
स्कूली लेखक अमृत रंजन इस बार बहुत दिनों बाद जानकी पुल पर लौटा है. उसकी कविताओं से हम सब भली भांति परिचित हैं. एक बार उसने स्कूल डायरी लिखी थी और एक बार चेतन भगत के उपन्यास ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ की समीक्षा की थी. इस बार वह कुछ दार्शनिक प्रश्नों से उलझता दिखाई दे रहा है. आठवीं से नौवीं में जो जा रहा है. देखिये कितनी मौलिक जिज्ञासा है- मॉडरेटर
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शुरुआत ‘कुछ नहीं’ है
– अमृत रंजन
अंधेरा…बस यही एक शब्द है किसी को डराने के लिए। हम इसके बारे में सोचकर सहम जाते हैं। हम अंधेरे से क्यों डरते है? हम सच्चाई से डरते हैं। अंधेरा क्या है? कुछ भी नहीं। यह पूरा ब्रह्मांड कुछ नहीं से शुरू हुआ और कुछ भी नहीं है इसका अंत। इसलिए हम डरते हैं अंधेरे से।
दुनिया कितनी काली, कुछ नहीं से भरी हो सकती है। हम बुराई को अंधेरा मानते हैं। हम ऐसे जीना चाहते हैं जैसे अंधेरा है ही नहीं। कुछ नहीं कुछ भी नहीं है। इसलिए रोशनी का नामकरण हुआ। इस विशाल रात को उजागर करने की कोशिश। हमने मान लिया अंधेरा हार गया। खत्म कर दिया। लेकिन रोशनी अंधेरे का विलोम कभी नहीं बन पाएगी। हम रोशनी को एक जगह से शुरू करते हैं। यह कुछ दूर जाकर खत्म भी हो जाती है। अंधेरा कहाँ से शुरू और कहाँ से खत्म होता है? इसने पूरे ब्रह्मांड को अपने में लपेट कर रखा है जैसे हमारी माँ हमें ढककर रखती होंगी। अंधेरे ने हमको कई चीज़ों से छिपाकर रखा है जिनसे हम वाक़िफ़ नहीं हैं (और होना भी नहीं चाहते)। अंधेरा हमें रोशनी से अधिक चीजें दिखाता है, कुछ नहीं दिखाकर। आसमान को देखिए कितने तारे हैं और कितना कुछ नहीं है।
दुनिया को भगवान ने बनाया – यह एक आलस भरा जवाब है। कुछ नहीं से सबकुछ आया है। और जब हम ‘कुछ नहीं’ के बारे में सोचते हैं, हमारे दिमाग में बस काला रंग तैरता है। अंधेरा क्यों? रात को ज़रा निहारिए। क्या नज़र आता है। कितने प्यारे टिमटिमाते तारे दिखते हैं। ये तारे जिनको अंधेरा जला रहा है। तारों की रोशनी सीमित है। क्या अंधेरा अपने अंधकार को बना रहा है? नहीं। अंधेरे को बनने की ज़रूरत नहीं है। अंधकार को असीमित होने के लिए कुछ नहीं चाहिए। अंधेरा बस होता है। दुनिया काली है दोस्तों। मेरा तो मानना है कि अगर कुछ सुपरनैचुअल है तो वह बस अंधेरा ही है। इतना सारा, सबकुछ होने के बाद भी अंधेरा कुछ नहीं है। अंधेरे में जीवन है।
