Home / ब्लॉग / सेल्फी के जमाने में ‘बॉलीवुड सेल्फी’

सेल्फी के जमाने में ‘बॉलीवुड सेल्फी’

जब से फिल्म समीक्षक पी.आर. एजेंसी के एजेंट्स की तरह फिल्मों की समीक्षा कम उनका प्रचार अधिक करने लगे हैं तब से सिनेमा के शैदाइयों के फिल्म विषयक लेखन की विश्वसनीयता बढ़ी है. मुझे दिलीप कुमार पर लार्ड मेघनाथ देसाई की किताब अधिक विश्वसनीय लगती है या राजेश खन्ना की मौत के आसपास इन्डियन एक्सप्रेस में लिखा काका पर उनका लेख.

बहरहाल, अनंत विजय की किताब ‘बॉलीवुड सेल्फी’पढ़ते हुए इस बात की मेरी समझ और पुख्ता हुई कि हिंदी के फिल्म समीक्षकों से अच्छी किताब सिनेमा का शैदाई लिख सकता है. क्या कोई मुझे यह बता सकता है कि हाल के वर्षों में हिंदी के किस फिल्म समीक्षक ने सिनेमा पर एक मुकम्मिल किताब लिखी है? पहले के दौर में ब्रजेश्वर मदान, विनोद भारद्वाज जाने-माने फिल्म समीक्षक थे और वे किताब भी लिखते थे, जिनको पढ़कर हम सिनेमा के जादू से वाकिफ हुए थे. आज मुझे नहीं लगता कि हिंदी के फिल्म समीक्षकों में किताब लिखने का बूता है भी.

मैं बात ‘बॉलीवुड selfie’ की कर रहा था. किताब में नसीरुद्दीन शाह, वहीदा रहमान, एस. डी. बर्मन, साहिर लुधियानवी, नौशाद, मीना कुमारी, ओम पुरी, देव आनंद, पाकीजा, गुलजार, राजेश खन्ना, शौकत कैफ़ी के ऊपर लिखी गई टिप्पणियाँ हैं. जिनमें ज्यादातर टिप्पणियाँ इनके ऊपर लिखी गई किताबों के हवाले से की गई है. अनंत विजय मूलतः टिप्पणीकार हैं. हाल के बरसों में जिन्होंने अंग्रेजी की किताबों पर, अलग विषयों की किताबों पर हिंदी में गंभीर लेखन करके एक तरह से हिंदी का भौगोलिक विस्तार करने का काम किया है. वे बनी बनाई परिपाटी के लेखक नहीं हैं बल्कि उन्होंने एक नई लीक बनाई है- इसमें शायद किसी को संदेह नहीं हो सकता.

किताबों के बहाने लिखते हुए भी अनंत विजय की कोशिश यह रही है कि बात सिर्फ किताब पर न हो बल्कि उसके बहाने किरदार उभर कर आये. जैसे अक्षय मनवानी की साहिर पर लिखी गई किताब पर लिखते हुए उन्होंने साहिर की शायरी के विद्रोही पहलू को अच्छा पकड़ा है. प्रसंगवश, गुलजार पर लिखते हुए भी लेखक ने साहिर की मौत का किस्सा लिखा है कि किस तरह अपने बीमार दोस्त डॉ. कपूर के लिए ताश की बाजी लगाते हुए साहिर को अचानक दिल का दौरा पड़ा था और फ़िल्मी गीतों का यह बादशाह दुनिया से कूच कर गया था. उनकी इस बात से सहमत हुआ जा सकता है कि जिस तरह नौशाद ने फ़िल्मी संगीत को ऊँचा मुकाम दिया उसी तरह से साहिर ने फ़िल्मी गीतों शिखर पर पहुंचा दिया.

सचिन देव बर्मन पर सत्य शरण की किताब पर लिखते हुए अनन्त जी की इस टिप्पणी से सहमत हुआ जा सकता है कि इस किताब में एस. डी. बर्मन पर आज तक जो कुछ भी लिखा गया है उसको जोड़कर उनकी जीवनी का रूप देने का प्रयास किया गया है. बहरहाल, इस किताब से उन्होंने उस प्रसंग को हम पाठकों के लिए उठाया है जो एस. डी. बर्मन और लता मंगेशकर के बीच हूँ मनमुटाव और फिर हुई दोस्ती को लेकर है. इस तरह के प्रसंगों से यह किताब भरी हुई है और जिसकी वजह से एक अलग तरह की रोचकता इस किताब में आई है, उन किरदारों को गहराई से महज कुछ शब्दों में समझाने का हुनर उभरकर आया है.

किताब में सिर्फ एक लेख है जो किसी किरदार पर नहीं बल्कि एक फिल्म पर है- पाकीजा पर, इसलिए क्योंकि वह फिल्म भी अपने आप में मिथ बन चुकी है. यह लेख भी लार्ड मेघनाथ देसाई की पाकीजा पर लिखी किताब के हवाले से लिखा गया है. इस लेख के अंत में अनंत विजय की यह टिप्पणी मानीखेज है कि पहले के जमाने में हिंदी में फिल्म की कहानियों की सचित्र किताबें आती थी. आज अंग्रेजी ने उस तरह की किताबें छाप छाप कर मार्केटिंग के नए मानक गढ़े हैं जबकि हिंदी इस मामले में पिछड़ता जा रह है.

जिनको यह शिकायत है कि हिंदी में नए प्रयोग नहीं हो रहे हैं तो उनको अनंत विजय की किताब ‘बॉलीवुड selfie’ पढनी चाहिए. किताब का नाम जितना आकर्षक है अंदर की सामग्री उतनी ही रोचक. एक बार उठाएंगे तो ख़त्म करके ही मानेंगे. सिवाय विनोद अनुपम की भूमिका के. एक सुन्दर किताब में वह पैबंद की तरह लगी.

पुस्तक वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है  

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *