Home / ब्लॉग / बीतता साल और हिंदी किताबों के नए ट्रेंड्स

बीतता साल और हिंदी किताबों के नए ट्रेंड्स

हिंदी किताबों की दुनिया में पाठकों से जुड़ने की आकांक्षा पहले से बढ़ी है, इस दिशा में पहले भी प्रयास होते रहे हैं, लेकिन इस साल इस दिशा में कुछ लेखकों, प्रकाशकों ने निर्णायक कदम उठाये. जिसके बाद यह कहा जा सकता है कि आने वाले सालों में हिंदी किताबों की दुनिया वही नहीं रहेगी जैसी कि यह अब तक है. मैं उन लेखकों में नहीं हूँ जो हर बदलाव की पहले तो उपेक्षा करता है, जब उससे काम नहीं चलता है तो विरोध करने लगता है. मैं बदलावों को सकारात्मक रूप से देखता हूँ. आप शर्त लगा लीजिये, साल के आखिर में जितने अखबारों, पत्रिकाओं में साल भर के किताबों का लेखक जोखा प्रकाशित होगा, हो रहा है उनमें इन स्वागतयोग्य बदलावों का कोई जिक्र तक नहीं होगा, जिनकी चर्चा मैं इस आलेख में करने जा रहा हूँ.

संयोग से पिछले सप्ताह लगातार तीन दिन किताबों के तीन ऐसे आयोजनों में जाना पड़ा जिनका सम्बन्ध इन्हीं नए बदलावों से था. सबसे पहले 17 दिसंबर को ऑक्सफ़ोर्ड बुक स्टोर में नीलेश मिसरा की किताब ‘बस इतनी सी थी ये कहानी’ का लोकार्पण था. असल में यह आयोजन हिंदी में एक नए तरह की शुरुआत है. इस किताब का प्रकाशन नाइन बुक्स इंप्रिंट के तहत किया गया है. नाइन बुक्स बदलते भारत के साहित्य के नवरस को बटोरने की कोशिश है। नाइन बुक्स इंप्रिंट वाणी प्रकाशन और कंटेंट प्रोजेक्ट का एक साझा प्रयास है, जो उभरते भारत को नये, चमकते साहित्य और किस्सागो देगा। वाणी प्रकाशन पिछले 50 वर्षों से भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन गृहों में से एक रहा है और नाइन बुक्स इंप्रिंट के तहत कंटेंट प्रोजेक्ट साउथ एशिया की पहली लेखकों की कम्पनी है, जो भारत में उर्वर साहित्य को नया आयाम देने की पहली लेखकों की कम्पनी है। कहानी कला को नया आयाम देने के लिए नीलेश मिसरा ने किस्सागो युवा लेखकों की कहानी बनाने, कहने-सुनने की मंडली तैयार की है। देश भर में दूरदराज बैठे मंडली के सदस्य अपनी-अपनी कहानी नीलेश जी के नेतृत्व में युवा रचनाकारों के बीच चर्चा कर हिन्दी कहानी के इतिहास में एक नया आयाम रच रहे हैं। पाठकों से सीधे कहानी कहने, गढ़ने के इन लेखकों के अपने रिश्ते हैं। हिंदी लेखकों की वर्तमान पीढ़ी उदयप्रकाश के विराट फ़ॉर्मूले में इस कदर फँस चुकी है कि उसके पास कहने को नया कुछ भी नहीं है, ऐसे में नीलेश मिसरा के किस्सों से कहानियों की दुनिया में नई ताजगी आएगी, आने वाले सालों में एक नया बदलाव आएगा. यह एक बड़ा शिफ्ट हिंदी कहानियां अब ‘अर्बन’ हो रही है, हो ही नहीं रही है बल्कि उसको स्वीकृति भी हो रही है.

