हिंदी कहानियां बदल रही हैं. समकालीन जीवन की भागमभाग, उसकी जद्दोजहद सब कुछ बदल रही है. रिश्तों में भी वह ठहराव नहीं रह गया है. एक ऐसी कहानी है अणुशक्ति सिंह की, जिसमें किसी चीज का किसी तरह का लोड नहीं है. बदलते समाज की एक छोटी-सी कहानी-मॉडरेटर
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“ये तेरा बनना संवारना मुबारक, मुबारक तुझे…” सुबह-सुबह विभु के कमरे से आती हुई नुसरत साहब की मदभरी आवाज़ को सुन कर अंशु को तैयार करती हुई नीलू के हाथ बिलकुल थम से गए… क्या हुआ है, आज इस लड़के ने सुबह सुबह ये गाना क्यों लगा दिया है…
ऐसा नहीं है कि नीलू को ये गीत नहीं पसंद… एक वक़्त था जब इसे सुनते ही वो कहीं खो सी जाती थी…खुद में लजाती हुई, एक सपनीले संसार में चली जाती थी। आज उसी धुन को फिर से सुनकर वो फिर से खो गयी थी… अपने आज में नहीं, 5-6 साल पुराने उन खूबसूरत पलों में जब उसके और आरिफ के दिन-रैन साथ बीता करते थे। खिड़की एक्सटेंशन में R-13 के टॉप फ्लोर वाले उस फ्लैट में सुबह-सुबह जब वो ऑफिस की कैब छूट जाने के डर से ज़ल्दी-ज़ल्दी तैयार हो रही होती तो आरिफ अपनी ब्लैक कॉफ़ी का मग हाथ में लिए हौले से मुस्कुराते हुए, ये गीत गुनगुना देता… और फिर तो नीलू जैसे सब भूल जाती। फिर आरिफ को ही याद दिलाना पड़ता कि ज़ल्दी जाओ नही तो आज फिर ऑटो में डेढ़ सौ रूपये फुकेंगे… उफ़, अगर ऑफिस की कैब नहीं होती तो खिड़की से नोयडा तक का सफ़र सच में कितना मुश्किल था। एक तो सुबह की जाम, टोल का चक्कर और ऊपर से ऑटो वालों के नखरे, इतना सब झेल कर पहुँच भी जाओ तो डेढ़ सौ रुपयों की ऊपर की चपत मन को और दुखी कर जाती थी… इसलिए अच्छा था कि सुबह के रोमांस को शाम तक के लिए पोस्टपोन करके थोडा ज़ल्दी घर से निकला जाये ताकि ऑफिस तक का सफ़र अच्छे से नुसरत साहब को सुनते हुए कट जाए।
नुसरत साहब, उसके और आरिफ – दोनों के फेवरेट… दोनों सिरफिरे, लेकिन दोनों की पसंद साफ़ अलग… एक कश्मीर का केसर तो दूसरी उत्तर भारत की गुलकंद… एक सोच सोच कर चलने वाला, दूजी फटाक से कुछ कर गुजरने वाली… एक को आधी रात को इंडिया गेट की आइसक्रीम पसंद तो दूसरा खुद ही कोल्ड कॉफ़ी बनाकर ले आने वाला… कुछ भी तो नहीं मिलता था उन दोनों में सिवाय नुसरत साहब के नगमों के लिए दीवानगी और लिखने के शौक के।
और इन्हीं दो चीज़ों ने करीब ला दिया था उन्हें…
कॉलेज ख़त्म होने के बाद की पहली नौकरी थी। अभी चार ही दिन हुए थे उसे यहाँ ज्वाइन किये हुए…एक तो दिमाग अब भी कॉलेज के दोस्तों और शरारतों में लगा हुआ था और तिस पर से ऑफिस के ये अजनबी लोग – मन यहाँ लगे भी तो कैसे।
आज थोडा ज़ल्दी आ गयी थी तो सोचा जब तक बॉस नहीं आता है तब तक गाने ही सुन लूं…
आज थोडा ज़ल्दी आ गयी थी तो सोचा जब तक बॉस नहीं आता है तब तक गाने ही सुन लूं…
बस हैडफ़ोन ऑन किया और खो गयी अपनी दुनिया में।
एक्सक्यूज़ मी…
एक्सक्यूज़ मी…
अचानक से किसी ने उसकी कुर्सी को हिलाया जैसे…
हड़बड़ा कर कानों से हैडफ़ोन निकाल कर जैसे ही उसने नज़र उठाई, सामने एक लड़के को अपनी ओर गुस्से से लगभग घूरता हुआ पाया…
एक्सक्यूज़ मी…
अचानक से किसी ने उसकी कुर्सी को हिलाया जैसे…
हड़बड़ा कर कानों से हैडफ़ोन निकाल कर जैसे ही उसने नज़र उठाई, सामने एक लड़के को अपनी ओर गुस्से से लगभग घूरता हुआ पाया…
यस… टेल मी…
मोहतरमा, ये बैग आपका है…
जी…
क्या आप इसको हटाने की कृपा करेंगी?
