कमल जीत चौधरी की कवितायें मैंने देर से पढ़ी। इसका अफसोस है की क्यों देर से पढ़ी। इनकी कवितायें पढ़ते हुए कई बार मुझे अंग्रेजी के महान कवि आगा शाहिद अली की कविताओं की याद आई। कमल की की कविताओं के घर, आँगन, चाँद सब हिन्दी कविता के परिसर में अपने लिए स्पेस मांग रहे हैं। इस युवा कवि का स्वागत है- प्रभात रंजन
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1.
बिना दरवाज़े वाले घर से चाँद
वह मेरी अभिन्न
हँसकर विश्वासपूर्वक कहती है –
जानते हो
चाँद पर
घर आँगन और खेत
एक दूसरे में होते हैं
वहाँ सन्धों
सांकलों और चिटकनियों में फँस
हाथ ज़ख्मी होने से बच जाते हैं
दरअसल
वहाँ दरवाज़े नहीं होते
फिर चोर होने का सवाल ही कहाँ
वह ठठाकर कहती है –
‘और यहाँ दरवाज़े वाले घर हैं कि
चौकीदार से भी डरते हैं ‘
चाँद पर
एक दूसरे के पाँव पहचानते लोग
छातों को
पालतू जानवरों की तरह
बगल में दबा कर चलते हैं
वहाँ आईने नहीं होते
लड़कियों को दीवार पर परछाई देख कर
सिंगार करने की कला आती है
लड़के माँ की आँखों से
खुद को देख लेते हैं
और माँ !
माँ का नाम सुन
वह उदास हो जाती है
फिर शून्य में ताकती कहती है
जाने क्यों
माँ वहाँ भी अपने आप को नहीं देखती
ऐसा आभास होता है
वह चाँद की शोधकर्ता है
अनेक कहानियाँ सुनाती
वह बताती है
चाँद पर पेड़
कुल्हाड़ियों से नहीं डरते
उनकी जड़ें
लोगों के सपनों में होती हैं
सपनों की चाबी किसी ईश्वर के हाथ नहीं होती
वहाँ नदियाँ
कंठ में खेलती हैं
पानी की ज़रूरत पड़ने पर
लोग गीत गाते हैं
घड़े लबालब भर जाते हैं
कितनी अच्छी बात है
चाँद पर
पतलून और कमीजों की जेबें नहीं होती
मुट्ठियाँ खुश रहती हैं
वह एक कविता सुनाती
बात जोड़ती है
राम नहीं
चाँद अपने अपने होने चाहिए …
कितना अच्छा सोचती हो मेरी दोस्त !
मैं अच्छी तरह जानता हूँ
दरवाज़ों वाले घर में रहकर
चाँद के बारे में ऐसा नहीं सोचा जा सकता
बिना दरवाज़े वाले तुम्हारे घर को
मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
****
2.
भूख और कलम
मेरे पास एक रंगीन पतंग थी
जो हवा का रूख बदल
उड़ सकती थी
तुमने उसकी डोर थमा दी
झाड़ियों में बेर खाते बच्चों के हाथ
तुम बच्चे नहीं थे !
मेरे पास एक खिड़की थी
वह जिसमें खुलनी थी
तुमने उसी आसमान में सुराख कर
उसे सिर पर उठा लिया
मेरे पास एक नदी थी
जिसमें तुम रातभर
नाव खेवते रहे जीभर
जब सुबह होने को थी
तुमने नाव में पत्थर भर दिए
अब तुम
‘नदी गहरी है‘ कहते हो
दूसरों को डराते हो
मेरे पास अनेक रंग थे
तुमने सुपर मॉडल के हाथों
एक आयातित रंग
मेरे रंगों में उडेल दिया
मेरी होली को ठेल दिया
तुमने ब्रुश और कैनवास भी चुरा लिए
तुम जानते थे
मेरे पास ऐसी ऐनक है
जिससे छोटों और बड़ों में
घोड़ों और गधों में
फर्क दिखाया जा सकता है
इससे पहले कि मैं दिखाता
तुम गांधारी हो गए !
मेरी पंतग खिड़की नदी रंग और ऐनक
बेकार बनाकर
सूरज को अपना टायर बनाकर
तुम बहुत खुश हो
पर तुम यह नहीं जानते
मुझे दानों धागों नीवों पर विश्वास है –
भूख और कलम अब भी मेरे पास है।
****
3.
वे लोग
वे लोग
घर में तैरती
मछलियाँ दिखाकर
डल झील सत्यापित करवाना चाहते हैं –
बर्फ को डिब्बों में बंद करके
वे आग लगाना चाहते हैं।
****
4.