दूसरा आयोजन था इंदिरा गाँधी सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर में ‘नीला स्कार्फ’ की लेखिका अनु सिंह चौधरी से बातचीत का. बातचीत करने वाली थी नताशा बधवार. ऊपर जिस ‘अर्बन’ कहानी का जिक्र मैंने किया ‘नीला स्कार्फ’ उसका सबसे बड़ा उदाहरण बनकर इस साल अवतरित हुआ और बड़े पैमाने पर न केवल उसको स्वीकृति मिली बल्कि समादृत भी हुई. अगर बात सिर्फ प्रचार-प्रसार की हो तो किताबें आती हैं, चली जाती हैं. लोग भूल जाते हैं. लेकिन प्रकाशन के छह महीने बाद भी जिसकी अनुगूंज सुनाई देती रह जाए तो वह किताब टाइटल बन जाती है. मेरा मानना है कि किताब से टाइटल तक के सफ़र के दौरान ‘नीला स्कार्फ’ एक ट्रेंडसेटर किताब के रूप में स्थापित हुई. सिर्फ पाठकों के बूते इस किताब ने अपनी एक बड़ी जगह बनाई है. इसमें साहित्यिक दुनिया के झूठे फ़ॉर्मूले नहीं हैं, महानगर में विस्थापित एक स्त्री के नजरों का, उसके सोच का वह संशय है जो उस परंपरागत रूप से मूल्य के रूप में मिले हैं, और उसका जो समकालीन जीवन है वह बार बार परंपरा के उस चौखटे को तोड़कर बाहर निकल जाना चाहता है. संग्रह की कुल 12 कहानियों को घोषित तौर पर स्त्रीवादी नहीं कहा गया, लेकिन यह आज की स्त्रियों के जीवन के अधिक करीब कहानियां हैं.

मैं अपने सारे बुजुर्गों को प्रणाम करके यह कहना चाहता हूँ कि इस साल प्रकाशित उनकी किताबों में अतीत से चिपके रहने की जिद अधिक दिखाई दी, उनके लेखन में भविष्य की आहटें सुनाई देना बंद हो गई हैं. ‘नीला स्कार्फ’ जैसी किताबें यह बताती हैं कि भविष्य में हिंदी का लेखन कैसा होगा? अगर कोई मेरी सुनता हो तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि इस साल की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक ‘नीला स्कार्फ’ है, जिसकी सीधी-सादी कहानियां जीवन के अधिक करीब दिखाई देती है.

तीसरा आयोजन था 19 दिसंबर को हैबिटैट सेंटर में राजेश खन्ना की जीवनी- ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ के लोकार्पण का. यह किताब भी के नए ट्रेंड की है. पिछले साल पेंगुइन ने हिंदी अंग्रेजी में एक साथ किताबें प्रकाशित करने के ट्रेंड की शुरुआत की. इस तरह की पहली किताब थी पंकज दुबे की ‘लूजर कहीं का’, जो उपन्यास था. राजेश खन्ना की यह जीवनी भी दोनों भाषाओं में एक साथ आई है. इस साल ऐसा लगा जैसे पेंगुइन ने हिंदी में अपनी जमीन पा ली है. अगर देखें तो इस साल जिस उपन्यास की सबसे अधिक चर्चा रही वह है रणेन्द्र का उपन्यास ‘गायब होता देश’, जिसे पेंगुइन ने प्रकाशित किया. सुभाष चन्द्र कुशवाहा की चौरी चौरा पर लिखी किताब भी खासी हिट रही, जिसका प्रकाशन पेंगुइन ने किया था.

पाठकों तक किताबों को पहुंचाने की कोशिश में हार्पर हिंदी ने महान लोकप्रिय उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास ‘कोलाबा कोंस्पिरेसी’ का प्रकाशन किया, मेरे प्रिय लेखक रवि बुले के उपन्यास ‘दलाल की बीवी’ का प्रकाशन किया, जो पाठक जी के उपन्यास के मुकाबले चली नहीं. इसका कारण मुझे लगता है कि उपन्यास का नाम और कवर रहा. हिंदी में अब भी दबा छुपा माहौल है. अंदर कंटेंट जैसा भी हो ऊपर से सब दबा छुपा होना चाहिए. लेकिन यह प्रयास स्वागत योग्य है.

