फ्रेंच कवि आर्थर रैम्बो ने महज 37 सालों की उम्र पाई, 20 साल की उम्र के बाद उसने लिखना छोड़ दिया। कहते हैं उसकी सारी कवितायें किशोर काल की लिखी गई हैं। लेकिन इस कवि ने 20 वीं शताब्दी की आधुनिकता को गहरे प्रभावित किया। इस मिथकीय व्यक्तित्व वाले कवि की कवितायें पढ़ने को मिली वाग्देवी प्रकाशन से प्रकाशित फ्रेंच कविता के दो खंडों में प्रकाशित संकलन में, जिनका मूल फ्रेंच से अनुवाद किया है मदन पाल सिंह ने। आम तौर पर इस तरह के अनुवाद ग्रांट पर छपते हैं और उनमें अनुवाद से अधिक ग्रांट पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन इन दोनों खंडों की कविताओं को पढ़कर लगा कि इनमें अनुवाद के ऊपर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया है। फ्रेंच कविताओं के अनुवाद के ये दो ऐसे संचयन हैं जो पढ़ने और सहेज कर रखने लायक हैं- प्रभात रंजन
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1.
आवारा
मैं निकल पड़ा अपनी फटी जेब में हाथ रखे
मेरा लबादा फटा-पुराना, एक अजीब आदर्श लिए
मैं पहुंचा स्वर्ग में, ओ म्यूज1 ! तेरा प्रिय आज्ञाकारी
वहाँ देखा अद्भुत दिव्य प्रेम, मेरे स्वप्न पर करे सवारी।
मेरी अकेली पतलून में छेद बड़ा
छोटे बच्चे की तरह रास्ते में कविता करता,
मेरी सराय सप्तर्षि के बीच बनी
मेरे तारे आकाश में करते सर-सर, सर-सर मद्धिम ध्वनि।
उन्हें सुना, सड़क किनारे बैठा जब सांझ बिखरती
सितंबर की मधुर सायं, ऑस मेरे माथे पर लगती
जैसे दिव्य मदिरा की बूंदें धीरे से माथे पर गिरतीं।
वहाँ एक मधुर गान अद्भुत फिर सायं में बसता
जैसे वीणा से निकले स्वर, जब फटे जूते की रबर खींचता
इस उपक्रम में पैर मेरा, मेरे दिल को छू लेता।
1. साहित्य और कला की देवी
2.
ऋतु और महल
ओ मौसम और महलों की दुनिया
क्या कोई यहाँ निर्दोष आत्मा?
ओ मौसम और महलों की दुनिया!
मैं खुशियों को जान पाया
किसी ने इन खुशियों को नहीं जुदा किया,
मैंने खुशियों को हर समय जिया
जो गाता उसका गालुआ मुर्गा,
मैं और जिंदगी से कुछ नहीं चाहता
वह पहले से मेरी जिंदगी में आता।
उसका आकर्षण आत्मा शरीर पर छाता
सभी कोशिश वह गुम कर जाता।
मैंने क्या कहा? कोई समझ पाया
इस उलझी कविया में भाव एक बह गया।
ओ मौसम और महलों की दुनिया!
फिर यदि दुख मुझ पर छाता
यानी उसका दर्द मुझे फिर दुख पहुंचाता,
यदि उसका तिरस्कार उफ! मैं पाऊँगा
मेरा जीवन समाप्त, नहीं जी पाऊँगा।
ओ मौसम और महलों की दुनिया!
3.
कोमल एहसास
गर्मी की मोहक सांझ में, पगडंडी पर चलते-चलते
गेहूँ की बाल चुभन करें, नर्म घास पैरों के नीचे कुचले,
सपनीला मैं महसूस करूंगा, ताजगी पैरों पर छाती
और सुखद हवा मेरे नंगे सिर को जैसे कोमलता से नहलाती।
नहीं बोलूँगा कुछ भी, न ही सोच मैं पाऊँगा
पर दिव्य प्यार से आत्मा के दर्शन मैं कर आऊँगा,
और हो जाऊंगा बहुत दूर जैसे एक जिप्सी आवारा
प्रकृति के आँचल में, सुखी प्रिया संग उसका प्रेमी प्यारा।
‘मिराबो पुल के नीचे सैन नदी बहती मंथर’ पुस्तक से;अनुवादक- मदन पाल सिंह; प्रकाशक- वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर; संपर्क- vagdevibooks@gmail.com
आर्थर रेम्बो पर एक अलग पुस्तक तैयार कर रहा हु जिसमे उनकी चुनी हुई ५० कविताओ के अनुवाद होंगे और उनके कवि-कर्म और बेहतर जानने का प्रयास करने वाली सामग्री भी.
आशा हैं पुस्तक इसी साल उपलब्ध होगी.
विनीत
मदन पाल सिंह
सोनू जी
आपको जानकर ख़ुशी होगी कि फ्रेंच कविता कि इस सीरीज में, फ्रेंच और फ्रेंचफोनिक कविता को १५ पुस्तकों में लाने का विनम्र प्रयास कर रहा हु. जिसमे सबसे बड़ी पुस्तक समकालीन फ्रेंच कवियों पर ही होगी….समकालीन या नयी पीढ़ी के साहित्यकरो का भी अपना महत्व है क्योकि वे अपने समय को आवाज दे रहे हैं. धन्यवाद आपका.
मदन पाल सिंह
उस जात के अनुवादक अगर सिर्फ़ पैसों की ही मदद लेते तो भी ग़नीमत होती। वो बंदे तो दूसरी तरह की भी मदद लेते हैं, सिर्फ़ क्लासिक्स का ही अनुवाद करते हैं, नई किताबों का नहीं।
sukumaar ehsaason ki kavitaayen !
मदन पाल सिंह को फ्रेंच कविताओं के अच्छे अनुवाद के लिए बधाई कहें। शुभकामनाएं।
आर्थर रेम्बो की कविताओं का हिंदी में पुनर्वास स्वागतेय घटना है। अनुवादक और आपका आभार।
बहुत सुंदर रचनाऐं !