कमलजीत चौधरी जम्मू कश्मीर के साम्बा में रहते हैं और अपने देश पर कविताएँ लिखते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि हाल के वर्षों में अपनी कविताओं से उन्होंने हिंदी कविताओं के विस्तृत संसार में अपनी ठोस पहचान बनाई है. उनका कविता संग्रह आया था’हिंदी का नमक’, जिसकी कविताओं की अच्छी चर्चा हुई. आज उसी संग्रह से कुछ कविताएँ- मॉडरेटर
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अंतिम ईंट
अपनी ऊँची बस्ती में
अपने से कम रन्दों वाले
तुम्हारे घर को देख
मैं प्रतिदिन अपने घर की
एक ईंट निकाल देता हूँ
मैं तुम्हारा हाथ पकड़ना चाहता हूँ
यह सपना पूरा नहीं हो रहा
दरअसल ईश्वर रोज
तुम्हारे घर की एक ईंट
चुरा लेता है
हमारे फासलों का जश्न मना लेता है
…
कामना है
ईश्वर के पाप का घड़ा जल्दी भरे
मैं उससे यद्ध करना चाहता हूँ
ईश्वर जल्दी करो
प्रेम और युद्ध
मुझसे अंतिम ईंट दूर हैं .
००००
लार्ड मैकाले तेरा मुहं काला हो
बच्चे !
मैं उस दौर का बच्चा था
जो माँ से पूछते थे
पिता की छुट्टी कब खत्म होगी
बच्चे !
तुम उस दौर के बच्चे हो
जो माँ से पूछते हैं
पापा किस दिन घर आयेंगे
बच्चे !
मैं उस दौर का बच्चा था
जिसे पाँच साल की उम्र में
क से कबूतर सिखाया जाता था
बच्चे !
तुम उस दौर के बच्चे हो
जिसे बीस महीने की उम्र में
ए फॉर एलीगेटर सिखाया जा रहा है –
मेरे देश के बच्चों की माँएं
और सारी आयाएं
बच्चों के नाखुनों और मिट्टी के बीच
ब्लेड लेकर खड़ी हैं
बिल गेट्स का बाकी काम
लार्ड मैकाले की आत्मा कर देती है
बच्चे !
मुझ हिन्दी कवि से
दब चुके खिलोनों पर सनी पूर्वज उँगलियाँ
रुक चुके चाक से बह चुकी मिट्टी पूछ रही है
यह प्ले वे स्कूल क्या होता है
दरअसल मिट्टी ने कल
तुम्हारी माँ और मेरी बातों में
तुम्हारे स्कूल दाखिले की बातें सुनी हैं
…
बच्चे !
रो क्यों रहे हो
तुम आश्वस्त रहो
मैं दौर और दौड़ के फर्क को जानता हूँ
फिलहाल तुम
कछुआ और खरगोश की कहानी सुनो
और सो जाओ
सामूहिक सुबह तक जाने के लिए जो पुल बन रहा है
उसमें तुम्हारे हिस्से की ईंटें मैं और मेरे दोस्त लगा रहे हैं …
००००
महामहिम राष्ट्रपति जी को प्रार्थना पत्र
महामहिम राष्ट्रपति जी !
प्रार्थना है
इस प्रार्थना पत्र को
भारत सरकार भी कविता की तरह पढ़े
…
राष्ट्रीय झण्डे के लिए
मुझे शहीद कहा जाता है
राष्ट्रीय गीत के लिए
मुझे देशभक्त कहा जाता है
राष्ट्रवाद के चरम प्रदेश में
राष्ट्रीय भाषा बोलने पर
हॉकी खिलाड़ी
मेरी भतीजी को
स्कूल में बार बार दण्ड दिया जाता है
बच्ची धीरे धीरे हिन्दी से दूर चली जाएगी
मैं हिन्दी में रहता हूँ
जैसे मेरा कोई भाई तामिल में रहता है
बच्ची से बहुत प्यार करता हूँ
जैसे कोई उड़िया अपनी बच्ची से करता है
हम भाषा में रहते हैं
अपने बच्चों से प्यार करते हैं
यही हमारा दर्द है
…
अंडर ग्राउंड टंकी में डूबने से
बच्चों के मरने की दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं
इससे पहले कि सभी बच्चे माता पिता से दूर चले जाएँ
महामहिम ! हस्तक्षेप करें
धन्यवाद !!
