आज स्वरांगी साने की कविताएं. कुछ कवि ऐसे होते हैं जो चुपचाप लिखते चले जाते हैं, छपने-छपाने के मोह में ज्यादा पड़े. पढ़कर उनकी कविताओं पर अपनी राय दीजिए- मॉडरेटर
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1.
मोरपंख
एक घने जंगल में
वो चली जा रही थी अकेले
जंगल और घना होता जाता
और उसकी यात्रा और एकाकी
वो न कोई राजकुमारी थी
न ही परी
की कोई उसे खोजते हुए आ जाता
इतने घने जंगल में घिर गई थी
कि उस तक कोई किरण भी नहीं पहुच रही थी
अचानक किसी दिन
उसके हाथ लगा इक मोरपंख
घने अँधेरे में उसने देखा
मोरपंख के सातों रंगों को
छुआ उसके स्पर्श को
अब घने अँधेरे में
वे दोनों थे
एक वो और दूसरा मोरपंख
लेकिन अब उसे
अँधेरा बुरा नहीं लगता था
मोरपंखों के रंगों में वो खो गई थी
उसके दिन भी मोरपंखी हो गए थे
और
स्याह रात भी सतरंगी
दिन बीतते गए
दिनों को बीतना ही था
मोरपंख उड़ने लगा हवा के साथ
अब वो आगे आगे
ये पीछे पीछे
लेकिन लड़की आल्हादित थी
हर बार वो उसे पकड़ती
हर बार वो छूटता
था घना जंगल
थे सैकड़ों झाड़ -झंखाड़
मोरपंख उड़ाता चला जाता
हवा चली बहुत तेज़
तो आसमान से बातें करने लगा
अब अँधेरा था
जो डरता कचोटता था
और वो थी निपट अकेली
मोरपंख
इन्द्रधनुष बन गया था
छा गया था आसमान पर
वो रह गई थी ज़मीन पर
वैसी ही अकेली
2.
धोखा
— कोहनी टिकाये बैठी थी
कि मेज़ पर गिर पड़ी दो बूँदें
धोखा खा गए थे मेरे आँसू
वो तुम नहीं थे तुम्हारी छवि थी
जिसके बाहर हूँ मैं
तुम्हें देखती हुई
जिसके भीतर हो तुम कहीं और देखते हुए
3.
संवाद
बहुत दिनों बाद तुम्हें फ़ोन किया
तुम न मेरी आवाज़ पहचान पाए
न मेरा नाम ही
पूछ बैठे कौन
इस प्रश्न ने मुझे अब तक उलझा रखा है
मैंने बंद कर दिया है
तुमसे अपना वार्तालाप
अब शुरू हुआ है
मेरा खुद से संवाद
4.
घृणा
जैसे चाशनी बनाते हुए
थोड़ा नमक डालने की सलाह दी जाती है
कि सहूलियत हो जाए
चाशनी को तार- तार होने की
वैसे ही इक चिट्ठी लिखना चाहती हूँ प्यार भरी
और उसमें इक शब्द डालना चाहती हूँ तिरस्कार
ताकि जब तुम हिकारत करो
तो सरल हो जाए मेरे लिए भी
तुमसे घृणा कर पाना
5.
अपनी अपनी जगह
1.
वो आया तो गुलनार हो गई मैं
उसने कहा
ऐसे बैठो
यूँ दिखो
अब हँसो
तब समझी कि मैं तो उसके लिए मेहमान खाना भर थी
जिसे सजाया सवार जा सकता मन मुताबिक
और जहाँ से जब जी चाहे उठकर जाया जा सकता है
2.
मेरे सारे रंग थे
पर वैसे नहीं
जैसे वो चाहता था
उसके हाथ में कूची थी
उसके रंग थे
तब जाना था
वो है एक बंद स्टूडियो
और उसके लिए
मैं एक खाली कैनवास
3.
मेरे लिए कनफ़ेशन रूम की तरह था वो
कह उठा- कहो
और मैं कहती गई
फिर बोल पड़ा
अब बंद करो
तो समझी
उसके लिए मैं एक सिस्टम थी
जैसे होता है म्यूज़िक सिस्टम
कि चाहा तब ऑन-ऑफ़ कर दिया
4
प्यार में ऊँचा उठा जाता है
कितना
और कैसे पता नहीं
पर मैं थी उसके लिए महज लिफ़्ट
जिसका दरवाज़ा कभी भी धाड़ से बंद किया जा सकता है
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naye roop rang ki kavitien .. behtreen 🙂
कुछ चौंकाती हुई, कुछ मन को बहलाती हुई – सीधे संवाद करती हुई कवितायेँ
मौन स्वर बहुत मुखरित मन की गाँठे खोलते हुए से,
बहुत कुछ गुन कर
बुनते हुए से…..
Vakai badhiya…. apko badhai
सामने से आ रही नकारात्मकता को सशक्तता से नकारती कवितायें
एक से बढ़कर एक बढ़िया रचना।
स्वरांगी जी की कविताएं बेहद संवेदनशील गुत्थियां खोलती हैं।
बधाई हो स्वरंगी जी, आपकी सभी कविताएं बहुत ही अच्छी हैं, सभी कविताएं गंभीरता से सोचने पर विवश करती हैं। हार्दिक शुभकामनाएं।