राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का रंगमंडल अपनी पचासवीं वर्षगांठ मना रहा है कुछ लोग के अनुसार इस उपलक्ष्य में शोक सभा होनी चाहिये क्योंकि अब यह अपने अतीत में ही गर्क हो रहा है उसी का बोझ धो रहा है. लेकिन इस अवसर पर एक जलसा हो रहा है और इसी जलसे में एक सेमिनार भी हुआ जिसका विषय था ‘भारतीय रंगमंच पर रानावि रंगमंडल का प्रभाव‘, विषय की व्यर्थता को दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए देवेंद्र राज अंकुर ने ही खारि़ज़ कर दिया. मेरा प्रस्ताव यह है कि यह सेमिनार नहीं शोध का विषय है जिसमें शोधार्थी को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. वैसे इसी सत्र में बोलते हुए भूतपूर्व स्नातक और ख्यात रंगकर्मी प्रसन्ना ने रानावि, उसके प्रशिक्षण, रंगमंडल, संचालन, दृष्टिवीहिनता की जमकर लानत मलानत की. उपस्थिति ‘रानावि परिवार‘ के सदस्य सुनते रहे ये दीगर बात थी की बहुतो को उनकी बातें हजम नहीं हुई. प्रसन्ना मे कहा कि रानावि अपने स्नातकों के लिये ‘गंजी केंद्र‘ यानी राहत पुनर्वास केंद्र में बदल गया है, अब इसमें अभिनय के प्रशिक्षण के अलावा सबकुछ होता है. उन्होंने यह भी कहा कि क्षेत्रिय रंगमंच में रानावि के रवैये के प्रति गहरा आक्रोश है. एक अन्य स्नातक ने उनका समर्थन करते हुए बात जोड़ा कि रानावि के इस गंजी केंद्र की सदस्यता सभी स्नातकों को नहीं मिलती, इसके लिये यहां के पदाधिकारी और स्नातकों के बीच रिश्ता जरूरी है. जो भी हो रानावि का स्नातक जब कुछ बोलता है उसे सब सुनते हैं लेकिन बाहरी कोई बोलता है तो उसके साथ क्या होता है, यह मैं बेहतर झेल चुका हूं. दिलचस्प बात यह थी कि गंजी केंद्र के सदस्य सभा स्थल पर भी थे और इन सबसे बेअसर अपनी गंजी की चिंता में थे. लेकिन इस आयोजन में आमंत्रण और निमंत्रण के पीछे भी खेल था, जो इस आयोजन के साथ सामने आ गया है. रानावि के एक पूर्व स्नातक और रंगमंडल के भूतपूर्व अभिनेता ने इस ‘अभूतपूर्व‘ आयोजन पर एक खुली चिठ्ठी लिखी है- अमितेश कुमार
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महोदय,
सुना कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल अपनी स्थापना का 50 वां वर्ष मना रहा है । बड़ी हर्ष की बात है । जहाँ तक मेरी जानकारी है कुछ महीने पहले भी 50 वर्ष का एक आयोजन किया गया था । बहरहाल, दुबारा इस आयोजन को करने के पीछे क्या मंशा है यह आप लोग बेहतर जानते होंगे । मैंने सुना कि इस आयोजन के लिए रंगमंडल के तमाम पुराने सदस्यों को इक्कठा करने का प्रयत्न भी किया गया ।
किन्तु इन्हें बुलाने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई उम्मीद है इसकी खबर आपको ज़रूर होगी । इसके लिए एक चिट्ठी का फोटो कॉपी करके उपलब्ध किसी भी पते पर पोस्ट कर दिया गया होगा । यह जानने की कोशिश भी नहीं की गई होगी कि वो व्यक्ति अभी तक उस पते पर रहता भी है कि नहीं । मोबाइल, इमेल, सोशल नेटवर्क के युग में मात्र चिट्ठी पर भरोसे के पीछे निश्चित ही कोई ‘महान’ योजना रही होगी ! जो हम जैसे साधारण बुद्धिवाले मनुष्य की समझ से परे है !
