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पैशन, फ़न, रोमांस, लाइफ़ और लव की तलाश है ‘फाइडिंग फ़ैनी’

प्रसिद्ध लेखिका अनु सिंह चौधरी सिनेमा पर बहुत बारीकी से लिखती हैं, पढ़नेवालों को फिल्म फ्रेम दर फ्रेम समझ में आने लगती है. अब देखिए कल रिलीज हुई फिल्म ‘फाइंडिंग फैनी’ पर लिखते हुए उन्होंने फिल्म के अन्य पहलुओं के साथ-साथ फिल्म में इस्तेमाल किये गए प्रॉप तक की चर्चा की है. बहरहाल, रिव्यू पढ़कर मैंने पहला काम किया ‘बुक माई शो’ में सन्डे शाम के लिए इस फिल्म का टिकट बुक कर लिया. आप भी पढ़िए, फिल्म न भी देखें तो रिव्यू पढ़कर फिल्म न देख पाने का अफ़सोस नहीं रहेगा- मॉडरेटर.
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फाइडिंग फ़ैनीके पोस्टर के मुताबिक पांच किरदार पांच चीज़ों की तलाश में हैं – पैशन, फ़न, रोमांस, लाइफ़ और … लव… और क्या। यूं समझ लीजिए कि फिल्म के निर्देशक होमी अदजानिया ने इन पांच दिलचस्प किरदारों – फर्डी (नसीरुद्दीन शाह), रोज़ी (डिंपल कपाड़िया), डॉन पेड्रो (पंकज कपूर), एंजी (दीपिका पादुकोण) और सावियो (अर्जुन कपूर) को गोवा के छोटे से गांव में बस छोड़ दिया और कह दिया कि यहां से अपने-अपने किरदारों की कहानियों तुम रच लो दोस्तों। हर किरदार किसी एक चीज़ का मेटाफ़र है। ढूंढ सब फ़ैनी को रहे हैं, लेकिन इस प्रोसेस में ढूंढ रहे हैं अपने लिए एक-एक चीज़ – पैशन, फ़न, रोमांस, लाइफ़ और लव। फिर पर्दे पर जो नज़र आता है, आपको अचंभित कर देने का माद्दा रखता है। ये फिल्म एक कविता है। नहीं… ये फिल्म एक पेंटिंग है शायद। न… न… ये फिल्म एक सफ़र है जिस पर एक खटारा नीली विदेशी कार फ़ैनी की तलाश के बहाने ले जाती है हमको, और याद दिलाता है ये सफ़र कि हम भी तो अपनी फ़ैनियाढूंढ रहे हैं।
कई दिनों बाद मैंने ऐसी कोई फिल्म देखी है जहां एक भी प्रॉप बेजां इस्तेमाल नहीं हुआ है, जहां एक भी बात या एक भी डायलॉग बेमतलब नहीं है। अनिल मेहता के कैमरे की आंखों से जो गोवा हमें दिखाई देता है वो गोवा किंगफिशर के ईयरएंडर कैलेंडर का गोवा नहीं है। वो गोवा आपकी टाईमलाईन पर समंदर में डुबकियां लगाते दोस्तों की छुट्टियों वाला गोवा भी नहीं है। वो गोवा मनोहर पारिक्कर का अपमार्केट, तरक्कीपसंद गोवा भी नहीं है। वो गोवा किसी पेड्रो, किसी डि गामा का गोवा है जहां से ज़िन्दगी गुज़रती है तो ठीक उसी रफ़्तार से जिस रफ़्तार से आप उसके साथ गुज़र जाना चाहते हैं।
पोकोलिम नाम के जिस गांव में फैनी के नाम की चिट्ठी फर्डी के पास छियालिस साल बाद वापस आती है उस गोवा को देखकर हैरत होती है – ये कौन-सी दुनिया है जिससे हमारा वास्ता नहीं? किसी फैंसी अंग्रेज़ी उपन्यास में क़ैद हो गई ये दुनिया जब परत-दर-परत, एक्ट-दर-एक्ट हमारी आंखों के सामने खुलती है तो जी चाहता है कि अपनी तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी को उसके दामन को पकड़कर इसी नीला गाड़ी में उसे जबर्दस्ती बिठा दें, और उसे ठीक वही नींद की गोली वाला पानी पिला दें जो सावियो रोज़ी को दे देता है। फ़ैनी की तलाश सिर्फ़ फर्डी को नहीं है, हमें भी है। फ़ैनी उस ज़िन्दगी का मेटाफ़र है जिसके पीछे हम भागते हैं और ज़िन्दगी हमें अंगूठा दिखाती हुई और आगे भागती चली जाती है। फ़ैनी की तलाश अपनी खोई हुई ज़िन्दगी की तलाश है।
अनिल मेहता का कैमरा सिर्फ़ गोवा का कुदरती रूप ही नहीं पकड़ता, धूप और छांह का खेल पकड़ता है, कहीं से डूबता हुआ सूरज पकड़ता है और पकड़ता है रोज़ी के भारी-भरकम शरीर में फंस कर रह गई उसकी नामाकूल रूह को। इस तरह की फिल्म में बातें संवादों के ज़रिए नहीं, आंखों और भौंहों के ज़रिए होती हैं और मुझे नहीं लगता कि अदाकारों से ये काम करवाने में होमी को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी होगी। पंकज कपूर को जानते हैं आप? इस फिल्म में आप पंकज कपूर को भूल जाएंगे, और याद रखेंगे एक सनकी, नशेड़ी, ड्रामेबाज़ पेंटर डॉन पेड्रो जो मेरे और आपके भीतर का पैशन है – पैशन भी, ग्रीड भी और ख़ुदगर्ज़ी भी। पंकज कपूर की एक्टिंग के बारे में एक और पंक्ति लिखना उनका अपमान करना होगा। कुछ बातें अनकही ही अच्छी, कुछ एक्टर बिना किसी रिव्यू के ही ठीक। 
नसीर और डिंपल अपना-अपना चार्म बरकरार रखते हैं। सबसे हैरान अर्जुन कपूर ने किया है। मैं ये बात दावे के साथ कह सकती हूं कि ये अभी तक का अर्जुन कपूर का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है (और मैंने अर्जुन कपूर की सारी फिल्में देखी हैं – औरंगज़ेब भी)। दुनिया के बड़े पेचीदा रास्तों में गुम हो गए एक सादादिल लड़के की भूमिका में अर्जुन ने शायद ठीक उतना ही किया, जितना डायरेक्टर ने कराया और ये अर्जुन की सबसे बड़ी जीत है।
फिल्म के साथ-साथ फिल्म के म्युज़िक की बात करना लाज़िमी हो जाता है। उस फ्रेंच म्युज़िक डायरेक्टर का नाम जाने कैसे बोला जाता है, लेकिन ये माथिया द्युपले (Mathias Duplessy) नाम के अनजाने संगीतकार को लेकर होमी ने एक और हिम्मत का काम कर दिखाया है। एफएम पर एक किस्म का संगीत सुनते-सुनते पक गए कानों को वेस्टर्न बेस्ड (ख़ासकर फ्लैमेंको बेस्ड टाइटल सॉन्ग) गानों अच्छे लगते हैं। पीछे बजता स्पैनिश गिटार और उसके साथ का बैंजो हमें सीधे गोवा पहुंचा देता है, और फिल्म में गाने के इतनी तेज़ी से आने और आकर चले जाने का एक किस्म का अफ़सोस सालता है। शेक योर बूटियाद्विअर्थी है शायद, लेकिन मेरी और आपकी कही हुई साधारण बातों के भी तो जाने कितने अर्थ निकलते हैं।
डायरेक्टर के तौर पर होमी अदजानिया की सबसे बड़ी जीत उस डर को अपने क्राफ्ट के दम पर जीत लेने का भरोसा रखना है जो डर बॉक्स ऑफिस से आता है। होमी को भी शायद ये बात अच्छी तरह पता होगी कि दर्शकों को ये फिल्म या तो बहुत अच्छी लगेगी, या फिर बहुत ख़राब। बीच की कोई फीलिंग ये फिल्म आपके भीतर पैदा करे, इसकी गुंजाईश कम है। यूं भी इस तरह की एक्सपेरिमेंटल फिल्म खराब भी निकली तो आपमें ज़्यादा से ज़्यादा एक किस्म की तटस्थता लेकर आती है जो एक दर्शक के तौर पर हमारी दिमागी सेहत के लिए अच्छा है।