यात्रा बुक्स ने अनुवाद में ही सही तुर्की के लोकप्रिय उपन्यासों को सामने लाने का काम किया. हाकान गुंडे का उपन्यास ‘दफ्न होती जिंदगी’ इस्लाम की एक दूसरी छवि हमारे सामने रखता है, तो बारिश एम के उपन्यास ‘एक भाई का क़त्ल’ में अपराध कथा के रूपक में जिस तरह से गायब होते बच्चों के सब्जेक्ट को उठाया गया है वह महत्वपूर्ण है.

आखिर में, एक बड़ी शुरुआत का जिक्र और. अपने साठ साल के विरासत पर नाज़ करने वाले प्रकाशन राजकमल प्रकाशन ने ‘सार्थक बुक्स’ के नाम से एक नए इंप्रिंट की शुरुआत की है, जसके पहले सेट में दो यात्रा वृत्तांतों का प्रकाशन किया गया है. अजय सोडानी के ‘दर्रा दर्रा हिमालय’ किताब के ऊपर मैंने लिखा भी है. इसमें कोई शक नहीं कि वह अच्छी पठनीय किताब है. लेकिन यह कोई ऐसी शुरुआत नहीं है जिसे ट्रेंडसेटर कहा जा सके. एक तो यात्रा वृत्तान्त कोई पहली बार तो आया नहीं है, दूसरे राजकमल जब पाठक केन्द्रित पुस्तकों की दुनिया में नए इंप्रिंट की शुरुआत कर रहा है तो उससे उम्मीदें बड़ी होती हैं. फिलहाल, उम्मीद बाक़ी है. शायद अगले सेट्स में मेरे जैसे पाठकों की उम्मीदें पूरी हों.
प्रभात रंजन 

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

16 comments

  1. तथ्य परक, पठनीय लेख. परिवर्तन का सदेव स्वागत होना ही चाहिए, पर इसके मायने यह तो नहीं पुरानी विधाएं और कथाएं दोयम हो गयीं, न मालूम क्यों पर कुछ ऐसी अनुगूँज सी सुन पड़ती है इस लेख में.

  2. एक सुन्दर लेख। दो तीन किताबों के नाम मालूम हुए जिनके विषय में मालूम न था। इनको नज़र में लाने के लिए धन्यवाद।

  3. This comment has been removed by the author.

  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

  5. एक बड़ा शिफ्ट हिंदी कहानियां अब ‘अर्बन’ हो रही है, हो ही नहीं रही है बल्कि उसको स्वीकृति भी हो रही है.

  6. सुन्दर विवेचन !

  7. गजब!
    हिंदी लेखकों की वर्तमान पीढ़ी उदयप्रकाश के विराट फ़ॉर्मूले में इस कदर फँस चुकी है कि उसके पास कहने को नया कुछ भी नहीं है….. मतलब यह कि रचनात्मकता के नाम पर हम जूठन बटोर रहे हैं….. ओवरआल आपका आलेख कुछ नए ही बिचारणीय बिन्दु उठाता है। देखने की एक अलग ही दृष्टि है इसमे ….. बधाई।

  8. Its meaningful remarks onto Hindi writing and books.

  9. भाई, जिस शहर में रहता हूँ वहीं के आयोजनों में ही जाऊँगा न. लेकिन ये लेख आयोजनों पर नहीं किताबों पर है.

  10. तीन आयोजन वो भी दिल्ली में…आप भी सीमित दायरे में ही लिखते हैं।

  11. आपकी लिखी रचना आज बुधवार 24 दिसंबर 2014 को लिंक की जाएगी……….. http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ….धन्यवाद!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *