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कटुता के माहौल में कुछ प्रेम कविताएं

माहौल में कटुता बढ़ जाए तो मैं कविताएं पढता हूँ. अच्छी कविताएं पढने को मिल जाएँ दिल को बड़ा सुकून मिलता है. आज कुछ प्रेम कविताएं युवा कथाकार मनोज कुमार पाण्डे जो जानकी पुल की तरफ से जनरल साहब को समर्पित हैं- मॉडरेटर
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तेरी महक
तेरी महक जो उड़ती है मेरे चारों ओर
उसमें भला कितनी ऑक्सीजन है
वो वोदका जो मैंने तुम्हारे साथ में पी है
उसका रंग मेरे आँसुओं से मिलता है
मैं कहीं भी चलता हूँ पहुँचता हूँ हर हाल में तुम तक
तुम जो हर कदम के साथ जाती हो मुझसे और दूर
प्यार में रुलाई
प्यार में जब रुलाई आती है तो यूँ ही अचानक नहीं आती
उसके पहले संकेतों की एक लंबी शृंखला होती है
रुलाई के पहले एक आदिम डर आता है
रुलाई के पहले एक आशंका आती है
प्रिय की अच्छी बुरी स्मृतियों से जुड़ती हुई
रुलाई से पहले दिखाई पड़ता है अपना एकाकी तन
और दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ता
रुलाई के पहले याद आते हैं अच्छे बुरे संयोग
रुलाई के पहले याद आते हैं अच्छे बुरे लोग
जिन्होंने प्यार की राह में काँटे बिछाए या फूल
रुलाई के पहले आँखों में भर जाती है धूल
या फिर हो सकता है ऐसे भी कि
तन को छुए सूरज की कोई गर्म किरन
और रुलाई आ जाय
तन को भिगोए बारिश की रिमझिम फुहार
और रुलाई आ जाय
रुलाई आने के पहले कानों में नहीं बजता करुण संगीत
रुलाई आने के पहले जगह बेजगह भी नहीं देखती
रुलाई तब भी आ सकती है जब ट्रेन में बैठा हो कोई
ट्रेन भागी चली जा रही हो धड़धड़धड़
दिख रहे हों खेत मैदान पेड़ चिड़िया और तालाब
उन सब के बीच दिख रहे हों लोग
और अचानक से बगल की पटरी पर गुजरे
धड़धड़ाती हुई कोई रेल
गुम हो जायँ पल भर के लिए सारे दृश्य
और रुलाई आ जाय
लगी हो एक अबूझ अछोर प्यास
दरिया मना कर दे देने से अपना पानी
एक खारा समंदर उग आए हलक में
बहे आँखों से होकर के
आटो में बैठकर चले जा रहे हो सिर झुकाए
बगल से सट कर गुजरे एक नया नया प्रेमी जोड़ा
बेशक वे सीख ही रहे हों प्रेम करना
उन्हें देखे आँख और आँखों से बह निकले पानी
प्यार में जब रुलाई आनी होती है तो आ ही जाती है
और रुलाई के इतने कारण एक साथ होते हैं
कि कोई एक कारण नहीं होता
प्यार में रुलाई को आना होता है
तो आ ही जाती है रुलाई
तुम्हारी बेरुखी झेलते हुए
थक गया हूँ मैं
तुम्हारी बेरुखी झेलते हुए
दिन का मतलब दिन नहीं होता
रात का मतलब रात नहीं होती
तुम्हारी बेरुखी मेरी साँस में चुभकर
सारी चीजों के मानी बदल देती है
मैं चीजों और उनके बहुत सारे अर्थों के बीच
हवा द्वारा दुरदुराए पत्ते की तरह दर दर बिखरता हूँ
देर तक मुस्कराता हुआ चुप रहा
मैं बैठा किसी से बात कर रहा था
उन्हें हर बात दोहरानी पड़ रही थी
फिर भी नहीं मिल रहा था सही जवाब
थोड़ी देर में पूछ ही लिया क्या हुआ मित्र
कुछ परेशान से हो कहीं खोए हो क्या बात है
मैं उस समय तुममें खोया था और जल रहा था
मैं चिल्ला चिल्ला कर रोने को था जब पानी आया
भीतर ही भीतर दाब रहा था रुलाई
दो पीस बर्फियों चाय और नमकीन ने मेरी मदद की
मेरी आँखों में दुनिया भर के दुश्मन दृश्य तैर रहे थे
जब मैं कर रहा था कविता कहानी पर बात
यही दुनिया है और यही इस दुनिया का जीवन
रोता हूँ तो उन आँसुओं से तार जोड़ता है कोई और
कितने वाकए हैं मेरे जीवन के जो जुड़ते हैं तुमसे
उन्हें कई बार मैं ही जोड़ देता हूँ किसी और के साथ
बाहर निकला हवा थी जिसमें तेरी महक थी भरी
मैं सिहर कर कँपकँपाया तो साथ चल रहे दोस्त ने थामा
क्या हुआ पूछा मैंने कहा हवा सुंदर बह रही है
और उसमें हिल रहे हैं अमलतास के फूल
