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ऋत्विक घटक का सिनेमा सदा प्रासंगिक रहेगा

40 साल पहले इसी महीने जीनियस फिल्मकार ऋत्विक घटक का देहांत हुआ था. आज उनकी शख्सियत को, उनके सिनेमा को याद करते हुए एक सुन्दर लेख सैयद एस. तौहीद ने लिखा है- मॉडरेटर 
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सात फरवरी 1976 कलकत्ता की सुबह को ऋत्विक घटक की असामयिक मौत ने झकझोर दिया था.पूरे शहर ने एक दुखद ख़बर के साथ आंखे खोलीं.जिस किसी ने ख़बर सुनी वो विश्वास नहीं कर सका कि ऋत्विक बाबू अब नहीं रहे.अंतिम यात्रा मे  लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा.कलकत्ता की सड़कों पर लोगों का एक हुजूम था.50 वर्षीय घटक का अंतिम अरण्य प्रेसीडेंसी अस्पताल से दोपहर में निकला. चाहने वाले उनके शव के आगे पीछे चलते रहे..उन फिल्मों के मशहूर गाने लोगों की जुबां यूं ही बरबस आ रहे थे. ऋत्विक घटक की अंतिम यात्रा एक मायने मे अद्वितीय शख्सियत की अद्वितीय यात्रा थी..अंतिम संस्कार केउडताला घाट पर होना था.
पहली फिल्म नागरिक(1952) निर्माण के 65 बरस बीत जाने बाद.आज जब मुड़कर देखें तो यही समझ आएगा कि ऋत्विक घटक अपने युग के सबसे वंचित फिल्मकार थे.आपकी दक्षता को हमेशा कम कर आंकने का बडा जुर्म लोगों से हुआ.भारतीय सिनेमा मे जीते जी ऋत्विक बाबू को अपना उचित सम्मान समय से नहीं मिला. आप आत्मघात के स्तर तक अविचल,सनकी एवं आवेगशील शख्स थे. सिनेमा के लिहाज़ से ऋत्विक अराजक थे.फ़िर भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में आप जैसा सच्चा साधक कोई दूसरा नहीं था .फिल्म निर्माण के आधिकारिक व्याकरण से परे होकर भी आपने महानता को पाया.इसलिए ही शायद कल की तरह आप आज भी प्रासंगिक हैं..हमेशा रहेंगे.
घटक ने अपने जीवन काल में कुल आठ फीचर फिल्में एवम दस डॉक्युमेंटरी बनाई.इनमें से तीन फिल्में आप के निधन के पश्चात रिलीज़ हो सकीं.इन फिल्मों को अपने दिन के उजाले की जुस्तजू में बरसों इंतजार करना पड़ा.इन बदनसीब फिल्मों में ‘नागरिक’ भी रही,यह फिल्म हालांकि ‘पाथेर पंचाली’ से तीन साल पहले बन चुकी थी.लेकिन रिलीज़ हुई बरसों बाद.नागरिक के समय पर रिलीज़ ना होने से सत्यजीत राय की फिल्म को नाम करने का अवसर पहले मिला. साठ दशक में बनी सुवर्णरेखा (1962)को भी दिन का उजाला देखने के लिए तीन साल इंतज़ार देखना पड़ा.पाथेर पंचाली ने भारतीय सिनेमा में क्रांतिकारी युग का आगाज किया. नागरिक में नौकरी के लिए संघर्ष करते युवक की कहानी थी.रोज़गार के लिए जूझते इस युवक का क्रमिक विघटन दिल पर अमिट प्रभाव छोड़ता है.अफसोस ‘नागरिक’ समय पर रिलीज़ नही हो सकी,नतीजतन घटक का सपना टूट -छूट गया. विडम्बना,देरी के कारण आप भारतीय सिनेमा में समानांतर धारा के पथप्रदर्शक होते- होते रह गए. लुप्त से हो चुके  फिल्म प्रिंट को तलाश कर आखिरकार सत्तर दशक में रिलीज़ किया गया. लेकिन इस दिन को देखने के लिए घटक बाकी नहीं थे.
