कल प्रभात खबर में मेरी एक छोटी-सी टिप्पणी आई थी. पढ़कर बताइयेगा- प्रभात रंजन
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आज ही एक अखबार के लिए साल भर की किताबों का लेखा-जोखा लिख रहे मित्र ने फोन पर पूछा कि इस साल कोई बढ़िया प्रेम-उपन्यास आया है? ‘हाँ, ओरहान पामुक का उपन्यास ‘ए स्ट्रेंजनेस इन माई माइंड’. प्रेम की मीठी-मीठी कसक वाला उपन्यास है’ मैंने तत्काल जवाब दिया. ‘नहीं, हिंदी में बताइए’, उसने बीच में ही काटते हुए कहा. ऐसा आखिरी उपन्यास कौन-सा पढ़ा था जिसकी प्रेम-कहानी चित्ताकर्षक लगी, पढ़ते ही मन कुहरीला हो गया. याद नहीं आया.
असल में, यह हिंदी का बड़ा संकट है. आज भी प्रेम-उपन्यास के नाम पर धर्मवीर भारती का ‘गुनाहों का देवता’, अज्ञेय के उपन्यास ‘नदी के द्वीप’, मनोहर श्याम जोशी के ‘कसप’ से आगे बढ़ते हुए सोचना बहुत पड़ता है. मृदुला गर्ग के उपन्यास ‘चित्तकोबरा’, सुरेन्द्र वर्मा के उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’ जैसे कुछ नाम इस सूची में जुड़ जाते हैं. लेकिन यह सूची बहुत बड़ी नहीं हो पाती. कभी-कभी यह सोचकर हँसी भी आती है कि अगर कोई अहिन्दीभाषी हिंदी के उपन्यासों के शोध के आधार पर इस निर्णय पर पहुँच सकता है कि हिंदी-पट्टी प्रेम से महरूम है. आज जबकि साहित्य, विमर्श, मीडिया, सोशल मीडिया में खुलेपन का दौर चल रहा है. ऐसा नहीं है कि प्रेम-उपन्यास का न होना, प्रेम से जुड़े साहित्य का न होना कोई बड़ी भारी कमी है. लेकिन कहा जाता है कि जिस भाषा के साहित्य में प्रेम से जुड़े साहित्य का अभाव होता है वह इस अर्थ में पूरी तरह से स्वस्थ नहीं होता है कि वहां स्त्री-पुरुष संबंधों में वह सहजता नहीं हो पाती है जो कि शहरी सह-जीवन के लिए अपेक्षित होती है.
साहित्य समाज का आईना होता हो या न होता हो लेकिन समाज में जो प्रवृत्तियां मुखर हों उनके बारे में इंगित करने वाला होना चाहिए. हिंदी समाज आज भी दबे-छिपेपन के भाव से मुक्त नहीं हो पाया है. आज भी विचार के गहरे आतंक से मुक्त नहीं हो पाया है. मुझे याद है कि बहुत पहले जब कॉलेज में पढता था तो एक सीनियर से बहस हुई थी. धर्मवीर भारती की कविताओं पर बहस करते हुए वे बोले- ‘धर्मवीर भारती ने कुछ बड़ा तो नहीं लिखा है न, बस प्रेम पर लिखा है. एक ज़माना था जब वैचारिक लेखन को बड़ा माना जाता था और प्रेम पर लिखना भावुकता. मुझे मनोहर श्याम जोशी की बात याद आती है कि रोज-रोज जीवन में भावुकता में जीने वाल लोग साहित्य में भावुकता का विरोध करते हैं.
वास्तव में, आज प्रेम के साहित्य की, विशेषकर उपन्यासों की बहुत जरूरत है हिंदी को. ऐसे समय में जब समाज में नफरत बढ़ रही है, असहिष्णुता पर चर्चा चल रही है प्रेम ही सबसे बड़ा प्रतिरोध लगने लगा है. लेकिन हिंदी आज भी प्रेम बिना सूना है. प्रेम के लिए एकांत की जरुरत होती है लेकिन हिंदी साहित्य का यह एकांत इतना गहरा है कि यह प्रेम के स्थान पर प्रेम-विरोध को ही बढ़ा रहा है. इस साल भी साल की महत्वपूर्ण किताबों की सूची प्रेम-उपन्यासों से सूनी ही रह जाएगी. वास्तव में, यह बड़ा संकट है जिसके ऊपर कभी गंभीरता से विचार नहीं किया गया.
Priy agraj Sach mein bahut km prem likha ja rha hai… Kavitaon mein bhi Jo hai jyadatar satahi hai. Idhar Iqbaal naam se Jai Shree Roy ji Ka upnyaas zaroor aaya tha… Aapne pdha hoga. Chhitput Jo likha ja rha hai bahut prabhavi nhi hai…
– Kamal Jeet Choudhary