हिन्द युग्म प्रकाशन ने हिंदी का अपमार्केट पाठक वर्ग बनाने में बहुत सकारात्मक भूमिका निभाई है. कई प्रतिभाशाली लेखकों की किताबें प्रकाशित की. आशीष चौधरी भी उनमें एक हैं. पेश है उनकी किताब कुल्फी एंड कैपुचिनो का एक अंश- मॉडरेटर
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‘डु यू लाइक पिंक कलर?’, कोमल ने पिंक कलर का टॉप देखते हुए कहा। हम जयपुर के गौरव टावर की एक शॉप में थे।
‘पिंक तो सबको अच्छा लगता है’, मैंने कहा। मेरे ख्याल से मैं इससे चलताऊ जवाब नहीं दे सकता था। मेरा ध्यान मेरी क्लास में लगा था। आज की सारी क्लासेज मैंने बंक की थी।
‘इसका मतलब यह तुम्हें पसंद नहीं!’, दूसरा टॉप उठाते हुए कोमल बोली।
‘मैंने ऐसा तो नहीं कहा।’
‘क्यों, एक बार तुम्हीं ने तो कहा था कि यू आर डिफरेंट!’, उसे मेरी बात याद थी।
‘अगर पूरी तरह से डिफरेंट हो गया तो लोग पागल कहेंगे। इसलिए कुछ चीजें अब भी मुझमें दूसरे सामान्य मानव–सी है’, मैंने कहा। वो मेरे जवाब पर मुस्कुरायी।
‘लगता है आजकल लॉजिकल रिजनिंग बहुत पढ़ रहे हो’, उसने कहा। मैंने अपनी भौंहों को ऊपर-नीचे किया जिसका मतलब था ‘हाँ’।
फिर हम उस दुकान के अलावा भी कई जगह घूमे। तीन घंटे की शॉपिंग के बाद उसने दो टॉप और एक जींस ख़रीदी।
‘आज तो तुम बोर हो गये ना!’, अंतिम दुकान से बाहर निकलते हुये कोमल ने कहा।
‘ऐसी तो कोई बात नहीं। तुम्हारे साथ मैं बोर कैसे हो सकता हूँ!’
‘रियली!’
‘हाँ।’
‘तुम कुछ अपने लिये लेना चाहोगे?’
‘नहीं, मुझे कपड़ों का कुछ खास शौक नहीं है। वैसे भी पूरा दिन कमरे में ही बीतता है, नये कपड़े होंगे तो उनको पहन कर बाहर जाने की इच्छा हेागी और वक्त बर्बाद होगा। नये कपड़े ना हो तो ही बेहतर है’, मैंने कहा।
‘यू आर रियली डिफरेंट’, उसने एक बार फिर कहा। मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। हम लोग मॉल से निकल कर पार्किंग की ओर बढ़ रहे थे।
‘अनुराग, तुम्हारी गर्लफ्रेंड है?’, कोमल ने पूछा। मुझे समझ नहीं आया कि अचानक उसे यह सवाल कैसे सूझा।
‘नो कोमल, अब तक तो ऐसा सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ’, मैंने मजाक में ही उतर दिया। मेरा जवाब खत्म भी नहीं हुआ था कि उसने दूसरा सवाल पूछा।
‘आर यू वर्जिन?’, उसका सवाल सुनकर मैं चौंका। यह सवाल तो बेहद ही निजी था। मैंने कभी ऐसी बातें किसी लड़के से भी नहीं की थी और कोमल तो लड़की थी। ए गर्ल विद वाइट ब्यूटीफुल स्कीन। मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया।
‘जवाब नहीं दिया तुमने!’
‘तुम ऐसे उल–जलूल सवाल क्यों पूछ रही हो?’, मैंने चिढ़ते हुए कहा।
‘ओह तुम्हें बुरा लगा, सॉरी! बट इसमें सिली जैसी तो कोई बात नहीं थी।’, कोमल ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा।
‘ओके! आर यू वर्जिन?’, मैंने पूछा।
‘यस आइ एम।’
‘रियली!’, मैंने आश्चर्य से पूछा।
‘वाट डु यू मीन बाय रियली?’
मैं कुछ नहीं बोला। पर वो बोली।
‘यू नो तुम्हारी परेशानी क्या है।’
‘तीन मुलाकातों में तुम्हे मेरी परेशानी का भी पता चल गया!’, मैंने व्यंग्य में कहा।
‘हाँ, सुनोगे?’