ये जगह मेरी है… और मुझे अपने वर्क-प्लेस पर कचड़ा बिलकुल पसंद नहीं है।
उसका ये तल्ख़ अंदाज़ देख कर जैसे ही वो उठी, पीछे से निशा की आवाज़ आई…
अबे आरिफ, क्या हुआ, क्यों चिड़-चिड़ कर रहा है सुबह-सुबह।
नई लड़की है, पता नहीं था उसे कि तू यहाँ बैठता है।
मोहतरमा, ये बैग आपका है…
जी…
क्या आप इसको हटाने की कृपा करेंगी?
ये जगह मेरी है… और मुझे अपने वर्क-प्लेस पर कचड़ा बिलकुल पसंद नहीं है।
उसका ये तल्ख़ अंदाज़ देख कर जैसे ही वो उठी, पीछे से निशा की आवाज़ आई…
अबे आरिफ, क्या हुआ, क्यों चिड़-चिड़ कर रहा है सुबह-सुबह।
नई लड़की है, पता नहीं था उसे कि तू यहाँ बैठता है।
मीट हर, शी इस इज़ आवर न्यू कलीग नीलिमा सिंह..
एंड नीलिमा, ही इज़ आरिफ…हमारा टीम मेट… एक वीक की छुट्टी पर था, आज ही आया है… एन्ड यू कैन कॉल हिम अकड़ू आरिफ टू। ऐसा ही है ये…
एंड नीलिमा, ही इज़ आरिफ…हमारा टीम मेट… एक वीक की छुट्टी पर था, आज ही आया है… एन्ड यू कैन कॉल हिम अकड़ू आरिफ टू। ऐसा ही है ये…
‘हेल्लो नीलिमा‘
सॉरी यार, वो मुझसे मेरा मेस्ड अप वर्क प्लेस नहीं देखा जाता…
शायद पहली मुलाक़ात की अपनी तल्खी को समझते हुए उसने अपनी ओर से ही बातों की शुरुआत की थी।
नो, इट्स ओके… गलती मेरी ही थी।
नीलिमा ने ज़्यादा ध्यान न देते हुए बात को फ़टाफ़ट ख़त्म करना चाहा…
सॉरी यार, वो मुझसे मेरा मेस्ड अप वर्क प्लेस नहीं देखा जाता…
शायद पहली मुलाक़ात की अपनी तल्खी को समझते हुए उसने अपनी ओर से ही बातों की शुरुआत की थी।
नो, इट्स ओके… गलती मेरी ही थी।
नीलिमा ने ज़्यादा ध्यान न देते हुए बात को फ़टाफ़ट ख़त्म करना चाहा…
अरे हाँ, मैं बताना भूल गयी। बॉस बता रहे थे कि नीलिमा तुम्हारी ही टीम में होगी आरिफ… निशा ने जैसे बम फोड़ा था उसके लिए।
इस अकड़ू के साथ काम करना होगा… यानी एक और मुसीबत, ओह नो…
इस अकड़ू के साथ काम करना होगा… यानी एक और मुसीबत, ओह नो…
उस वक़्त इस चिड़चिड़े आरिफ के साथ काम करने के ख़याल से ही नीलिमा सहम गई थी. लेकिन कुछ दिन ही स्टोरीज और फीचर्स पर साथ काम करते करते दोनों में दोस्ती सी होने लगी थी… टी ब्रेक में अब आरिफ अपनी ब्लैक कॉफी के साथ उसकी ग्रीन टी भी लेता आता…
नीलिमा, ये लो अपनी ग्रीन टी… वैसे यार तुम्हारा कोई निक नेम नहीं है। नीलिमा, इतना लंबा नाम…उफ़, ऐसा लगता है जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफ़र पूरा करके लौटा हूँ।
नीलिमा, ये लो अपनी ग्रीन टी… वैसे यार तुम्हारा कोई निक नेम नहीं है। नीलिमा, इतना लंबा नाम…उफ़, ऐसा लगता है जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफ़र पूरा करके लौटा हूँ।
थैंक यू… ऐसे मत कहो, बहुत सुन्दर नाम है मेरा… हाउएवर यू कैन कॉल मी ‘नीलू‘। मेरे घर वाले इसी नाम से बुलाते हैं मुझे…
आह! नीलू… दैटस् ब्यूटीफुल…
अच्छा क्या सुन रही हो नीलू? नीलू
कुछ नही, ‘सांसो की माला पर‘…
यू मीन नुसरत साहब वाला ‘सांसों की माला पर‘…
ह्म्म्म
तुम सुनती हो उनको?
