प्रीतपाल कौर एक जानी मानी पत्रकार रही हैं. विनोद दुआ की न्यूज पत्रिका ‘परख’ में थीं, बाद में लम्बे समय तक एनडीटीवी में रहीं. उनकी एक छोटी सी कहानी- मॉडरेटर
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कमरे में बंद दरवाज़ों के भीतरी पल्लों पर जड़े शीशों से छन कर आती रोशनी बाहर धकलते बादामी रंग के परदे, नीम अँधेरे में सुगबुगाती सी लगती आराम कुर्सी, कोने में राखी ड्रेसिंग टेबल, बाथरूम के दरवाजे के पास रखा नारंगी रंग का पाँव पोश…. सब पर सन्नाटा तैर रहा था. कुछ पल पहले का हवा में तैर रहा उन्माद उच्चाट नीरवता को फैलाते हुए निचेष्ट पड़े शरीरों पर हावी होने लगा. किनारे पडी गुडी–मुडी बदन से खिसक गयी सफ़ेद चादर को पुनः खींच कर उसने उस पर ओढा दिया. इसी प्रयास में उसके खुद भी काफी शरीर ढक गया.
चादर के स्पर्श
तुमने पढ़ी और अच्छी लगी . इतना काफी है. मेरा दिल खुश है.
khubsurat kahoon ke kaya kahoon , tay nahi ho paa raha hai