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यह अवसर वाद-वाद खेलने का नहीं है मिलकर प्रतिवाद करने का है!

कन्नड़ लेखक कलबुर्गी की नृशंस हत्या ने एक ऐसा अवसर पैदा किया है कि हिंदी लेखक वाद-वाद खेलने में जुट गए हैं. हालाँकि इस घटना का प्रतिरोध हिंदी लेखकों में जिस कदर दिखाई दे रहा है उससे यह आश्वस्ति होती है कि हिंदी की प्रतिरोध क्षमता अभी कम नहीं हुई है, बल्कि सांप्रदायिक शक्तियों के मुकाबले में वह दम-ख़म से खड़ी है. लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस मसले में हम एक नहीं हैं, एकजुट नहीं हैं.

हिंदी के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक ने डॉ. कलबुर्गी की हत्या के विरोध में साहित्य अकादेमी पुरस्कार वापस लेने की घोषणा की और हम हिंदी वाले उसके स्वागत में आगे आने के बजाय उनके माथे का सिन्दूर पोछने में लग गए, उसकी सफ़ेद कमीज को मैली करने में जुट गए. सोशल मीडिया पर पहले विष्णु खरे की प्रतिक्रिया आई, आज अपने गुरु सुधीश पचौरी को ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में ‘तिरछी नजर’ नामक स्तम्भ में पढ़ा, जिसमें उन्होंने उदय प्रकाश को पलटदास कहा है. यह देख-पढ़कर दुःख होता है कि जो लोग खुद को हर सत्ता के अनुकूल बनाने के खेल में माहिर बने रहते हैं वे एक सत्ताहीन लेखक पर कीचड़ उछाल रहे हैं. उदय प्रकाश ने पहले क्या किया आज क्या किया सवाल इसका नहीं है. यहाँ यह बात मायने रखती है कि एक कन्नड़ लेखक की हत्या के विरोध में एक हिंदी लेखक ने आगे बढ़कर उस साहित्य अकादेमी पुरस्कार को ठुकराने का काम किया है जो सरकारी पैसे से दिया जाता है, जो भारत में लेखकों की सबसे बड़ी सरकारी संस्था द्वारा दिया जाता है. दुर्भाग्य से वह संस्था ऐसी बन गई है जो अपने पुरस्कार प्राप्त एक लेखक की नृशंस हत्या के बावजूद उसकी स्मृति में शोक सभा का आयोजन भी नहीं करती है.

उदय प्रकाश के इस कदम ने उनका कद आज के इस बौने युग में बहुत बड़ा बना दिया है. क्या इस सचाई से इनकार किया जा सकता है? हम चाहे कितने ही ढेले फेंक लें उदय जी ढेलमरवा गोसाईं की तरह हमारे बीच ऊंचाई पर बने रहेंगे. उदय जी के इस कदम ने यह दिखाया है कि लेखक की सामाजिक भूमिका क्या होनी चाहिए? यह समय उनके ऊपर ढेले फेंकने का नहीं बल्कि उनसे प्रेरणा लेने का है. मुझे गोविन्द निहलानी की फिल्म ‘पार्टी’ का वह किरदार अमृत पटेल याद आ रहा है जो जन के बीच अकेला संघर्ष करता रहता है और जन-जन करने वाले लेखक सत्ता का सुख भोग रहे होते हैं. उदय जी ने हमारी सोई हुई अंतरात्मा को झकझोर कर जगा दिया है. यह दिखा दिया है कि संघर्ष की राह त्याग से निकलती है. सत्ता हंसोतने-बटोरने वाले लेखक इस बात को क्या समझ पाएंगे?

कल उदय प्रकाश के इस कदम के पक्ष विपक्ष में कई तरह की टिप्पणियाँ आई. सबसे मानीखेज टिप्पणी मुझे लगी अपने समकालीन कवि भाई पंकज चतुर्वेदी की- ‘एक अच्छे इरादे से उठाये गये उदय प्रकाश के क़दम—साहित्य अकादेमी पुरस्कार को लौटाने के फ़ैसले—की भी जिस तरह कुछ लोग दुर्व्याख्या कर रहे हैं, उससे क्या यह साबित नहीं होता कि विद्वेष और हत्या की साम्प्रदायिक सत्ता-संस्कृति से लड़ने की योग्यता हम काफ़ी हद तक गँवा चुके हैं?