मेरे भीतर भी कुछ हिल सा गया था
मेरे दोस्त ने अजीब नजरों से देखा मुझे और मुस्कराया
मैंने भी उसकी नकल की और देर तक मुस्कराता हुआ चुप रहा
वियोग
तुम आई हो मेरे पास वियोग की तरह
जैसे मौत आती है सतरंगे परिधान में
और देर सबेर पहचान ली जाती है
तुम मेरे पास वैसे ही हो जैसे ऑक्सीजन
जब तक मर नहीं जाता तब तक लूँगा साँस
अपनी बातों को कितना भीतर ले जाऊँ
अपनी बातों को कितना भीतर ले जाऊँ
किस महासागर की किस तलहटी में रख आऊँ अपने अरमान
किस पहाड़ की चोटी पर रख आऊँ कि रखते ही पड़ जाए बरफ
दब जाएँ हजारों साल के लिए सारे अरमान, इच्छाएँ प्यार और वासनाएँ
किसी फल में छुपाकर रख दूँ और खिला दूँ किसी चिड़िया को
मिट्टी में मिलाकर बना डालूँ उसकी एक ईंट
कि किसी गुल्लक में छुपाऊँ और दे आऊँ अपने दुश्मन को
ले जा चट कर जा सबको एक साथ
नहीं बचा प्यार में तेरा कोई प्रतिद्वंद्वी
अपने इन अरमानों के सिवा आखिर मैं था ही क्या
तुझे देखना
एक पूरे दिन के बाद तुझे देखना
एक पूरे दिन के बाद अपने आपको देखना होता है
तेरे भीतर की चमक जिसका दीवाना हूँ मैं
तेरी आवाज जो मेरे ही गले से निकलती है जैसे
अक्सर मेरे ही खिलाफ जाती हुई
तुझे देखता हूँ और देखकर गुम रहता हूँ
नहीं देखता हूँ तो बिना देखे गुम रहता हूँ
छुपाना एक असंभव क्रिया है प्यार में
(कहती हो कि अपना प्यार छुपाकर रखो
बंद कर दो उसे अपने भीतर की सबसे अँधेरी कोठरी में
भनक तक न लगे दुनिया और जमाने को
और तेरे रकीब को तो जरा भी नहीं)
मैं अपनी आँखों को फोड़ लूँ कि न दिखे तेरा चेहरा
मैं अपनी चमड़ी के रंग का क्या करूँ
जिसके भीतर से झलकता है तेरा ही रंग
बोलता हूँ तो शब्द निकलते हैं तेरे लिए
सोचता हूँ तो होती है तू ही मेरे माथे पर
चलता हूँ तो तेरी तरफ चलता हूँ
मेरे बदन पर हैं तेरे अनंत निशान
इतनी चीजें कहाँ छुपाऊँ मेरी जान
छुपाना कुछ भी मुमकिन नहीं है मेरे लिए
मर भी नहीं सकता कि जलूँगा मैं तो जलेगी तू भी
हवा में बिखर जाएगी तेरी महक मेरी महकजान
छुपाना एक असंभव क्रिया है प्यार में
जब मैं छुपाने का अभिनय कर रहा होता हूँ
सब मुझे ही देख रहे होते हैं
सब को पता है कि यह अभिनय ही है
और इसे प्यार छुपाने वाले की भूमिका मिली है
जब तक है मंच पर प्रकाश और प्रेक्षागृह में दर्शक
यह अपना प्यार छुपाएगा
(यह अपनी भूमिका में डूब गया है इतना
किसी और भूमिका के काबिल ही नहीं बचा
दर्शक नहीं होंगे तब भी छुपाएगा अपना प्यार
ताली कौन बजाएगा)
एक नया फूल ढूँढ़ता हूँ रोज
एक नया फूल ढूँढ़ता हूँ रोज
कि देख सकूँ हर दिन
एक नए फूल की तरह खिला तुम्हारा चेहरा
एक नई बात खोजता हूँ रोज
कि वह तुम्हें नई लगे
साथ में मेरा भी जादू रहे बरकरार
तुम्हारी रुचियों के बारे में तुमसे ज्यादा सोचता हूँ मैं
क्या पढ़ रही हो तुम इन दिनों
चाहता हूँ तुमसे पहले उसे पढ़ डालूँ
यही बहाना सही
पर तुमसे बातें कर पाऊँ खूब खूब
तुम्हारी पसंद के रंग के पहनता हूँ कपड़े
कि देखो तुम मुझे उन रंगों के बहाने ही
मोबाइल में है तुम्हारी पसंद की रिंगटोन
तुम्हारी पसंद के गीत गुनगुनाता हूँ
क्या करूँ तब भी नहीं बचा पा रहा अपना प्यार
मुझे याद नहीं कि तुमसे पहले
कौन से गीत गुनगुनाता था मैं
मेरा पसंदीदा रंग कौन सा है
कौन सी किताबें हैं जो अपने लिए चुनी थी मैंने
कि कौन सा है मेरा पसंदीदा फूल
जिसकी जगह किसी जरबेरा ने ली आकर
हर पल गुम हो रहा हूँ तुममें
और तुम्हें खोता जा रहा हूँ
सुन मेरे दुश्मन
तुम्हारे साथ के लिए मैं हमेशा
अपने रकीब की गुलामी में रहता हूँ
मैं तुमसे कुछ कहूँ और तुम दुश्मन की तरफ देखो
इससे अच्छा तो यही है
कि किसी दिन सीधे ही उससे पूछ डालूँ
सुन मेरे दुश्मन
तेरी जान के साथ दो पल बिता सकता हूँ क्या

