यह कहानियों का लप्रेक काल है. जीवन में-कहानियों में छोटी-छोटी बातों को महत्व देने का दौर. युवा लेखिका सौम्या बैजल की इस छोटी कहानी को ही देखिये- मॉडरेटर
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‘बेवकूफों जैसी बातें मत करो. तुम जानते हो की मैँ उसे भूल चुकी हूँ‘ , मानसी ने झुंझला कर वरुण से कहा.
‘ठीक है, तुमने कहा और मैंने मान लिया . चलो कोई और बात करते हैं. कुछ गाने लगाऊूँ, पुराने तुम्हारी
पसंद के?’, वरुण ने तुरुंत बात बदल कर कहा. जवाब का इन्तजार न करते हुए , वह पलंग से उठा और
कैफी आज़मी के कुछ गीत सी डी प्लेयर पर चला दिए . मानसी उसे देख कर मुस्कुराई , और फिर साथ
गुनगुनाते हुए कुछ लिखने लगी. वरुण ने अपनी किताब उठाई और मानसी के सामने कुर्सी पर बैठ गया.
और किताब के पीछे से चुपचाप पलंग पर लेटी हुई मानसी को एकटक देखता रहा. उसके उड़े उड़े बाल,
आंखों का वह खूबसूरत गीलापन, जो बस छलक जाने वाला था, होंठों की वह एक एक सुर्खी , AC की
हवा में धीरे धीरे खड़े होते उसके रोंगटे।
उसे मानसी की हर चीज़ से मोहब्बत थी. उसकी उस छोटी
सी छींक से भी, जो मानसी को अभी अभी, ठंडी हवा मेँ आई थी. शायद वह सच में उसे भूल गयी हो, वरुण
ने मन ही मन सोचा, और किताब पढ़ने लगा. पल बीते या घुंटे यह कहना मुश्किल था. बहराल जब आंख
खुली, तो सामने अपनी कॉपी कलम को हाथ में पकडे हुए मानसी को सोता पाया. वरुण धीरे से उठा, जिस
से उसके पैरों की आवाज़ से मानसी जाग न जाए. हलके हाथ से उसने उसके हाथ से कलम छुड़ाई और
कॉपी पढ़ने लगा.
‘शायद तुम्हारे लिए मैं वह कभी न बन पाउंगी जो तुम मेरे लिए थे अनिल।
शायद तुम्हे एहसास होगा की रोज़ रात बेसमय जाग कर मैं यह सोचती थी, की शायद मेरी नींद में सिर्फ
तुम्हारी सोच और
Thank you!
Thank you 🙂
बहुत खूबसूरत,बहुत कुछ तो लिख दिया, छोटी कहानी कहाँ, बहुत शुक्रिया सौम्या बैजल जी। ऐसे पंच का इन्तजार रहेगा..
खूबसूरत. ऐसी कहानियों की श्रृंखला का इंतज़ार रहेगा.