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जनवादी लेखक संघ की लेखकों-कलाकारों से अपील

जनवादी लेखक संघ की ओर से लोकसभा चुनावों के मद्देनजर लेखकों-कलाकारों से अपील जारी की गई है जिसमें भाजपानीत एनडीए के खिलाफ मतदान करने का आह्वान किया है ताकि भारत की जनतांत्रिक परंपरा बनी रहे. आइये इस मुहिम में अपना योगदान करें- जानकी पुल.
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इस चुनाव में एक ऐसी ताक़त देश की सत्ता पर क़ाबिज़ होने की गंभीर कोशिश कर रही है जो इस देश में घोषित रूप से हिंदू राष्ट्र का निर्माण करने के लिए वचनबद्ध एक तथाकथित सांस्कृतिक संगठन का राजनीतिक मोर्चा है। इस मुहिम का नेतृत्व एक ऐसा व्यक्ति कर रहा है जिसके राज में 2002 में मुसलमानों का क़त्लेआम हुआ था और जिसने इस पर कभी कोई पछतावा तक नहीं जताया है। इस मुहिम को देश के सबसे ताक़तवर कॉरपोरेट घरानों का समर्थन हासिल है। बहुसंख्यकवादी ताक़तों और कॉरपोरेट पूंजी के गंठजोड़ का सत्ता पर क़ाबिज़ होना हमारे धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र के लिए ऐसा ख़तरा होगा जैसा ख़तरा आज़ादी के बाद इससे पहले कभी सामने नहीं आया था। हम सभी देशभक्त नागरिकों और जनतंत्र व धर्मनिरपेक्षता की क़द्र करनेवाली राजनीतिक ताक़तों से अपील करते हैं कि धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र की रक्षा के लिए सभी संभव उपाय करें और भाजपानीत एनडीए के खि़लाफ़ वोट डाल कर, देश की सत्ता पर क़ाबिज़ होने की कॉरपोरेट-सांप्रदायिक गंठजोड़ की मुहिम को परास्त करें।

अभी तक हस्ताक्षर करने वाले लेखक:

केदारनाथ सिंह, नामवर सिंह, शेखर जोशी, विश्वनाथ त्रिपाठी, दूधनाथ सिंह, यू.आर.अनंतमूर्ति, सईद नक़वी, ओम थानवी, अशोक वाजपेयीमैनेजर पांडेय, नित्यानंद विवारी, असग़र वजाहत, रमेश कुंतल मेघ, इब्बार रब्बी, मैत्रेयी पुष्पा, मनमोहन, शुभा, पंकज सिंह, सविता सिंह, रामबक्ष, पुरुषोत्तम अग्रवाल, प्रेरणा श्रीमाली, अजित कुमार, कीर्ति जैन, देवी प्रसाद त्रिपाठी, जावेद नक़वी, अनिल मिश्र, वंदना मिश्र, मधु प्रसाद, गीता कपूर, विवान सुंदरम, अपूर्वानंद, रंजना सक्सेना, मंगलेश डबराल, असद ज़ैदी, सुमन केशरी, कुलदीप कुमार, तीस्ता सीतलवाड़, प्रफुल्ल बिदवई, अर्चना झा, ज्योत्सना झा, तनवीर अहमद, सईदा हमीद, प्रेमलता, रविभूषण, राजेंद्र कुमार, प्रणय कृष्ण, स्वयं प्रकाश, अली जावेद, कुमार अंबुज, राजेंद्र शर्मा, वीरेंद्र यादव, वीरेन डंगवाल, खगेंद्र ठाकुर, अर्जुमंद आरा, राजेंद्र राजन, विनीत तिवारी, चंचल चौहान, जवरीमल्ल पारख, जुबैर रजवी, नमिता सिंह, नीरज सिंह, राजेश जोशी, प्रदीप सक्सेना, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, रेखा अवस्थी, कांतिमोहन सोज़, संजीव कुमार
 
      

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5 comments

  1. मैं भी सहमत

  2. मौन धर्मिता
    ढूंढ रहा है वह इस वाचाल समय में ,एक विनय शील विकल्प
    भीतर कि छटपटाहट ज़िंदा रखता है कि एकबारगी सबकुछ उगल देने कि नहीं कोई जल्दी उसमें
    एक वही सुनने में विश्वास रखता है ,जबकि सब सुनाने पर तुले हैं
    उसकी आंच की परख इसी धैर्य से होती है ,सुनकर पचा जाता है बड़ी साधना से
    उसकी मौनधर्मिता को अराजक ,भ्रष्ट। … वाचाल समय का संरक्षक कतई ना माने
    सुनने कि प्रक्रिया में कई अनकही बातों को वह भीतर तक उतार लेता है
    वह शब्द भर नहीं ,उसके पीछे कि मंशा यहाँ तक कि बहुत बोलने वालों कि पूरी रणनीति जानता है
    सावधान हो जाईये जब वह गौर से सुनता है ,तो जान लीजिये भविष्य में वह बहुत कुछ सुनाने कि ताक़त रखता है

  3. इसे प्रसारित करने के लिए शुक्रिया, प्रभात! पर यह जलेस 'का' बयान नहीं है . जलेस सिर्फ इसका माध्यम बना है . जलेस के महासचिव ने पहल ज़रूर ली है, लेकिन हम इसे संगठन की ओर से जारी अपील कहें तो शायद बहुत से लोगों को इससे जुड़ना असुविधाजनक लगेगा . इस समय मकसद तो यह है कि जैसे भी सम्भव हो , इस बात के पक्ष में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को खडा किया जाए . संजीव

  4. मैं आजीवन साम्प्रदायिक,जातिवादी और साम्यवाद-विरोधी तत्वों के विरुद्ध रहा हूँ.'नवभारत टाइम्स' की संपादकी भी उसी कारण छोड़नी पड़ी थी.आज के ख़तरे के बारे में सारे लेखकों-बुद्धिजीवियों को आगाह करता हुआ हिंदी का पहला लेख पिछले वर्ष इन्हीं दिनों मैंने ही लिखा था.अभी पिछले हफ़्ते एक ऐसी ही अपील को अपने दस्तख़त-सहित अंग्रेज़ी में प्रसारित किया है.वह संसार-भर में गयी है और 'जनपथ' ब्लॉग पर उपलब्ध है.

    विष्णु खरे

  5. kripaya mujhe bhi is muheem mein shaamil samjhe : piyush Daiya

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