मैंने अरबी भाषा के कुछ कवियों की कविताओं के अनुवाद किये हैं जो आज दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुए हैं. जिन्होंने न पढ़ा हो उनके लिए- प्रभात रंजन
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सीरियाई कवि अडोनिस की कविताएं
गीतों का मुखौटा
अपने ही इतिहास के नाम पर
कीचड़ में धंसी धरती पर,
जब भूख उस पर उसपर हावी हो जाती है
वह अपना कपाल खाने लगता है.
वह मर जाता है.
मौसम को कभी पता नहीं चलता कैसे.
वह गीतों के अनंत मुखौटों के पीछे मर जाता है.
वह अकेली संतति है,
वह रहता है अकेला जीवन में आकंठ डूबा
शहर में हिमायतियों के
I.
अपने बाँहें पसारो
ओ हिमायतियों के शहर.
स्वागत करो उसका काँटों से
या पत्थरों से
बाँध दो उसके हाथ उसके सिर के ऊपर,
खींच लो उनको कब्र के तोरण तक,
गोदना गोद दो उसके सिर पर
छवियों की, दाग दो उसे जलते कोयले से
और लपटों को लील जाने दो उस महान कवि को
II.
जैतून के पेड़ से अधिक, अधिक एक नदी से, अधिक
आती जाती
मंद हवा से,
किसी द्वीप से अधिक,
किसी जंगल से अधिक
बादल से
जो गुजर जाता है उसके राहत भरे पथ के ऊपर से:
सबसे बढ़कर
अपने एकांत में
उनका पढना अपनी किताब का.
नया विधान
वह यह भाषा नहीं बोलता है,
वह बर्बाद लोगों की भाषा नहीं जानता है-
एक भविष्यवक्ता अपनी गहरी नींद में,
वह दबा हुआ है सुदूरवर्ती भाषाओं से.
अब वह आता है अपने भग्नावशेषों से,
नए शब्दों के वातावरण में,
अपनी कवितायेँ देता दुखी हवाओं को
चमकहीन लेकिन पीतल जैसी जादुई
वह एक भाषा है दो मस्तूलों के बीच चमकता,
योद्धा अजनबी शब्दों का
मैं एक सीरियाई हूँ
कवि- युसूफ अबू याहया
विस्थापित, अंदर और बाहर अपनी मातृभूमि के, और
चाकू की धार पर सूजे पैरों से मैं चलता हूँ.
मैं एक सीरियाई हूँ: शिया, द्रुज़, कुर्द,
इसाई,
और मैं अलवी, सुन्नी और सिरकासी.
सीरिया मेरी धरती है.
सीरिया मेरी पहचान है.
मेरा पंथ मेरे वतन की खुशबू है,
बारिश के बाद जैसे मिटटी की खुशबू
और मेरा सीरिया मेरा एकमात्र धर्म है.
मैं इस धरती का बेटा, जैसे जैतून,
सेब, अनार, चिकरी, झरबेर, पुदीना, अंजीर…
तो तुम्हारे काँटों का क्या उपयोग है,
तुम्हारी अरबियत का,
आपकी कविताओं का,
और तुम्हारे शोक गीतों का?
क्या तुम्हारे शब्द मेरे घर को वापस ला पाएंगे
और उनको जो मारे गए
दुर्घटनावश?
क्या वे इस मिटटी से आंसुओं को मिटा पाएंगे?
मैं उस हरे स्वर्ग का बेटा हूँ,
मेरा वतन,
लेकिन आज, मैं भूख और प्यास से मर रहा हूँ.
लेबनान और अम्मान के बंजर तम्बू मेरा ठिकाना हैं,
लेकिन मेरे वतन के सिवा कोई धरती नहीं
मेरा पालन-पोषण करेगी अपने अनाज से,
सारी दुनिया के बादल
नहीं बुझा सकते मेरी प्यास को.
इराक़
अदनान अल साएग
इराक़ जो दूर जा रहा है
उसकी जलावतनी के हर कदम के साथ…
इराक़ जो काँपता है
जब भी कोई साया गुजरता है.
मैं देखता हूँ बन्दूक की नली अपने सामने,
या एक गहरी खाई.
इराक़ जिसकी कमी हमने खलती है:
आधा इसका इतिहास, गीत और इतर
और आधी इसकी निरंकुशता.
एक बेकाम देश
आदिल अब्दुल्ला
यहाँ हर कोई बेकाम है:
कामगार कारखानों में और अधिकारी
दफ्तरों में,
सभी बिना काम के हैं!
वे जो अहले सुबह खेत में जाते
और दोपहर में लौटते हैं थकान से चूर
वे भी बेकाम हैं.
विद्यार्थी और शिक्षक,
जिन्हें सरकार अच्छा ख़ासा वेतन देती है
ताकि बेकामी के उस्ताद बनें, वे भी बिना काम के हैं.
सेना और पुलिस,
बच्चे और बड़े,
घर में औरतें,
इमाम मस्जिद में- ये सब के सब
बेकाम हैं!
जब तक अजनबी
अँधेरा फैला रहे हैं हमारी धरती पर,
इसके बच्चों के पास कोई काम नहीं सिवाय एक के-
राख में सूरज की रौशनी ढूंढने का काम
हमारे बुझे हुए सूरज की.
सारे अनुवाद: प्रभात रंजन
anuvad padhna achha laga..yese padhate rahiye..
सुबह ही पढ़ा। बहुत अच्छा लगा अनुवाद। बधाई आपको।
GOOD
बहुत सुंदर अनुवाद … भाव जीवंत रखने में आप सफल रहे हैं … बधाई ….
KAVYASUDHA ( काव्य सुधा )
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