जो कुछ भी जिंदगी मिली उसमें दुख सालता रहा कि अपना फन दुनिया को दिखा नहीं सके. शराब की लत ने ऋत्विक की जिंदगी को नरक बना दिया था,आप पीड़ादायक अंत की ओर अग्रसर थे. बुर्जुआ समीक्षकों ने आपको हमेशा नज़रअंदाज़ किया.फिल्म उद्योग से आपको खास सहयोग नहीं मिला,आपकी काबिलियत को हमेशा कमतर देख कर आंका गया.आपके प्रयासों को मिटाने की कोशिश हुई..ऋत्विक की फिल्में कभी समय पर रिलीज़ नहीं हो सकीं. घटक ने बहुत कष्ट उठाए.अपने काम को लोगों तक नहीं पहुंचा सकने का ग़म आपको हमेशा सालता रहा.समय पर  फिल्में  रिलीज़ नहीं होने के अतिरिक्त आपके द्वारा शुरू किए गए बहुत से प्रोजेक्टस जिंदगी रहते पूरे नहीं हो सके,पर्याप्त धन नहीं होने कारण यह काफी समय के लिए अधूरे पड़े रहें .आप ने हमेशा अपने शर्तो पर काम किया, इसलिए ज्यादातर निर्माताओं से नहीं बनी. बाज़ार की मांग व चाहत के अनुरूप खुद को ढालने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे.ऋत्विक के अनूठे अभिमानी एवम अति स्पष्टवादी व्यक्तित्व ने उन्हें हाशिए पर डाल दिया था.आप ने लोगों से किनारा कर लिया,क्योंकि आदर्शों का कभी मिलान नहीं हो सका.
सत्यजीत राय एवम मृणाल सेन से ऋत्विक एक मायने में इसलिए अलग कहलाए क्योंकि आपने मेलोड्रमा का बड़ा प्रभावपूर्ण इस्तेमाल किया.यह ट्रीटमेंट रंगमंच से प्रेरित था. याद करें ‘मेघे ढाका तारा’ का उपांत्य दृश्य-नीता अपने भाई से कह रही : दादा मैं जीना चाहती हूं..घटक की मेलोड्रमा निर्मित करने की महान क्षमता को दिखाता है.हालांकि आपने अभिनेत्री को आंसू निकालने से मना कर केवल जोर से चीखने दिया.चीख नीता की अपार पीड़ा को सशक्त रुप से व्यक्त कर सकी.मेघे ढाका तारा अन्तर्गत एक गाने की शूटिंग करने में खासी दिक्कत आई क्योंकि उनके पास पार्श्व तकनीक हेतु मशीन नहीं थी.गाने में पार्श्व एफेक्ट देने के लिए अभिनेता को थोड़ी दूरी पर गा रहे गायक के होठों से अपनी मुख मूवमेंट मिलाने को कहा गया.इस किस्म के समाधान निकालने में घटक को दक्षता हासिल रही. पूरे सिने काल में आपको हमेशा प्रायोजकों एवं उपकरणों एवं अन्य सहयोग की कमी रही.फ़िर भी सिनेमा के प्यार के लिए संघर्ष जारी रखा.
आज ऋत्विक घटक विश्व सिनेमा के एक प्रतिष्टित नाम हैं. दुनिया भर के फिल्म समारोहों में आपकी फिल्मों का प्रदर्शन होता रहा है. आपकी फिल्मों को उस युग का साक्षी मानकर पठन-पाठन भी चला.घटक दा की पुत्री समहीता के शब्दों में..काफी नुकसान सहन करने बाद भी बाबा ज्यादातर आशावादी रहे.निधन के कुछ दिन पहले ही उन्होंने मुझसे विश्वास जताया कि उनकी फिल्में एक दिन ज़रूर उजाले को देखेंगी.पिता की अनूठी शख्सियत से समहीता बहुत प्रभावित रहीं.आपने उन पर किताब भी लिखी.
फिल्मों में जिंदगी बनाने की ऋत्विक को कोई चाह नहीं थी..उन्होंने स्वयं इसे स्वीकारा भी कि बाबा उन्हे आयकर अधिकारी बनाने चाहते थे.आपको आयकर विभाग मे नौकरी मिल भी गई.लेकिन ना जाने क्यों पद से इस्तीफा देकर राजनीति का रुख कर लिया.कम्यूनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया से जुड़ गए.पार्टी की सेवा मे  सांस्कृतिक पाठ लिखने का महत्वपूर्ण काम किया. पार्टी के सांस्कृतिक फ्रंट का उद्देश्य कला एवं रंगमंच के जरिए लोगों को संगठित करना था.प्रतिवेदन को लिख कर आपने सन 1954 में पार्टी समक्ष प्रस्तुत किया,लेकिन पार्टी इससे सहमत नही हुई.राजनीति से मोहभंग होने बाद आप लेखन की तरफ़ अग्रसर हुए.कविताएं एवं कहानियां लिखी, भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा ) के सम्पर्क में आए.इप्टा में आने पर फिल्मों से सम्पर्क बढा.
