इस बार विश्व पुस्तक मेले की शुरुआत वेलेन्टाइन डे के दिन हो रही है और हिंदी के दो बड़े प्रकाशकों में इश्क को लेकर ‘ब्रांड वार’ की शुरुआत हो गई है. पहली किताब है राजकमल प्रकाशन के नए इंप्रिंट ‘सार्थक’ से प्रकाशित ‘इश्क में शहर होना’, जिसके लेखक हैं जाने माने पत्रकार रवीश कुमार, जो पत्रकारिता में अपने सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. लेकिन यह उनके लिखे लप्रेक का संग्रह है. एक नई विधा है, नई उत्सुकता है. पुस्तक जयपुर साहित्योत्सव में लांच हो चुकी है और इसको लेकर चर्चा खूब हो रही है. अपने फेसबुक पेज पर राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से लिखा गया है- ‘इस #श्रृंखला की दूसरी और तीसरी किताबें भी निश्चित अंतराल पर आपको मिल जाएँ और इस साल #वैलेंटाइन मिजाज #लगातार तीन महीने बना रहे, लप्रेक टीम इसी कोशिश में है। इश्क में शहर होते हुए आप तिमाही वैलेंटाइन #मौसम के लिए तैयार रहिये। आपका उत्साह ही लप्रेक को आगे ले जायेगा. प्रसंगवश, लप्रेक श्रृंखला की दो अन्य पुस्तकों के लेखक हैं विनीत कुमार और गिरीन्द्रनाथ झा. लप्रेक को आशिकों के लिए आशिकी का सबब बनाने की कोशिश हो रही है.
दूसरी पुस्तक है इरशाद कामिल की ‘एक महीना नज्मों का’. जिसका प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने किया है. वाणी प्रकाशन के फेसबुक पेज पर इस किताब की टैगलाइन दी गई है- इस वैलेंटाइन डे पर प्यार का इज़हार गुलाब से नहीं किताब से… इरशाद फिल्मों के जाने माने गीतकार हैं. इस किताब का मुम्बई में जबरदस्त लांच भी हुआ है, जिसमें मेरे दोस्त फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली समेत तमाम सितारे मौजूद थे.
प्रेमियों को कौन सी किताब अधिक भाएगी यह तो पता नहीं लेकिन कुछ बातें हैं जो इस तरफ ध्यान दिलाने के लिए हैं कि हिंदी में मार्केटिंग, प्रचार-प्रसार को किस तरह से लिया जाता है. ‘इश्क में शहर होना’ की कीमार रखी गई 99 रुपये, जबकि अमेजन.इन पर प्री लांच में यह किताब पाठकों को महज 80 रुपये में मिली. इस किताब ने ऑनलाइन सेल को एक नया आयाम दिया और पहली बार किसी बड़े प्रकाशक ने ऑनलाइन बिक्री को गंभीरता से लिया, अपनी पुस्तक के प्रचार से जोड़ा. इस पुस्तक के प्रचार प्रसार में, बिक्री में ऑनलाइन की बड़ी भूमिका है. दूसरी तरफ, इरशाद कामिल की किताब को वाणी ने हार्डबाउंड और पेपरबैक दोनों में छापा है. उसके हार्डबाउंड संस्करण की कीमत है 395 रुपये. हाँ, 99 रुपये में ‘एक महीना नज्मों का’ इ-बुक संस्करण जरूर उपलब्ध है. जो न्यूजहंट के प्लेटफोर्म पर बिक्री के लिए उपलब्ध है. एक बड़े लोकप्रिय गीतकार ब्रांड की यह किताब ऑनलाइन बिक्री के लिए किसी तटस्थ प्लेटफोर्म पर मौजूद भी नहीं है या अगर हो भी तो मुझ जैसे पाठकों को उसके बारे में पता नहीं है. एक मामूली पाठक के तौर पर मैं इन दोनों प्रयासों का स्वागत करता हूँ यकीन यह भी कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि 395 रुपये में गुलाब थोड़े महंगे जरूर हैं. लगता है प्रकाशक को किताब से अधिक इरशाद कामिल के ब्रांड पर भरोसा है.
बहरहाल, या जरूर है कि ये दोनों ही आयोजन सेलेब्रिटी को केंद्र में रखकर किये गए हैं लेकिन फिर भी मैं इनको सकारात्मक इसलिए मानता हूँ कि कम से कम इसी बहाने किताबों को, लेखकों को हिंदी प्रकाशक ब्रांड के रूप में तो देख रहा है, उनके प्रचार प्रसार पर ध्यान तो दे रहा है, हिंदी विभागों के आचार्यों की गिरफ्त से बाहर तो ला रहा है. आने वाले समय में इसका फायदा हिंदी के आम लेखकों को भी होगा. जिनकी किताब पाठकोन्मुख होगी उसके लिए प्रकाशक प्रचार-प्रसार, बिक्री के नए माध्यमों की तरफ जाएगी. क्योंकि हिंदी में अधिक सेलिब्रिटी हैं नहीं. मैं अपनी तरफ से राजकमल और वाणी प्रकाशन को इसके लिए बधाई देता हूँ कि उन्होंने पुस्तकालयों के सुरक्षित गोदामों से किताबों को बाहर लाकर पाठकों तक पहुंचाने की दिशा में कदम तो बढ़ाया.
फिलहाल, एक मामूली लेखक होने के नाते मैं इस ब्रांड वार का मजा ले रहा हूँ. जानता हूँ हिंदी के भविष्य के लिए, किताबों के भविष्य के लिए इन प्रयासों में सकारात्मक सन्देश छिपे हैं. हिंदी नए हलकों, नए इदारों तक पहुंचे इस पुस्तक मेले से यह उम्मीद बढ़ गई है.
-प्रभात रंजन
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