साथियों यह अवसर वाद-वाद खेलने का नहीं है मिलकर प्रतिवाद करने का है! उदय प्रकाश ने वही राह दिखाई है! 
प्रभात रंजन 
 
      

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11 comments

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  2. धन्यवाद

  3. Marne ke baad aadmi kuchh nhi sochta
    Marne ke baad aadmi kuchh nhi Bolta
    Kuchh nhi sochne aur kuchh nhi Bolne se
    Aadmi Mar jaata hai.
    – Uday Prakaash
    Salaam!! Jankipul par mujhe garv hai.

  4. सच कह रहे हो मित्र हम अपने कन्धों पर अपनी ही तो लाश ढो रहे हैं बेहद अच्छी और सच्ची कविता शुभकामनाएँ

  5. बिल्कुल सच कहा है आपने आज जब कि कलम भी लगभग बिक ही चुकी है तब कुछ चन्द लोग ही तो हैं जो सच के लिए आवाज बुलन्द करते हैं अन्याय के खिलाफ और निष्पक्षता के साथ लिख रहे हैं एसे में ये ब्लागर जगत पर सक्रिय लेखकों की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो एसी किसी भी घटना का विरोध करें और विरोध करने वालों का साथ देकर उनका हौसला बढाएँ वरना नवाज देवबंदी साहब ने सच ही कहा है

    जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है
    आग के पीछे तेज हवा है आगे मुकद्दर आपका है
    उसके कत्ल पर मैं भी चुप था… मेरा नम्बर अब आया
    मेरे कत्ल पर आप भी चुप हैं अगला नम्बर आपका है

  6. सराहनीय कदम.

  7. उदय जी हम सबके बहुत प्यारे लेखक हैं। वे रचनात्मक रूप से हमारी प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। उनका यह कदम सराहनीय है। हमें पूरी ताकत से उनके साथ खड़ा होना चाहिए। बाकी वे नीली आभाओं वाले तमाम कुंठित लेखक जो उनका मजाक बना रहे हैं वे उदय प्रकाश के रचनात्मक अवदान के सामने कहीं टिकते हैं क्या ? या उनका कोई काम इस लायक है क्या कि हम उन पर टीका टिप्पणी में अपना वक्त जाया करें।

  8. Uday Prakash Ke Sraahneey Kadam Par Jitnee Taareef Ki Jaaye utnee Kam Hai . Aapke Lekh Par Tippani Par kam hee Sahityakaaron ki Tippaniyan Aayengee . Lagbhag Sabhee khemebaazi Ke Shikaar Hain .

  9. आपका यह हस्तक्षेप इस वक़्त बहुत ज़रूरी, मूल्यवान् और अविस्मरणीय है. साहस के साथ आपने सच को शब्द दिये हैं. आज यह भी आसान काम नहीं रहा. वजह के तौर पर आपने इस विडम्बना की शिनाख्त कर ही ली है—''यह देख-पढ़कर दुःख होता है कि जो लोग खुद को हर सत्ता के अनुकूल बनाने के खेल में माहिर बने रहते हैं वे एक सत्ताहीन लेखक पर कीचड़ उछाल रहे हैं.'' आपका यह बयान भी हमेशा ग़ौरतलब रहेगा—''उदय प्रकाश के इस कदम ने उनका कद आज के इस बौने युग में बहुत बड़ा बना दिया है.'' और यह कि ''उदय जी ने हमारी सोई हुई अंतरात्मा को झकझोरकर जगा दिया है. यह दिखा दिया है कि संघर्ष की राह त्याग से निकलती है.''

  10. :कवि कलबुर्गी के लिये:-
    कवि!
    शवयात्रा में शामिल
    देख रहे हो इस भीड को ॽ
    तुम्हारे पीछे-पीछे आ रहे ये लोग
    केवल अनुगमन कर रहे हैं शव का
    विचारों का नहीं।
    दुःखी नहीं हैं
    उदास भी नहीं हैं वे
    खुश हैं वे तो
    क्योंकि
    दे दिया तुमने अपना जीवन
    उसको कहने के लिये
    जिसे कहना तो दूर
    सोचना भी है
    उनके लिये है अपराध।
    तुमने स्वयं अपनी कलम से
    तैयार किया अपना ताबूत।
    ये जो व्यक्ति हैं तुम्हारे पीछे
    वस्तुतः वे ही हैं शव
    तुम शामिल हो
    उनकी शवयात्रा में।।

  11. हैं, प्रतिवाद, विरोध तो होना ही चाहिए। यह सत्य है कि हत्या उनके विचारों के चलते हुई। यह सिलसिला रुकना ही चाहिए।

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