बचपन से बुलेट मोटरसाइकिल की ऐसी छवि दिमाग में बनी कि बुलेट का नाम आते ही सिहरन सी होने लगती थी. सीतामढ़ी के एकछत्र बादशाह नवाब सिंह की बुलेट जब शहर में दहाड़ती हुई निकलती तो लोग पीछे घूम घूम कर खड़े होने लगते थे या टाउन थाना के दरोगा वैद्यनाथ सिंह की बुलेट, कॉलेज टाइम में कॉलेज से बाहर घूम रहे लड़कों को कॉलेज में वापस पहुंचा देती थी. लेकिन हाल में ही जे सुशील की बुलेट से परिचय हुआ. बुलेट को प्यार से रखने वाले तो कई देखे, बुलेट पर इतने प्यार से लिखने वाला पहला लेखक मिला है. आप भी पढ़िए जे सुशील का बुलेट-लेख- प्रभात रंजन.
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मैं आम तौर पर अपने बारे में नहीं सोचता हूं. शायद मुझे भी हर मूर्ख की तरह लगता है कि मैं जो करता हूं या कर रहा हूं वो ही सही है. हालांकि कभी कभी सोचता हूं अपने बारे में अक्सर तब जब अपनी बुलेट चला रहा होता हूं. दफ्तर से घर और घर से दफ्तर के बीच की दूरी छोटी सी है. शायद इस दूरी में बुलेट मुझे वो नहीं बता पाती थी जो वो मुझे समझाना चाहती थी. पुणे से गोवा और आगे की यात्रा के दौरान बुलेट ने मुझे जो सिखाया वो जीवन बदलने वाला हो सकता है. मैं आम तौर पर जल्दी जल्दी काम करने वाला, जल्दी परिणाम की इच्छा रखने वाला उत्साही सा आदमी हूं जो हर काम तेज़ी से करना चाहता है. मैं थोड़ा सा अधीर हूं, थोड़ा सा बेचैन हूं, थोड़ा सा अराजक हूं और ढेर सारा इमोशनल हूं. काम करने की क्षमता मुझमें है लेकिन सबकुछ जल्दी जल्दी करना चाहता हूं. कारण बहुत से हो सकते हैं.
आज की लाइफ स्टाइल या साथ के लोगों के साथ काम करने का दबाव लेकिन आज कारणों पर बात नहीं. काम करने की क्षमता बुलेट में भी है. इससे पावरफुल कोई नहीं लेकिन वो धीर है. गंभीर है. उसमें बेचैनी नहीं. उसमें समुद्र सा गांभीर्य है. वो अराजक है लेकिन बुलेट की अराजकता में एक लय है. वो पहाड़ों पर ऐसे चलती है मानो कोरी कन्या के शरीर पर कोई मोहब्बत से हाथ फेर रहा हो. बुलेट मुझसे उलट है कई मामलों में शायद इसलिए हम दोनों एक दूसरे को आकर्षित करते हैं. पुणे से गोवा – दो लोग और ढेर सारा लगेज. दूरी करीब 550 किलोमीटर. शायद एक दिन में नहीं कवर होना चाहिए था. लेकिन मैं ठहरा जल्दबाज़. बुलेट ने मना किया लेकिन मैं नहीं माना. वो गोवा पहुंची मुझे तंग किए बिना लेकिन यहां उसने मुझसे कह दिया. देखो तेरी जल्दबाज़ी ने मुझे बीमार कर दिया है. खांसती रही.कराहती रही लेकिन मुझे ढोती रही. कभी ऐसी जगह तंग नहीं किया जहां मैं बुरी तरह फंस जाऊं. ये उसका प्यार ही था.
मैं वर्कशॉप में हूं. बुलेट खुल चुकी है. लग रहा है मानो छोटे बच्चे को आपरेशन टेबल पर डाल दिया गया है. डॉक्टर लगे हुए हैं लेकिन बुलेट बेचैन नहीं है. वो मुझसे बात कर रही है. कुछ कह रही है. वो मुझे कुछ सिखाना चाह रही है. मैं उसके बोल सुन पा रहा हूं. कीबोर्ड पर लिखते हुए उसके शब्द मेरे कानों में गूंज रहे हैं. धीर धरो…अधीर न हो. जीवन लंबा न सही छोटा भी नहीं. क्योंकि जब तुम धीर होगे तभी हर काम बेहतर ढंग से कर पाओगे. जल्दबाज़ी का काम शैतान का होता है. तुम शैतान तो नहीं बने हो पर जल्दबाज़ी में तुमने अपने काम बिगाड़े ज़रुर हैं. मेरे मस्तिष्क में कई बातें कौंध गई है. अपने उतावलेपन से मैंने नुकसान झेला है. दुनिया भाग रही है लेकिन मैं दुनिया के साथ भागना कभी नहीं चाहता था लेकिन लगता है पिछले कुछ सालों से भाग रहा हूं. बुलेट कहती है रुको. अपने आसपास को टटोलो. अपने अंदर खोजो. क्या वाकई दुनिया के साथ ताल से ताल मिलाना ही ज़िंदगी है. जिस दिन तुमने अपने मन से ताल मिला लिया. दुनिया तुम्हारे साथ ताल मिलाएगी. मैंने पूछा कैसे…इस ज़माने में जहां हर कोई अपनी मार्केटिंग करता है. आगे बढ़ना चाहता है. मै तो पीछे छूट जाऊंगा.
बुलेट बोली- मैं तुम्हें खरगोश कछुए की कहानी नहीं सुनाऊंगी. लेकिन सोचना कि क्या तुमने कभी बुलेट के विज्ञापन देखे हैं टीवी पर या कहीं और. मैं- हां किसी पत्रिका में देखा था. टीवी पर तो कभी नहीं. ट्विटर फेसबुक पर भी नहीं. यूटयूब पर ज़रुर लोगों ने बुलेट से जुड़े वीडियो डाले हैं. बुलेट-लेकिन क्या लोग मुझे पसंद नहीं करते. मेरा प्यार ज़िंदा है और बढ़ रहा है. क्या मैं भागी दुनिया के साथ. नहीं न. फिर तुम क्यों भागते हो. बुलेट की इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था और न होगा. मैंने तय किया है अब अपने दिल से ताल मिलाऊंगा जैसे बुलेट से ताल मिलाता हूं. शायद तभी दुनिया मेरे साथ ताल मिलाएगी. दुनिया के पीछे भागने वाले पीछे छूट जाते हैं. अपने साथ चलने वाले के पीछे दुनिया भागती आती है. शुक्रिया बुलेट…..तुमने मुझे वो बात समझाई है जो कई किताबें न समझा पाई होंगी… चलो अब आराम से ठीक हो जाओ और फिर हम निकलेंगे छोटे छोटे टुकड़ों में एक बड़े सफर पर.
क्या बात है सुशील भाई। लगे रहो और यूं ही लिखते रहो, जल्दी लिखो या धीरे पर लिखो जरूर, हम जैसों को इंतजार रहता है। प्रमोद
Wah….wah
Wah….wah
laajbaba bahi Dr. Vinay Vikram Singh Kalhans
वाह बहुत सुंदर कुछ अलग सा 🙂