क्यों, नहीं सुन सकती?
अरे नहीं यार, बिलकुल सुन सकती हो… अच्छा चलो, ये राईट साइड वाला हेडफोन मुझे दो…
अच्छा क्या सुन रही हो नीलू? नीलू
कुछ नही, ‘सांसो की माला पर‘…
यू मीन नुसरत साहब वाला ‘सांसों की माला पर‘…
ह्म्म्म
तुम सुनती हो उनको?
क्यों, नहीं सुन सकती?
अरे नहीं यार, बिलकुल सुन सकती हो… अच्छा चलो, ये राईट साइड वाला हेडफोन मुझे दो…
ये क्या बदतमीजी है, मैं सुन लूं तो ले लेना तुम…
सच में कितना एटिट्यूड है तुममे…
और तुम्हारा अपने बारे में क्या ख़याल है आरिफ? तुमने तो पहले ही दिन मुझसे इतने बुरे तरीके से बात की थी…
ओह माय गॉड… तुम अभी तक उस बात को दिल से लगा कर बैठी हो…
हाँ और नहीं तो क्या… वैसे छोड़ो अब…
अच्छा सुनो, अगर मैं माफ़ी मांग लू तो चलेगा…
कर दिया माफ, अब जान छोडो मेरी…
ऐसे नही, पहले बोलो कि आज का डिनर तुम मेरे साथ करोगी…
माफ़ी मांग रहे हो या डिनर डेट के लिए पूछ रहे हो?
जो तुम समझो…
जाओ भी…
नहीं, पहले ‘हाँ‘ बोलो…
अच्छा ठीक…
ओके फिर सी यू एट 8 इन सिटी मॉल… तुम पता दे दो तो तुम्हे लेने आ जाऊं…
अच्छा, कौन से उड़न खटोले से आओगे? रहने दो, मैं खुद ही आ जाउंगी…
ओके डन…
बस वो शाम थी और दोस्ती से प्यार तक के सफ़र की शुरुआत भी… धीरे-धीरे प्यार बढ़ा और दीवानापन भी… और दीवानगी में दोनों ने एक दिन साथ रहने का भी फैसला कर लिया।
वक़्त बीता, साथ रहते हुए नीलू ने दूसरी नौकरी तलाश ली थी तो आरिफ नौकरी छोड़ कर फुल टाइम फ्रीलांसिंग में आ गया था…
वक़्त बीता, साथ रहते हुए नीलू ने दूसरी नौकरी तलाश ली थी तो आरिफ नौकरी छोड़ कर फुल टाइम फ्रीलांसिंग में आ गया था…
कितना सही चल रहा था सब कुछ शनिवार की उस शाम तक… फिर मम्मी के उस फोन ने सब बिगाड़ दिया था। पापा लड़का देखने गए हैं…
मगर क्यों?
क्या मगर क्यों… तेरी शादी की उमर हो रही है इसलिए।
वैसे तुझे कोई पसंद है तो बता दे…
मगर क्यों?