किसी चीज़ को जन्म देने के लिए दो जीवन की मदद चाहिए होती है। तो अंधेरे में जीवन है। और अंधेरे के साथ कोई और भी था। कौन? उन्हें मैं केऑस यानी उथल-पुथल (हालाँकि सही शब्द मिलना थोड़ा कठिन साबित हो रहा है) बुलाऊँगा। अंधेरे में छिपी हुई केऔस। केऑस क्या है? जवाब लिखकर देना मुश्किल है। इस सवाल का जवाब बस आप दे सकते हैं और हर एक के अंदर केऑस है। आँखें बंद कीजिए और महसूस कीजिए। क्या है वह चीज़ जो आपको रात में जगाकर रखती है, रात में आपको सोने नहीं देती? क्या है वो चीज़ जो आपके दिमाग में मंडराती रहती है? हमने इसके काफ़ी नाम दिए हैं – डर, दुःख, बुराई आदि लेकिन कभी रात की इस परछाई को मिटा नहीं पाए हैं। इसलिए केऑस। यह शब्द बोलने पर विचित्र क़िस्म का सुकून देता है। तो केऑस में भी जीवन है। यानी आपका डर जीवित है। यह आपका ही हिस्सा है।
तो जैसे आदमी-औरत में प्यार होता है वैसे ही डार्कनेस और केऑस में हुआ। और ये दोनों जुड़कर टूटे। और टूटे। और टूटे। कहते हैं ब्रह्मांड बढ़ता जा रहा है। मेरे खयाल से इसका मतलब होगा कि दुनिया दो दुनी चार होती है। मैं इस बात को अपना ईश्वर मानता हूँ कि कुछ नहीं से सब कुछ आया और कभी न कभी फिर कुछ नहीं में बदल जाएगा।
बहुत ही अदभुत और मौलिक लेखन है। इस युवा लेखक को शुभकामनाएं। उम्मीद है कि ये अपनी मौलिकता को बचाए रखेंगे।
अत्यंत स्पष्ट विचार, अंधेरे में भी देख पाने की लालसा तथा "कुछ नहीं" को इस अल्प आयु में समझने की चेष्टा, स्पृहनीय है ! स्नेहशीर्वाद है अमृत को !!
बहुत ख़ूब। आठ में अच्छे ठाठ दिखाए हैं अमृत ने। लेकिन ब्रह्मांड में जितना अंधेरा है, उतनी ही रोशनी भी है। अंधेरे को अनंत और रोशनी को सीमित मानना उचित नहीं। अंधेरा अवसाद का दूसरा नाम है। रोशनी उम्मीदों की पर्याय है।
vaah beta
बहुत गहन चिंतन को समेटा है ………अमृत में संभावनाओं का विशाल आकाश है ……….भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनायें
गहन भाव एवम् अभिव्यक्ति.
बहुत बढिया
अमृत में बहुत संभावनाएं दिख रही हैं। उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
श्री..
"रोशनी अंधेरे का विलोम कभी नहीं बन पाएगी"— यक़ीनन बहुत गहरी बात कही है. इस उम्र में ऐसे विषयों पर ऐसा और इतनी दूर तक सोच पाना वाक़ई असाधारण है.
अमृत रंजन ऐसे ही मनन-चिन्तन करते रहें और लिखते रहें. मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ. यह टिप्पणी कमर वहीद नकवी साहब ने भेजी है
बच्चो के पास ज्ञान का विस्तृत आकाश है, और दिख रहा है, कैसे कैसे, कहाँ कहाँ तक उनकी सोच जाती है !
खूब सारी शुभकामनायें व स्नेह !