‘कहो।’
‘तुम ने एक मुखौटा ओढ़ रखा है। तुम जैसा अपने को दिखाते हो वैसे हो नहीं। सोचते कुछ हो और कहते कुछ। टेल मी, तुमने कभी कोई ब्लू फिल्म नहीं देखी?’, मैंने उसकी बात का जवाब नहीं दिया।
‘तुम भले ही जवाब मत दो। तुम्हारी उम्र का कोई लड़का ऐसा नहीं होगा जो ब्लू फिल्म ना देख चुका हो। पर अगर मैं तुमसे ब्लू फिल्म की बात भी कर लूँ तो तुम ऐसे बिहेव करोगे जैसे कि यह जाने किस चीज़ का नाम ले लिया। शायद किसी और ग्रह की होगी। वाय डु यू हैव डबल स्टेंडर्ड?’, कोमल बोले जा रही थी। हम चलते-चलते कार के पास आ गये थे।
‘…..जैसा कि तुम उस दिन सेंट्रल पार्क में कर रहे थे’, नेहा ने बात पूरी की। उसकी बातें सुन के मेरा दिमाग भौंचक्का रह गया। वो मुझ से ऐसी बात कैसे कर सकती है! यहाँ तक कि नेहा ने भी मुझ से कभी ऐसे बात नहीं की। नेहा जिसे मैं प्यार करता था।
मैंने कार का गेट खोला और उसमें चुपचाप बैठ गया। वो भी कुछ नहीं बोली। उसने कार स्टार्ट की।
मैं भले ही बोल कुछ नही रहा था पर मेरी सारी सोच कोमल की बातों पर ही केंद्रित थी। वो सही तो कहती है। अगर उस दिन मैं सेट्रल पार्क में उस लड़के की जगह होता तो क्या मैं किस नहीं करता। हम डीवाइन पैलेस की छत पर खड़े होकर आखिर होटल की खिड़की में क्यों ताँक-झाँक करते हैं! यह तो नेचुरल है। अगर नेहा कहे कि वो मुझे किस करना चाहती है तो क्या मैं उसे मना करूँगा! नहीं। बीकॉज़ आइ लव हर। कोमल इज एब्सॉल्युटली राइट।
‘आइ थिंक कोमल यू आर राइट’, मैंने कोमल की ओर देखते हुए कहा। उसका ध्यान गाड़ी चलाने में ही था तो शायद उसने नहीं सुना।
‘हूँ…….कुछ कहा?’, उसने बिना मेरी ओर देखे कहा।
‘आइ सेड….आइ थिंक यू आर राइट।’
‘ओह थैंक्स!’
‘तुम्हारा ब्वॉयफ्रेंड है?’
‘था।’
‘मतलब?’
‘मतलब था, अब नहीं है।’
‘क्या हुआ?’
‘हमेशा के लिए तो हीरा होता है। डी बीयर्स। बाकी सब छोड़ जाते हैं।‘
‘वापस आ गया तो?’
उसने मेरे इस सवाल पर घूरा। मानों मैंने किसी नाज़ुक तार पर हाथ रख दिया हो और वो झन्ना उठा हो।
‘तब देखा जाएगा…..’
‘एक बात और पूछूँ?‘
‘पूछो।‘
‘वो कुछ कुछ होता है का डायलॉग है ना…हम एक बार जीते हैं…एक बार मरते हैं और प्यार भी एक ही बार करते हैं। मानती हो?’
‘ये कैसा सवाल है?’
‘जवाब दो।‘
‘नहीं….प्यार कई बार हो सकता है। पर पहला प्यार भूलता नहीं है।‘
फिर मैं चुप हो गया। समझ नहीं आ रहा था कि हम दोनों ऐसी बातें क्यों कर रहे थे। शायद एक-दूसरे को जानने के लिए…पर क्यों? पता नहीं।
‘मैं एक बात पूछूँ?’, कोमल ने चुप्पी तोड़ी।
‘पूछो?’
‘तुम्हें पता है मेरे घरवाले हमें एक साथ बाहर घूमने क्यों जाने देते हैं?’
‘क्योंकि तुम्हारे पापा और मेरे पापा दोस्त हैं?’
‘और….’
‘और क्या….’
‘कुछ नहीं।’
‘नहीं…बताओ।’
‘ऐसे ही पूछ लिया…चलो घर आ गया।’
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किताब का नाम – कुल्फी एंड कैपुचिनो (पेपरबैक)
लेखक – आशीष चौधरी
पृष्ठ – 288
मूल्य – 150
इन दिनों इस किताब के दूसरे संस्करण की प्रीबुकिंग चल रही है। किताब सभी ऑनलाइन स्टोरों पर उपलब्ध है।