ऋत्विक के लिए सिनेमा व्यक्तित्व का विस्तार था.ढाका में जन्मे घटक को युवास्था में ही कलकत्ता पलायन करना पड़ा.अपने घर से बेघर किए जाने का ग़म उन्हें सालता रहा.मुहाजिर होने का ग़म आपको सालता रहा, हर बांग्ला बंधु जिसे बंगाल के अकाल (1942) में अपना वतन छोड़ना पडा,वो हर कोई जिसने बंगाल विभाजन का दंश झेला फ़िर आज़ादी(1971) के लिए संघर्ष किया आपके दिल के बहुत करीब था. ऋत्विक घटक ने अपनी फिल्मों में इन लोगों की व्यथा को प्रमुखता से स्थान दिया. शरणार्थियों अथवा मुहाजिरो के जीवन अनुभवों पर आपने तीन फिल्मों की कड़ी (त्रयी) बनाई,इनमें मेघे ढाका तारा एवम सुवर्णरेखा के अतिरिक्त ‘कोमल गांधार’ तीसरी फिल्म थी. बरसों बाद बांग्लादेश वापसी पर आपने ‘टिटास एक्टी नदीर नाम’ का निर्माण किया.
जीते जी ऋत्विक को अपनी काबिलियत का प्रमाण भारतीय फिल्म एवम टेलीविजन संस्था (पुणे)के विद्यार्थियों से मिला.आपने पांच सालों तक वहां निर्देशन पढाया.निर्देशन अन्तर्गत छात्रों को क्या पढ़ना चाहिए? यह भी आपने तय किया.आप इस संस्था से बहुत गहरे भाव से जुड़े रहे. छात्र आपको काफी पसंद करते थे,हालांकि आपका जीने का तरीका बहुत ठीक नहीं था .ज्ञान के मामले फ़िर भी उन जैसा शिक्षक मिलना मुश्किल था. पढाने का अंदाज़ लीक से हटकर हुआ करता..लाइटिंग पर लेक्चर को वो क्लासरूम से आगे वास्तविक अनुभवों तक ले गए. कुमार शाहनी,जॉन अब्राहम एवम मणि कॉल सरीखे कल की हस्तियां आपके विद्यार्थी थे. पुणे फिल्म संस्थान में ज्यादातर समय छात्र आपको घेरे ही रहते. ऋत्विक क्लासरूम में पढाने के बजाए एक पेड़ की छाया में पढाया करते थे.फिल्म दिखाए जाने बाद विद्यार्थियों साथ उनपर खुला विचार -विमर्श करते.युवा शक्ति अर्थात एफ़टीटीआई की नयी पीढी ने देश को ऋत्विक की वास्तविक दक्षता का एहसास कराया.
आप हालांकि आजीवन यथार्थवादी फिल्में करते रहे,फ़िर भी ‘मधुमती’ के रुप में बदलाव आया.फिल्म की पटकथा को विमल राय के सहयोग से लिखा था.मधुमती पुनर्जन्म के लोकप्रिय सब्जेक्ट पर बनाई गई. आप मधुमती की सफलता को लेकर थोड़े कम आश्वस्त रहे,इसके विपरीत फिल्म ने काफी नाम कमाया.हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘मुसाफ़िर ‘की कथा भी घटक ने लिखी थी.कुछ  समय के लिए आपने फिल्मिस्तान स्टूडियो में भी सेवाएं दी.लेकिन बम्बई का जादू ऋत्विक को बांध नहीं सका.कलकता आपको अधिक भाया,यहां रहकर आपने सिनेमा को एक से बढ़कर एक महान फिल्में दीं..आपका सिनेमा एवम शख्सियत नदी की तरह रहें, सेवा  सापेक्ष जीने खातिर जीने का दूसरा नाम ऋत्विक घटक था.
 
      

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One comment

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सचिन 200 नॉट आउट और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।

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