मेरे पुत्र सामान अमृत, ढेरों शुभकामनाएं ऐसी रचना के लिए बधाई और ढेरों स्नेहाशीष आगे और भी कसी, उत्तम रचनाओं के लिए। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा, हाँ बस ख्याल रहे की पार्थ के तुनीर में सिर्फ दिव्यास्त्र नही थे,तो बेटे दिव्यास्त्रों का और भी संकलन करो और छोटी मोटी तीर यदा कदा छोड़ते रहो।
पिता से आगे जाना तो बस तुम्हारा एक मील का पत्थर हो, इतना ऊपर जाओ की माता पिता को तुम्हारी ख्याति देखने के लिए गर्दन टेढ़ी करनी पड़े।
जियो,मस्त रहो और हाँ cold drink थोड़ा कम पियो ☺
अगर मैं सही देख पा रहा हूं तो यह अपनी उम्र के हिसाब से विवेकानंद के रास्ते पर है .. out of the box सोचता है .. ईश्वर इसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करें
अमृत जी के अन्तर्दृष्टिपूर्ण लेख का शीर्षक "शुरुआत 'कुछ नहीं'है" अद्भुत है। बैकिट,सिओरां, वैद आदि लेखक यह पढ़ते तो अमृत जी को सच्ची शाबाशी और आशीर्वाद देते।
बहुत ख़ूब।।
पीयूष
बहुत ही अदभुत और मौलिक लेखन है। इस युवा लेखक को शुभकामनाएं। उम्मीद है कि ये अपनी मौलिकता को बचाए रखेंगे।
अत्यंत स्पष्ट विचार, अंधेरे में भी देख पाने की लालसा तथा "कुछ नहीं" को इस अल्प आयु में समझने की चेष्टा, स्पृहनीय है ! स्नेहशीर्वाद है अमृत को !!
बहुत ख़ूब। आठ में अच्छे ठाठ दिखाए हैं अमृत ने। लेकिन ब्रह्मांड में जितना अंधेरा है, उतनी ही रोशनी भी है। अंधेरे को अनंत और रोशनी को सीमित मानना उचित नहीं। अंधेरा अवसाद का दूसरा नाम है। रोशनी उम्मीदों की पर्याय है।
vaah beta
बहुत गहन चिंतन को समेटा है ………अमृत में संभावनाओं का विशाल आकाश है ……….भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनायें
गहन भाव एवम् अभिव्यक्ति.
बहुत बढिया
अमृत में बहुत संभावनाएं दिख रही हैं। उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
श्री..
"रोशनी अंधेरे का विलोम कभी नहीं बन पाएगी"— यक़ीनन बहुत गहरी बात कही है. इस उम्र में ऐसे विषयों पर ऐसा और इतनी दूर तक सोच पाना वाक़ई असाधारण है.
अमृत रंजन ऐसे ही मनन-चिन्तन करते रहें और लिखते रहें. मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ. यह टिप्पणी कमर वहीद नकवी साहब ने भेजी है
बच्चो के पास ज्ञान का विस्तृत आकाश है, और दिख रहा है, कैसे कैसे, कहाँ कहाँ तक उनकी सोच जाती है !
खूब सारी शुभकामनायें व स्नेह !
मेरे पुत्र सामान अमृत, ढेरों शुभकामनाएं ऐसी रचना के लिए बधाई और ढेरों स्नेहाशीष आगे और भी कसी, उत्तम रचनाओं के लिए। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा, हाँ बस ख्याल रहे की पार्थ के तुनीर में सिर्फ दिव्यास्त्र नही थे,तो बेटे दिव्यास्त्रों का और भी संकलन करो और छोटी मोटी तीर यदा कदा छोड़ते रहो।
पिता से आगे जाना तो बस तुम्हारा एक मील का पत्थर हो, इतना ऊपर जाओ की माता पिता को तुम्हारी ख्याति देखने के लिए गर्दन टेढ़ी करनी पड़े।
जियो,मस्त रहो और हाँ cold drink थोड़ा कम पियो ☺
अगर मैं सही देख पा रहा हूं तो यह अपनी उम्र के हिसाब से विवेकानंद के रास्ते पर है .. out of the box सोचता है .. ईश्वर इसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करें
अमृत जी के अन्तर्दृष्टिपूर्ण लेख का शीर्षक "शुरुआत 'कुछ नहीं'है" अद्भुत है। बैकिट,सिओरां, वैद आदि लेखक यह पढ़ते तो अमृत जी को सच्ची शाबाशी और आशीर्वाद देते।
बहुत ख़ूब।।
पीयूष