आज शिक्षक दिवस है. आज युवा लेखक और शिक्षक शशिभूषण ने विद्यार्थियों के लिए पांच बातें लिखी हैं- मॉडरेटर
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शिक्षक दिवस पर पाँच बातें प्रिय विद्यार्थियो, मौका है कि शिक्षक दिवस पर मैं आपसे कुछ कहूँ। आप जानते हैं कि मैं आपसे कहता ही रहता हूँ। आपसे खूब बातें करना मुझे कितना पसंद हैं आप अच्छे से जानते हैं। इसलिए आज मैं आपसे अपनी कुछ कही हुई वही पुरानी बातें फिर कहता हूँ। आपको मेरी एक बात याद होगी कि यदि मौका खास हो तो दुहराई हुई बात चित्त पर चढ़ जाती है। तो शुरू करते हैं। पहली बात, आप में से कोई बच्चा नहीं है। आप हमारी नकल पर जब एक दूसरे को भी बच्चा कहते हैं, आकर बोलते हैं- सब बच्चे शोर कर रहे…तो मुझे हँसी आती है, अजीब लगता है, अफ़सोस भी होता है। आप सब बच्चे नहीं विद्यार्थी हैं। विद्यालय में जो आया वह विद्यार्थी। आप घर में बच्चे हैं। गलियों, कारखानों में बच्चे हैं। विद्यालय छोड़कर हर जगह बच्चे हैं। लेकिन विद्यालय में आप विद्यार्थी हैं और हम शिक्षक। जो इतनी छोटी उमर में इतनी कठिन बातें सीख ले रहा है। छह घंटे से ऊपर एक जगह टिककर रो नहीं रहा, चोरी चकारी और उपद्रव नहीं कर रहा वह बच्चा है? बिल्कुल नहीं। आप विद्यार्थी हैं। जो आपको बच्चा कहते हैं उन्हें देश के सब अवयस्क मनुष्यों को विद्यालय के बाहर सचमुच बच्चों का स्नेह देना चाहिए। उनकी देखभाल और रक्षा करनी चाहिए। दूसरी बात, शिक्षा कोई देता नहीं है। कोई सरकार इतनी अच्छी नहीं होती कि वह पूरी प्रजा को शिक्षित करना चाहे। यदि ऐसा हो गया तो वह सरकार का मुखिया राज नहीं कर पायेगा। आप क्या सोचते हैं द्रोण शिक्षा देते थे? हर्गिज़ नहीं। द्रोण ने एकलव्य को भगा दिया था। अर्जुन और पूरे हस्तिनापुर के विद्यार्थियों को गलत शिक्षा दी। यदि अर्जुन को सही शिक्षा मिली होती तो वह एकलव्य का साथ देता। कर्ण को एकलव्य के साथ जाना था। लेकिन वह दुर्योधन के लिए लड़ा। क्योंकि वह परशुराम का शिष्य और इंद्र का बेटा था। और आपने क्या सोचा कृष्ण ने अर्जुन को सही सिखाया? कोई लड़ना सिखाता है भला? कृष्ण को चाहिए था कि वे पहले ही सबको समझा देते। कोई ज्ञानी इस बात का इंतजार करता है कि एक सेना माँगने आये दूसरा मुझको? कभी नहीं। मतलब यह हुआ कि शिक्षा लेनी पड़ती है। खुद सीखना पड़ता है। कोई देता नहीं। रात-रात भर जागकर, दुनिया में भटककर, भूखे रहकर जानना पड़ता है। जो भी सच्चे विद्यार्थी रहे उन्होने दी गयी शिक्षा से संतोष नहीं किया। खुद जाना। तब कुछ कर पाये। नौकरी तो घूस देकर भी मिल जाती है। अच्छे काम बेईमानी से नहीं होते। तीसरी बात, आप क्या सोचते हैं हम गुरू हैं? बिल्कुल नहीं। हमने जो सीखा था उसे आपके मन में छपवा देने वाले मुनीम हैं। क्या हमारा गुरू हो जाना सरल है? कोई राजा हमें वह सिखाने देगा जो हमने अनुभव किया? जो सही है उसे सिखाने का कोई उपाय नहीं। मारे जायेंगे अगर सही सिखायेंगे। मैं आपको गणित लगाना बता सकता हूँ। पौधों का भोजन बनाना बता सकता हूँ। लेकिन वह हिसाब नहीं सिखाऊँगा कि राजा कितने प्रतिशत आपकी किताबें, विद्यालय और मध्यान्ह भोजन स्वयं खा लेता है। व्यापारी और नीतिकार मिलकर कैसे राजा का भोजन और बिस्तर बनाते हैं। यह बताने का कोई पाठ्यक्रम नहीं है। बताने की कोई जगह