००००
पहाड़ के पाँव
लिफ्टों बाले शहर से आई एक लड़की ने
पहाड़ के कानों में कहा
मैं तुम्हारे जीवन में कोई विस्फोट करने नहीं
तुम्हे मेहँदी लगाने आई हूँ
…
यह सुन
पहाड़ ने अपनी कन्दरा के मुहं पड़ा
भारी पत्थर हटा कर
पैर आगे बढ़ा दिए –
पहाड़ पहली बार किसी के हाथ
कोई पहली बार पहाड़ के पाँव देख रहा था …
००००
भूत और बन्दूक
मंगल पर पी जाएगी चाय
मेरी कामना है
चाँद मेरी थाली में रोटी खाए
भौतिकी के रथ पर सवार होकर भी
बच्चा कहानियाँ सुने
भूत से डरे
बन्दूक उसके लिए खिलोना रहे …
रसूखदार हवाई जहाज और सुर्ख जीवन
एक दाढ़ी के अंधे होने में जितना सुरक्षित है
दुनिया का हर बच्चा उतना असुरक्षित है
बम धमाके की खबर के बीच
कोल्ड ड्रिंक का विज्ञापन बोलता है –
‘ डर के आगे जीत है ‘
…
रेत या बर्फ शायद कर भी दे
पर स्कूल में बिखरे पड़े टिफिन और नन्हे बूट
सुर्ख जीवन और दाढ़ी को कभी माफ़ नहीं करेंगे
यह कहते हुए कि भूत बन्दूक से अच्छे होते हैं .
००००
जो करना है अभी करो
जो करना है
अभी करो
रस्सी पर चलती लड़की
नीचे गिर गई है
दुनिया डंडे के ऊपर घूमती
हैट की आँख हो गई है
दुनिया एक छोटा गाँव हो गई है
दुनिया को फोटोस्टेट मशीन में रखकर
बरॉक ओबामा ने
रिड्यूस वाला बटन दबा दिया है
दुनिया के शब्द छोटे हो रहे हैं
दुनिया एक मकान हो रही है
दुनिया एक दूकान हो रही है
दुनिया अमेरिका का शोचालय बन गई है
दुनिया रूमाल के कारखाने में बदल रही है
जो करना है
अभी करो
दुनिया बहुत तेजी से
छोटी होने की प्रक्रिया में है
दुनिया कटे पेड़ का कोटर बन जाएगी
दुनिया बहुत छोटी हो जाएगी
बहुत छोटी दुनिया में
प्यार करती लड़की के
ख़त पकड़े जाएंगे
जो करना है
अभी करो .
००००
कविता, लड़की और सेफ्टी पिन
वह लड़की
नमक को पहरे पर बैठाकर
बिना सांकल वाले गुसलखाने में नहाकर
जब बाल सुखाती है
तो उसके छोटे आँगन की
कच्ची दीवारें टखनों तक दब जाती हैं
गली उसे ताड़ने के लिए
उसके आँगन से ऊँची हो जाती है
वह गिलहरी बन
अपने जामुन के ऊँचे पेड़ पर चढ़ जाती है
उसे रात को सपना आता है
वह जामुन का पेड़ बन गई है
जोंकें उस पर चढ़कर
उसका जामुनीपन चूस रही हैं
सुबह स्वप्नफल पढ़कर
वह पूरे गाँव के बीच खारा समुद्र हो जाती है …
एक जोड़ी आँखें तलाशती
जो उसे आँख से
आँख तक
आँख भर देख सके
वह कविता लिखती है
जिसके बिम्ब झाड़ियों में
फड़फड़ाते पक्षियों को बाहर निकालते हैं
जिसके प्रतीक
मोटी गर्दन की टाई को पकड़ लेते हैं
जिसके भाव
आग और ताव को
अपने प्रेमी के सुर्ख होठों में
दबा कर रख लेते हैं
जिसकी भाषा सफेद कोट पर स्याही छींटती
तालियाँ बजाती है
जिसकी संवेदना
युग के टूटते बटनों और
फ्री होती जिप के बीच मुझे
सेफ्टी पिन के समान लगी –
अफस्पा के शहर में
शिद्धत से चूम कर
आजकल मैंने इसी सेफ्टी पिन को
अपने दिल के साथ लगाया है
लोग मुझे पूछ रहे हैं
अजी क्या हो गया !!!!
‘ग़ालिब’ कोई बतलाए कि हम बतलाए क्या .
००००
कविता के लिए
तुम
रखती हो
हाथ पर हाथ
नदी पर पुल बन जाता है
तुम बोलती हो कुछ
मुझमें कुछ बोलने लगता है
तुम देखती हो मुझे
जैसे मैं दुनिया देखता हूँ
जैसे मैं दुनिया देखना चाहता हूँ
तुम करती हो सिंगार
नक्षत्र चमक उठते हैं
तुम पोंछती हो सिंगार
पृथ्वी मेरी छाती जितनी होकर
मेरी बगल में सो जाती है
…
मेरा विश्वास है
एक सुबह तुम्हारी पीठ पीछे से
सूर्य निकलेगा
तुम पाँव रखोगी मेरे भीतर
और मैं दुनिया का राशिफल बदल दूंगा .