मैं भी लगभग पांच साल तक रंगमंडल का सदस्य रहा हूँ और घोर आश्चर्य कि मुझे इस आयोजन के बारे में जानकारी अपने एक मित्र के माध्यम से उस दिन होता है जिस दिन यह आयोजन शुरू हुआ । मैंने फ़ौरन कुछ अन्य पूर्व रंगमंडल सदस्यों को फोन किया तो पता चला कि उन्हें भी इस आयोजन की या तो कोई जानकारी नहीं या है भी तो सही तरीके से नहीं है । वैसे सुना है कुछ ‘खास’ लोगों को फोन भी किया गया और हवाई यात्रा का खर्च भी प्रदान किया गया । वहीं कुछ सीनियर तो दिल्ली में रहते हुए इस आयोजन का हिस्सा नहीं बनना चाहते । पूछने पर कहते हैं “कोई उपयोगिता ही नहीं है, केवल खाना खाने और टीए-डीए का फॉर्म भरने के लिए मैं नहीं जाना चाहता ।” यह स्थिति क्यों है क्या इसकी चिंता करनेवाला रानावि में आज कोई है ? आप सब बड़े कलाकार हैं, यक़ीनन यह बात आपको भी पता होगा ही कि कलाकार सम्मान चाहता है अशोका होटल का कमरा, हवाई सफ़र और टीए-डीए उसकी प्राथमिक ज़रूरतों में नहीं आता ।
वैसे लगभग पांच साल रंगमंडल में बतौर अभिनेता काम करते हुए मैंने अपनी आँखों से देखा है कि रंगमंडल के पास लगभग 12कम्प्युटर है और सबमें नेट का कनेक्शन है और सबलोग इसका भरपूर सेवन भी करते हैं । टोरेंट, यू-ट्यूब और फेसबुक जैसे साईट भी चलती रहती है । रंगमंडल में कई सारे फोन के कनेक्शन भी है जिससे फोन किया जाता है । किन्तु रंगमंडल के पूर्व सदस्यों को सूचना देने के लिए आज भी बाबा आदम के ज़माने की तकनीक का सहारा लिया गया, क्यों ? क्योंकि Old is Gold !
वैसे कितने पूर्व सदस्य पहुंचे और जो नहीं पहुंचे वो क्यों नहीं पहुंचे, क्या यह बात की चिंता किसी की प्राथमिकता में है ? खबर है कि कुल 150 के आसपास लोग आए । तो क्या पचास सालों में केवल इतने ही लोग रंगमंडल से जुड़े थे ?
आज रानावि रंगमंडल की क्या स्थिति है वह किसी से छुपा नहीं है । मेरे सहित कई लोगों ने ऐसी ही ‘असंवेदनशीलता’ का प्रतिकार करते हुए रंगमंडल से त्यागपत्र दिया था । शिक्षा का कोई भी संस्थान यदि असंवेदनशीलता का दामन थाम लेता है तो वहां कला की सेवा होगी इस पर मुझे गहरा संदेह है । चीज़ों को दबा देने से सुधार नहीं होता बल्कि प्रवृतियों को छुपाकर हम उसे प्रश्रय देने का ही काम करते हैं ।
आशा थी कि रानावि निदेशक और अध्यक्ष के बदलने से परिस्थितियों में सुधार होगा किन्तु हाय रे रानावि की किस्मत, फिर वही ढाक के तीन पात । रानावि से जुड़ाव की वजह से बड़े ही दुःख और क्षोभ में यह खुला पत्र प्रेषित कर रहा हूँ और आशा करता हूँ कि पत्र को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार किया जाएगा । हां, रानावि हमारा मदर इंस्टीटयूट है, था और रहेगा, इसमें कहीं कोई संदेह नहीं । ओह, मैं यह तो बताना भूल ही गया कि मेरा नाम पुंज प्रकाश है और मैं सत्र 2004-07 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का छात्र रहा तत्पश्चात2012 तक रंगमंडल का सदस्य और रंगमंडल के असंवेदनशीलता के विरोध में मैंने दिनांक 12 मार्च 2012 को त्यागपत्र दिया । मैंने अपने त्यागपत्र में जिन मुद्दों को उठाया था उसका जवाब आज तक मुझे नहीं दिया गया है । यकीन है कि मेरा पत्र आज भी किसी फ़ाइल में पड़ा धूल खा रहा होगा ।
सादर,
पुंज प्रकाश
पूर्व छात्र व रंगमंडल सदस्य
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली ।
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आपको ये बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि आपका ब्लॉग ब्लॉग – चिठ्ठा – "सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग्स और चिट्ठे" ( एलेक्सा रैंक के अनुसार / 31 मार्च, 2014 तक ) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएँ,,, सादर …. आभार।।
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मैंने इस विद्यालय को बेहद सशक्त रूप में देखा जाना है। आज इस चिट्टी से जो तस्वीर सामने आई वो बेहद अफसोसजनक है। नाटक जैसी रचनात्मक विधा के शीर्षस्थ केंद्र के बारे में इस तरह का पत्र कई सवाल उठाता है। क्या इस संथा की भी वही हालत हो गयी है जो नाटक पढ़ाने सिखाने की अन्य संस्थाओं की है। जहाँ रचनात्मकता छोड़कर बाकी सब कुछ होता है। अधिकांश व्यावसायिक और गैर रचनाशील।