सीमा
उसे नहीं पता था
वह अकालग्रस्त जिस जगह रहता था
उस पर एक लीक खींच
एक सीमा घोषित कर दी गई थी
वह बोरियों से बनाई पल्ली *
कंधे पर रखे
दराती हवा में लहराते
कोसों मील आगे बढ़ते
दूसरे देश की हवा को
अपने देश की हवा से
अलग नहीं भेद सका
हलक गीला करता
कोई प्याऊ नहीं छेद सका …
मिट्टी जो कुछ कोस पीछे
गर्म तवा थी
अब पैरों को टखनों तक
ठण्डे अधरों से चूम रही थी
उसकी नज़र और दराती
सामने की हरियाली देख झूम रही थी
वह घास काटता खुश था
पर पण्ड * बनने से पहले
वह सुरक्षा एजेंसियों द्वारा
गिरफ्तार एक जासूस था
मीडिया के लिए एक भूत था
विपक्ष के लिए आतंकी था
दुश्मन देश का फौजी था
जेलर के लिए अपराधी था
नम्बर एक कैदी था
यह लोकतंत्र का दौर था
सच कुछ और था –
भूख से तड़पते उसके गाँव में
मवेशी ही अंतिम आस थी
देश की अपनी सीमा थी
पर उसकी सीमा घास थी
बस्स घास थी !!
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* पल्ली – घास ढोने की चादर
* पण्ड – गठरी
5.
कल्याण भाई के लिए
great sir ji,,, bahut achi lagi sabhi…
Tum sanketo me jo kahte ho usse samajhana der tak santushti deta hai… jesa santosh milta hai aatttayi ko tamacha marne k bad… Hame tum par garv hai kamaljeet…. Khoob khoob badhayi.
Yogita yadav
Indeed Beautiful poetry with beautiful allegorical and symbolic touch and are written on the surface of realities .congratulation कमल जीत चौधरी जी .
कमाल की कविताएँ…कमल की कवितायेँ
kahan ka jaadu liye hue ye kavitaayen saahityaakash par khubsurat indradhanush ki tarah hain.
kahan ka jaadu liye hue ye kavitaayen saahityaakash par khubsurat indradhanush ki tarah hain.
नये तरीके से बात करती और ज़िन्दगी के मर्म खोलती कविताएँ
बिंबों और सपनों का अनोखा मेल हैं इन कविताओं में…शैली कहीं-कहीं पाश्चात्य की ओर उन्मुख होते हुए भी अचानक घर लौटने का सुखद आश्चर्य देती है…..कवि को ढ़ेरों बधाई और प्रभात जी का शुक्रिया ||
Mnn kr rha hai ke bss pdta rahoon…
Bahut badia aur shaandar kavitayen hain ek alg andaaz liye hue. Bhook aur qalm kamaal hai ….. shahnaz imrani
Tippani padhkar achchha lag raha hai.Bahut bahut dhanyavaad Shirish Bhai..
Kulwinder jee dhanyavaad! Kumar tum badhe bhai bhee ho . Aur mere priy kaviyon me se ek bhee…Abhaar!
kamal jeet…tum mere dost ho ya mein tumara dost hoon ya hum ik dusre ke dost hai…aaj kavitaein pad kr faisla nhi kr paa rha…isse jyada tumari tareef nhi kr sakta hoon…ishwer tum ko slamet rekhe
kamal jis kavita ke saath yatra kar raha hai veh ek sukhad manzil tak jati lagti hai.
कमलजीत चौधरी की कविताओं का नियमित पाठक हूं। देर सवेर इस युवा साथी तक पहुंच ही जाता हूं – यहां भी कुछ देर में पहुंचा हूं। कमल की कविताओं की सादगी और उसके कहने के अंदाज़ का साधारणपन उतने ही विशिष्ट और असाधारण बन जाते हैं, क्योंकि इसकी आज की कविताधारा में कमी है( क़द्र करने वालों की भी कमी है)। अलग अलग स्वरों का स्वागत करना भूल चुके विद्वज्जनों के कान एक ही बंदिश सुनने के आदी हैं। कमल की कविता इसी का विनम्र प्रत्याख्यान सामने रखती है। वो बख़ूबी जानता है कि हिन्दी कविता में उन्हें चमक कहां से मिल सकती है पर वो है कि दीवार पर लगे कठिन वक़्त के धब्बों में अपने अभिप्रायों की आकृतियां खोजता फिरता हैं। कमल की अब तक की कवितायात्रा से मैं जान चुका हूं वो सीधे और सधे क़दमों वाला आत्मविश्वास से भरा मुसाफिर है। उसको यह सफ़र मुबारक साथी। जानकीपुल का शुक्रिया।
Bahut Bahut dhanyavaa aap sabhee sudheejanon ka. Jankipul ka haardik aabhaar!
आप के इस कविता रुपी अंतस धारा प्रवाह में डुबकी लगाना बहुत आनंदमय अनुभव था।
bahut sundar kamal bhai
सुन्दर , ताजगी से भरपूर कविताएं ।
TUM CHALI GAI,JAISAY JAATI HAI,KHUSHVANT SINGH KE.,MANOMAJRA KI,AKHRY TRAIN,JAISAY JATI HAI PADHTAY PADHTAY BIJLI…….
आभार।
बहुत मीठी और भावभीनी कवितायें।
बहुत अच्छी कवितायेँ हैं !
शुभकामनाएं कमल को और आपका आभार।
bahut hi badhiya !!