और मेरी तरह जिन्हें फिल्म अच्छी लगेगी उन्हें मालूम चल जाएगा कि एक फ़ैनी की तलाश के बहाने इन पांचों की तरह हम सब भी वही पांचों चीज़ ढूंढ रहे हैं जिनसे मिलकर ये बेमुरव्वत ज़िन्दगी पूरी होने का गुमां देती है। पैशन, फ़न, रोमांस, लाइफ़ और … लव… और क्या!
 
      

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8 comments

  1. अनु सिंह चौधरी की फिल्म 'फाइंडिंग फैनी' पर समीक्षा वास्तव मे इसे परत दर परत खोलती है .ऐसी समीक्षा पढकर हम जैसों के लिये बडा आसान हो गया है जो नियमित फिल्में नहीं देखते. अभी जैसे हाल ही मे फिल्म मैरीकोम देखी,वास्तव मे एक प्रेरणादायक फिल्म है. अनु जी को मैने पहली बार ही पढा, लेकिन कायल हो गया. मेरी बधाई एवं शुभकामनायें ………. रावेल पुष्प/कोलकाता.

  2. बेहतरीन व्याख्या अनु जी

  3. Ye review pad kr film or achhi tarah samagh m aa gai . Thanks sir ye review pdne ke liye

  4. AniLmehta ki tarif to unki sabhi filmo m ki ja skti hai . Film achhi thi . Bus deepika agar1-2 jagah love aj kal ki meera na bnti to . But film jhakas h

  5. बहुत ही उम्दा और बेहतरीन विश्लेषण ..बॉलीवुड में आजकल प्रयोगधर्मी कमाल काम कर रहे हैं ..अच्छी पोस्ट

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