क्या मगर क्यों… तेरी शादी की उमर हो रही है इसलिए।
वैसे तुझे कोई पसंद है तो बता दे…
हाँ पसंद तो है आरिफ़, लेकिन मम्मी को अभी कैसे बता दूं। मन ही मन नीलू ने सोचा और मम्मी को न नुकुर में जवाब देकर फ़ोन रख दिया…
पूरी रात सो नहीं पायी थी नीलू… बस यही सोचती रही थी कि आरिफ़ अभी शादी के लिए मानेगा या नहीं मानेगा… और अगर उसने मना कर दिया तो…
और अगली सुबह आरिफ़ को लैपटॉप पर कुछ करते देख उससे रहा न गया। पूछ ही बैठी–
आरिफ कब तक यूँ ही फ्रीलांसिग करते रहोगे…
व्हाट डू यू मीन बाय ‘कब तक‘… कौन सा नकारा हूँ, कमा तो रहा हूँ…
हाँ, कभी लाख, कभी खाक…
हाँ, वैसे ही, लेकिन चल तो रहा है न…
हां, चल इसलिए रहा है क्योकि हम अभी मैरिड नहीं हैं। कल को हमारी शादी होगी, फॅमिली होगी, फिर क्या करोगे तुम…
उसकी छोड़ो…
क्यों छोड़ो, जब भी शादी और फॅमिली की बात करती हूँ, तुम भागने लग जाते हो…
व्हाट डू यू मीन बाय ‘कब तक‘… कौन सा नकारा हूँ, कमा तो रहा हूँ…
हाँ, कभी लाख, कभी खाक…
हाँ, वैसे ही, लेकिन चल तो रहा है न…
हां, चल इसलिए रहा है क्योकि हम अभी मैरिड नहीं हैं। कल को हमारी शादी होगी, फॅमिली होगी, फिर क्या करोगे तुम…
उसकी छोड़ो…
क्यों छोड़ो, जब भी शादी और फॅमिली की बात करती हूँ, तुम भागने लग जाते हो…
भागूं न तो क्या करूं यार… हो पाएगी हमारी शादी? बता पाओगी, अपने मूछों वाले पापा से तुम कि तुम्हें एक मुसलमान लड़के से शादी करनी है…
हाँ बता दूँगी, पहले तुम तो मान जाओ… सबको मना लो… मेरी फिकर न करो…
पागल हो गयी हो नीलू… कैसे होगी हमारी शादी? पॉसिबल नहीं है यार… खुद ही सोच के देखो…
और चलने दो न जैसा चल रहा है… हो जायेगी भी…
और चलने दो न जैसा चल रहा है… हो जायेगी भी…
‘व्हाट‘ हो जायेगी यार? आई एम् टर्निंग 25 दिस मंथ… मम्मी बता रही थी कि पापा लड़का ढूंढ रहे हैं…
तो?
तो ये कि वो चाहते हैं कि मैं शादी करके सेटल हो जाऊं…
और तुम क्या चाहती हो?
मैं भी अपनी फॅमिली स्टार्ट करना चाहती हूँ…
किसके साथ?
ऑफ़-कोर्स तुम्हारे…
लेकिन मुझे इसके लिए वक़्त चाहिए
और मेरे पास वक़्त नहीं है…
तो फिर मैं तुरंत-फुरत में कोई फैसला नहीं ले सकता।
ठीक है, मैं मम्मी को कह देती हूँ कि पसंद कर लें कोई भी लड़का वो…
ये क्या बात हुई यार नीलू… इतनी ज़ल्दी कहीं कोई फैसला लेता है…
क्यों नहीं लेता… पिछले 4
कहानी ठीक है, युवा विद्रोही स्वर न होना खलता है
Awesome writing. I really feel it into my heart
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 – 01- 2016 को चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2016/01/2221.html> चर्चा – 2221 </a> में दिया जाएगा
धन्यवाद
Kahani Achchhee Hai .
Very nice….
Very nice….
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thhik hai, lekin husband ko sidhe darkinar karke likhi jane wali kahaniyo ka daur ab kafi purana hota ja raha hai. aaj ki kahaniya sachhai ko gahrayi se padtal nahi karti,halki pdtal karti dikhayi deti hai.
thhik hai, lekin husband ko sidhe darkinar karke likhi jane wali kahaniyo ka daur ab kafi purana hota ja raha hai. aaj ki kahaniya sachhai ko gahrayi se padtal nahi karti,halki pdtal karti dikhayi deti hai.
अद्भुत…..