 
      

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10 comments

  1. बड़े दिनों बाद प्रेम में पगी इतनी प्यारी कवितायेँ पढ़ने को मिलीं। "जब मन उदास होता है
    और नकार रहा होता है
    कहीं रम जाने की गुज़ारिश को
    तब मन को और उसके जैसा हो जाने के लिए
    मैं पढ़ती हूँ प्रेम कवितायेँ
    डायरेक्ट दिल से निकलती हुई
    आत्मिक कंफेशन्स :)"
    मनोज जी की कवितायेँ पढ़ने के बाद, मेरे मन में भी उपजी ये छोटी-सी अकविता :D)
    मनोज जी आपको बहुत बधाई…सभी कवितायेँ निराली हैं किन्तु "एक नया फूल ढूंढता हूँ रोज़" अतिप्रिय लगी। यूँही रचते रहिये।

  2. सरिता जी, राजू जी, गिरिजा जी, कबीर जी, सुमित जी और आनंद जी आप सब के प्रति प्रेम और आभार। आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए बेहद कीमती और सँजोकर रखने लायक हैं।

  3. बहुत सुंदर कविताएं।

  4. वो वोदका जो मैंने तुम्हारे साथ में पी है
    उसका रंग मेरे आँसुओं से मिलता है…………………thank u for these lines…gud manoj ji

  5. sunder abhivyktiyan.

  6. सुन्दर कविताएं ..

  7. रोबर्ट फ्रॉस्ट : जब ज़ज्बो को खयाल और खयालों को लब्ज़ मिलते है तब कविता बनती है
    या
    मनोज कुमार पाण्डेय की कविताएँ पढ़ लो…

  8. मनोज पांडेय की प्रेम कवितायेँ सहजता और सादगी में चौंकाने वाली हैं. आजकल साहित्य ऐसी सुन्दर और भावुकतापूर्ण प्रेम कवितायें कम नजर आती हैं. रुलाई, बेबसी और अधूरे अरमानों के साथ- साथ प्रेम में जिये गए पलों का रूमानी चित्रण कविताओं को प्रभावी बनाता है.

  9. This comment has been removed by the author.

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