Home / ब्लॉग / सारा आकाश पड़ गया छोटा, इतना ऊंचा था कभी सर अपना

सारा आकाश पड़ गया छोटा, इतना ऊंचा था कभी सर अपना

कभी कभी सोचता हूँ हिंदी की मुख्यधारा से सार्थक लेखन करने वाले बहुत सारे लेखक कैसे काट दिए जाते हैं. बिहार के लेखकों को लेकर हिंदी की मुख्यधारा कुछ अधिक ही निर्मम रही है. मुझे नामवर सिंह का वह भाषण आज टीस देता है जिसमें उन्होंने कहा था कि रेणु जैसे लेखकों ने हिंदी भाषा को भ्रष्ट कर दिया. बहरहाल, चंपारण में रहने वाले हिंदी-भोजपुरी के कवि, साहित्य सेवी दिनेश भ्रमर की गज़लों को जब पढ़ा, उनके बारे में युवा लेखक अमितेश कुमार की टिप्पणी पढ़ी तो फिर से वही दर्द टभकने लगा. क्या हिंदी की मुख्यधारा बनारस से दिल्ली तक ही है? फिलहाल, दिनेश भ्रमर पर अमितेश की एक छोटी सी टिप्पणी के साथ दिनेश भ्रमर की ग़ज़लें पढ़िए- प्रभात रंजन 
=============================================================

दिनेश भ्रमर ने साहित्य साधना कम वयस में शुरू की थी. हिंदी में नवगीत के शुरूआती रचनाकारों में से वे थे. भोजपुरी में पहली बार ग़ज़ल लिखने का श्रेय उन्हीं को है, वे ग़ज़लें भोजपुरी साहित्य के पाठ्यक्रमों का हिस्सा है. दिनेश भ्रमर को पिता के देहावसान के बाद घर गॄहस्थी संभालने के लिये गांव लौटना पड़ा, अध्यापकी और परिवार में उन्होंने परिवार को चुना (ज्येष्ठ होने के नाते भी). हिंदी के मुख्यधारा परिदृश्य में उनकी या उन जैसो की मौजूदगी नहीं मिलेगी. लेकिन बगहा जैसे कस्बाई शहर में रहते हुए उन्होंने साहित्यिक माहौल के निर्माण
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

4 comments

  1. प्रभात जी को धन्यवाद भ्रमर जी की गजलें पढ़वाने के लिए । ऐसे कई गुदड़ी के लाल हैं जिनकी रचनाओं से हिन्दी साहित्य जगत अनभिज्ञ है । जानकीपुल के माध्यम से ऐसी रचनाएँ सामने लाने के लिए कोटिशःधन्यवाद।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *