना था)
आम की सोर पर
मत करना वार
नहीं तो महुआ रात भर
रोएगा जंगल में
कच्चा बांस कभी काटना मत
नहीं तो सारी बांसुरियाँ
हो जाएंगी बेसुरी
कल जो मिला था राह में
हैरान-परेशान
उसकी पूछती हुई आँखें
भूलना मत
नहीं तो सांझ का तारा
भटक जाएगा रास्ता
किसी को प्यार करना
तो चाहे चले जाना सात समुंदर पार
पर भूलना मत
कि तुम्हारी देह ने एक देह का
नमक खाया है।
5.
आँसू का वजन
कितनी लाख चीख़ों
कितने करोड़ विलापों-चीत्कारों के बाद
किसी आँख से टपकी
एक बूंद को नाम मिला-
आँसू
कौन बताएगा
बूंद से आँसू
कितना भारी है
पुस्तक राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है।
वाह! देह का नमक.. ग़ज़ब प्रयोग है।
चिर – परिचित अंदाज़ में सहज भाषा में लिखी गईं बेहतरीन कविताएँ!
sundar antardristi hai in kavitao me.
सृष्टि का स्वाद है ये कवितायें। यादों मे गहरे उतर जाने वाली।
किसी को प्यार करना
तो चाहे चले जाना सात समुंदर पार
पर भूलना मत
कि तुम्हारी देह ने एक देह का
नमक खाया है।
बेजोड कविताएं । आभार ।
बहुत नाज़ुक और सोंधी गंध से लबालब कविताएँ / मिट्टी पर नंगे पाँव, हवा के विपरीत , खुले शर्ट में बेपरवाह दौड़ते बच्चे की गध लिए हमारे देस की कविताएँ / शुक्रिया …
पहले की ही तरह घर,गांव-जवार ,मांझी का पुल और पुरबिया लोक ,जो केदारनाथ की कविता के लिए प्रेरणा रहे हैं
वाह! अच्छी लगीं सभी कविताएँ। पढ़ाने के लिए आभार।
बेहतरीन कविताएँ !!
वाह !