आज हमारे लोकतंत्र के महासमर का आखिरी मतदान चल रहा है. आइये रवि भूषण पाठक की कुछ राजनीतिक कवितायेँ पढ़ते हैं और उसके निहितार्थों को समझने की कोशिश करते हैं- जानकी पुल.
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1.
रूको देश
काला जादूगर के आंखों का सूरमा हो जाएगा बासी
थक जाएगी उसकी उँगलियां
थूक देंगे उसके ही जमूरे उस पर
रूको देश रूको ……..
कैलिडोस्कोप के कांच उसेे ही भरमा देंगे
भरमाता प्रकाश डरा देगा उसे
वह अपने ही शब्दों से झूंझला उठेगा
हटाने दो हेलमेट
फेंकने दो ब्रेक
वह आत्मविश्वास की मौत मरेगा
2
झूठ के इतने रंगारंग आयोजन के विरूद्ध हमारे पास सिर्फ गालियां बची है
वही पुरानी गालियां जो सबसे ज्यादा दुहरायी जाती है
हिसाब चुकता करने की गारंटी पाले हुए
हम भाषा के संग बिल्कुल नंगे होकर
देख रहे थे कविता और सभ्यता के संस्कार
वे सब जो हमें बहुत ही नापसंद थे
जैसे गुट ,नारे ,गालियां-गोलियां ,राजनीति
आज उतनी भी बुरी नहीं लग रही थी
हम दारू के पहले घूंट से ही शुरू करना चाहते थे
चाहे जितनी भी करवी हो
बदलने का माद्दा तो था इसमें
क्योंकि इसने झूठ की सारी परतों पर ऊंगली रख दी थी
केंचुल नेस्तनाबुद भले न हुआ
लुहलुहान हो गया था
3
उस बहुरूपिये सांप की माया पढ़ना चाहता मैं
गुणना चाहता उसके दांतों की बनाबट
परखना चाहता उसके विष की तासीर
भांपना चाहता ‘फूं-फूं‘ का करतब
नाकों के दोनों ओर के मूंछों को उखाड़
देखना चाहता मूंछों की जड़
और साजिशों की कीचड़
आमाशय में छिप उसका भूख नापना चाहता
जिससे जन्मे बच्चे भी बच नहीं पाते
मैं उसकी धमनियों में घूस उसके प्राणविन्दु तक जाना चाहता
तंत्रिकाओं में बैठ जानना चाहता वह नागिन नाच
जिसके वशीभूत देश नाच रहा है
रवि भूषण पाठक
09208490261
बहुत बढ़िया ।