नहीं। मैंने भी यह चोरी से सीखा। किताबों और कुछ सज़ा पाये शिक्षकों से जाना। इसलिए हम गुरू नहीं हैं। ब्रह्मा तो खैर होना ही नहीं चाहते। आप हमारी हर बात से आगे निकलना। उसे जाँच लेना। क्योंकि आप बच्चे नहीं। किसी ने सिखा दिया बच्चा और आपने रट लिया। गलत बात है। चौथी बात, आप जानते हैं कि मैं नकल का विरोधी हूँ। नकल ठीक बात नहीं है। जानकारी उड़ाकर शिक्षकों के सामने टीपकर टॉप मार लेना सबसे गंदी बात है। जब कभी मेरिट में आना तो सोचना लाखों बच्चे पढ़ने के लिए रौशनी नहीं पा रहे। उनके पेट में अन्न नहीं मिलता जब पोस्टमार्टम होता है। दर्जनों विद्यार्थी मध्यान्ह भोजन खाकर मर जाते हैं। घरों में रौशनी नहीं। मिट्टी का तेल तक नहीं। माँ बीमार। पिता बेरोज़गार। भाई जेल में। बहन बेईज्जत। तुम्हारी उमर की लड़कियां स्कूल की दीवाल पर कंडे थाप रहीं। बच्चे पाल रहीं। उनके स्कूलों की हालत देख लो तो रात में बुरे सपनों से डर जाओ। उन्हें पछाड़ने के लिए तुम्हें नकल करने की ज़रूरत पड़ती है? कितने शर्म की बात है। कितने गंदे हैं वे मास्टर जो तुमसे यह करवाते हैं। अपना कालर ऊँचा रखने। छी छी। फेल हो जाना। मगर धोखादेह मेरिट में मत आना। फेल हो जाना बुरा नहीं है। खाली हाथ बैठना बुरा है। तुम पढ़ने से ज्यादा काम करो। अपने घर के हर काम में हाथ बटाओ। कोई सरकार अब रोज़गार नहीं देने वाली। किसी कंपनी की सेवा में मत लग जाना। सब मिलकर खून चूस लेंगे। प्राइवेट विद्यालयों में क्या होता है? जोंक हैं सबकी सब। बड़े होकर अच्छा समाज बनाना होगा। तब तक बड़ा दुख रहेगा। हार मानने से विदेश भाग जाने से यह नहीं हो पायेगा। पाँचवी बात, तुम खूब सोया करो। खूब खेलो। कार्यक्रमों में भाग लो, दुनिया भर में घूमने की सोचो। जो मर्ज़ी आये करो। बस बदतमीज़ी मत करो। बदतमीज़ी करते-करते विद्यार्थी अन्यायी हो जाता है। कोई विद्यार्थी जीवन में ही अन्यायी हो जाये या बना दिया जाये तो समाज को बड़े दुख उठाने पड़ते हैं। बड़े दंगे होते हैं। बड़े युद्ध और नरसंहार होते हैं। इंसान राक्षस हो जाता है। औरतों और गरीबों पर बड़े अत्याचार होने लगते हैं। अवसर पाकर कोई बड़ा बदतमीज़ उनका नेता बन जाता है। क्योंकि जिसे राज करना है वह हमेशा ताकतवर के मत का मालिक बनता है। एक बात याद रखना, कोई भगवान आता नहीं राजा को मारने। कृष्ण को एक बहेलिए ने मारा था। देश के कुछ अच्छे विद्यार्थियों को ही अन्यायी राजा का वध करने आगे आना पड़ता है। जो ताकत देश को संवारने में लगनी चाहिए वह दुष्टों का अंत करने में चली जाती है। दुनिया वैसी की वैसी गोल रह जाती है। इसलिए आपको कुछ नहीं सूझता तो सोकर देर से उठो मगर सुबह जल्दी उठकर विद्यालय मे आकर या विद्यालय से निकलकर बदतमीज़ी मत करो। आप भाग्यशाली हैं कि आपको पढ़ने का मौका मिला। खूब जानिए। खुद से जानिए। यदि मेरी बात ठीक न लगे तो मत मानिए। बोलना और पढ़ाना मेरा काम है। समझे? समझना और समझने की जीवन भर कोशिश करना विद्यार्थियों का असल काम है। मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम सब मेरी रक्षा करना। जैसे कि अब तक शिक्षकों की रक्षा करते आये हो। विद्यार्थियो, आपने मेरी पाँच पुरानी बातें इतने ध्यान से सुनी, कुछ लोगों ने मस्ती भी की इसके लिए धन्यवाद! शशिभूषण
बेहतरीन लेख शशि सर.
आप वाकई शिक्षक ही हैं?