पनामा पेपर्स के सामने आने के बाद, अमिताभ बच्चन का नाम सामने आने के बाद, अमिताभ बच्चन के यह कहने के बाद कि उनको तो उन कंपनियों के बारे में पता भी नहीं. पता नहीं कैसे क्या हुआ? मेरे अंदर का अमिताभ बच्चन कुछ खंडित हुआ, पिछले 20 सालों में कई मौके आये, थोडा-थोड़ा खंडितहोती रही में में उनकी छवि. लेकिन इस बार का विखंडन बहुत बड़ा है.
वैसे जब भी अमिताभ बच्चन से मोहभंग होने लगता है उनकी वह जीवनी पढने लगता हूँ जो मेरे जानते उनकी एकमात्र ऐसी जीवनी है जिसके लेखक को उन्होंने लिखने में पूरी मदद की. अपने साथ रखा, अपने करीबियों से बात करने के लिए कहा. और जानते हैं वह जीवनी अंग्रेजी में नहीं है, मूल रूप से बंगला में लिखी गई है, मेरे पास उसके हिंदी अनुवाद की प्रति है, जिसे वाणी प्रकाशन से प्रकाशित किया है- अमिताभ बच्चन! लेखक का नाम है सौम्य बंद्योपाध्याय. कोलकाता के बंगला अखबार के संवाददाता की लिखी यह जीवनी शायद अमिताभ बच्चन की एकमात्र ऐसी जीवनी है, जिसमें अमिताभ बच्चन के जीवन में अलग अलग दौर में आये लोगों से बातचीत की गई. अमिताभ बच्चन ने सबसे लेखक की बात खुद करवाई. किताब में शत्रुघ्न सिन्हा, रेखा, मिथुन चक्रवर्ती जैसे किसी ने किसी दौर में अमिताभ के करीबी रहे अभिनेता-अभिनेत्रियों से बातचीत भी है. केवल राजेश खन्ना से बातचीत नहीं हो पाई. जबकि उसके लिए खुद अमिताभ बच्चन ने भी बहुत कोशिश की.
हालांकि यह जीवनी अमिताभ की मुकम्मल जीवनी नहीं है. किताब प्रकाशित हुई थी 1995 में, लिखी उससे भी पहले तब गई थी. उस दौर में जब अमिताभ सांसद थे, बोफोर्स घोटाले में उनका नाम आया था. फिल्मों से एक तरह से उनका दौर ख़त्म होता सा दिख रहा था. उस दौर की जीवनी है जब अमिताभ साफ़ तौर पर याह कहते थे कि वे टीवी और विज्ञापनों में काम नहीं कर सकते क्योंकि ये उनकी अभिव्यक्ति के उचित माध्यम नहीं हैं. एक दौर ऐसा आया था जब अमिताभ का जादू उतरता दिखाई दे रहा था. इस जीवनी में लेखक ने उनकी बदहवासी के उस दौर का भी वर्णन किया है. एक बार जब लेखक उनसे मिलने गए तो अमिताभ बच्चन के चेहरे की दाढ़ी ठीक से नहीं बनी हुई थी, उन्होंने जो कुरता पहना हुआ था वह भी किनारे से फटा हुआ था.
बहरहाल, हम सब जानते हैं कि फिनिक्स की तरह अमिताभ का फ़िल्मी जीवन दुबारा शुरू हुआ. अमिताभ टीवी, विज्ञापनों के भी बड़े सितारे बने. फिल्मों में अलग अलग तरह की यादगार भूमिकाओं में आये, आज भी आ रहे हैं. अमिताभ बच्चन के उत्तर-जीवन को नहीं लेकिन उनके पूर्व जीवन की भरपूर कहानी इस जीवनी में है. भरपूर संकेत हैं. जैसे कि कोलकाता में अमिताभ जिस कंपनी में काम करते थे उसके एक वरिष्ठ सहकर्मी लेखक से बातचीत में यह बताता है कि रेखा से अमिताभ तो जया बच्चन के आने से पहले ही मिल चुके थे. दोनों ‘रेशमा और शेरा’ फिल्म में साथ-साथ काम कर रहे थे.
अमिताभ के व्यक्तित्व को, मुक्केबाजी को लेकर उनके प्यार को, उनके गरिमापूर्ण व्यक्तित्व को 600 पन्नों की इस किताब में बड़ी खूबी के साथ दर्शाया गया है.
दुबारा पढ़कर ख़त्म किया तो अपने बचपन और किशोरावस्था के वे दिन याद आ गए जब हमारे लिए सिनेमा का मतलब अमिताभ बच्चन होता था, जिस दौर में यह कहा जाता था कि 1 से लेकर 10 नंबर तक तो अमिताभ बच्चन हैं, बाकी अभिनेता उसके बाद ही आते हैं.
न पढ़ा हो तो वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब को पढियेगा जरूर.
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