आज भिखारी ठाकुर का जन्मदिन है. इस मौके पर उनकी कला, उनके सरकारों को याद करते हुए, अपने अनुभवों को बुनते हुए युवा लोकगायिका चन्दन तिवारी ने एक बहुत अच्छा लेख लिखा है. इससे उनके अपने सरोकारों का भी पता चलता है- मॉडरेटर
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चंदन तिवारी
जाना तीन को था. दो दिसंबर की रात ही अबकी पहुंच गयी. दूसरी बार गयी थी वहां. उस गांव का नाम पंजवार है. बिहार के सिवान जिले का एक गांव. तीन की सुबह के आयोजन को देखना था. सुबह जो दृश्य देखी, सहज विश्वास नहीं हुआ. कतार में सैकड़ों लड़कियां खड़ी हैं. सभी के हाथ में तख्ती. सभी तख्तियों में तरह–तरह के नारे. भाषा ना मिठाई ह, भोजपुरी हमनी के माई ह… भोजपुरीके लाज बचाईं, फूहर गीत कबो मत गाईं… किसी के हाथ में भिखारी ठाकुर की तसवीर तो किसी के हाथ में बिस्मिल्ला खान की तसवीर. अनुशासनबद्ध तरीके से सैकड़ों की भीड़ गांव की गलियों से गुजरते हुए देखी. फिर वे लड़कियां एक सभागार में पहुंच गयी. अस्थायी तौर पर निर्मित सभागार में. गांव की गलियों से गुजरते हुए बिस्मिल्ला खानसंगीत महाविद्यालय देखी. मालूम हुआ वर्षों पहले इस गांव में यह संगीत महाविद्यालय गांव वालों ने मिलकर खड़ा किया था. रैली खत्म हुई तो फिर सभागार में आयोजन शुरू हुआ. गांव की लड़कियां फर्राटेदार तरीके से भोजपुरी में गंभीर विषयों पर भाषण. फिर बिस्मिल्ला खान संगीत महाविद्यालय की लडकियों की प्रस्तुति. उसके बाद उस आयोजन में पहुंचे विद्वानों द्वारा गंभीर विषयों पर गंभीर बात.
और इतने के बाद शाम का नजारा अलग था. शाम को मैं भी प्रस्तुति देनेवाले कलाकारों में थी. मैं शाम का दृश्य देख अचंभित थी. पूरे पंडाल में महिलाओं की भारी संख्या. पता कि तो मालूम हुआ कि यह सिर्फ इसी गांव की महिलाएं नहीं है, दूर दराज के गांव से आयी हुई लड़कियां और महिलाएं हैं. देश के कोने–कोने में भोजपुरी आयोजन में भाग लेने गयी हूं. सब जगह एक ही बात खटकती रही है कि महिलाएं नहीं दिखती. पंजवार के आयोजन में महिलाएं दिखी. मैं न सिर्फ रोमांचित थी, न सिर्फ उत्साहित थी, आश्चर्यचकित भी थी. आयोजन के बाद कई महिलाओं से बात हुई. सबने बताया कि उन्हें घर से इस बात की इजाजत है कि वे पंजवार के भोजपुरी आयोजन में जा सकती हैं, क्योंकि वहां भोजपुरी ही होता है.
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