००००
डिस्कित आंगमों
डिस्कित आंगमो !
तुम बताती हो
पिता की तन्दूरनुमा छोटी सी कब्र की विवशता
लकड़ी का कम होना
तुम बताती हो
ना जाने भाई ने क्या सोच
आरी का काम सीख लिया
…
मेरी दोस्त
तुम पढ़ना चाहती हो
मगर लकड़ी तुम्हारा साथ नहीं देती
देखो
मुझे छूओ
मैं लकड़ी हूँ
चलाओ आरी मुझ पर
मैं कागज़ बनूँगा
कलम बनूँगा
तुम्हारे घर का दरवाज़ा – खिड़की बनूँगा
मेरे बुरादे से तुम
पोष में अलाव सेंकना
अपनी गर्महाट से
मैं तुम्हारे हाथ चुमूंगा …
डिस्कित आंगमों !
००००
किताबें डायरियां और कलम
किताबें
बंद होती जा रही हैं
बिना खिड़कियाँ – रोशनदान
वाले कमरों में
डायरियां
खुली हुई फड़फड़ा रही हैं
बीच चौराहों में
कलम
बची है सिर्फ
हस्ताक्षर के लिए .
००००
चिट्ठियां
फोन पर लिखीं चिट्ठियां
फोन पर बांचीं चिट्ठियां
फोन पर पढ़ी चिट्ठियां
अलमारी खोलकर देखा एक दिन
बस कोरा और कोहरा था …
डायल किया फिर
फिर सोची चिट्ठियां
मगर कुछ नंबर
और कुछ आदमी
बदल गए थे
कबूतर मर गए थे .
००००
नमक में आटा
हमने
कम समय में
बहुत बातें की
बहुत बातों में
कम समय लिया
कम समय में
लम्बी यात्राएं की
लम्बी यात्राओं में
कम समय लिया
कम समय में
बहुत समय लिया
बहुत समय में
कम समय लिया
इस तरह हम
कम में ज्यादा
ज्यादा में कम होते गए
हमने होना था
आटे में नमक
मगर हम नमक में आटा होते गए .
००००
साहित्यिक दोस्त
मेरे दोस्त अपनी
उपस्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं
वे गले में काठ की घंटियाँ बाँधते हैं
उन्हें आर पार देखने की आदत है
वे शीशे के घरों में रहते हैं
पत्थरों से डरते हैं
कांच की लड़कियों से प्रेम करते हैं
बम पर बैठकर
वे फूल पर कविताएँ लिखतें हैं
काव्य गोष्ठिओं में खूब हँसते हैं
शराबखानों में गम्भीर हो जाते हैं
यह भी उनकी कला है
अपनी मोम की जेबों में
वे आग रखते हैं .
००००
दांत और ब्लेड
दांत सिर्फ शेर और भेड़िए के ही नहीं होते
चूहे और गिलहरी के भी होते हैं
ब्लेड सिर्फ तुम्हारे पास ही नहीं हैं
मिस्त्री और नाई के पास भी हैं
…
तुम्हारे रक्तसने दांतों को देख
मैंने नमक खाना छोड़ दिया है
मैं दांतों का मुकाबला दांतों से करूँगा
तुम्हारे हाथों में ब्लेड देख
मेरे खून का लोहा खुरदरापन छोड़ चुका
मैं धार का मुकाबला धार से करूँगा
…
बोलो तो सही
तुम्हारी दहाड़ ममिया जाएगी
मैं दांत के साथ दांत बनकर
तुम्हारे मुंह में निकल चुका हूँ
डालो तो सही
अपनी जेब में हाथ
मैं अन्दर बैठा ब्लेड बन चुका हूँ .
००००
पिता
पिता !
उनको इतराने दो
उगाई हुई घास पर
यह घमण्ड खोखला है
घास तो
सींगों और खुरों की है
सींग और खुर हमारे हैं
घास हमारी है
उनको इतराने दो
गमलों पर
मनीप्लांट पर
बोनसाई पर
रंगीन छातों तले
कॉफ़ी के प्यालों पर
रिमोट वाले तालों पर …
पिता !
तुम अपने
आम के पेड़ों पर विश्वास रखो
जिनके हाथों में बूर है
चेहरों में नूर है
जड़ों में अपने खेतों की मिट्टी है
मिट्टी !
वही जिससे तन्दूर की भट्ठी है
उस मिट्टी के तुम मालिक हो
तुम गरीब नहीं अन्नदाता हो .
००००
पत्थर * – १
एक दिन हम
पक कर गिरेंगे
अपने अपने पेड़ से
अगर पत्थर से बच गए तो
एक दिन हम
बिना उछले किनारों से
बहेंगे पूरा
अपनी अपनी नदी से
अगर पत्थर से बच गए तो
एक दिन हम
दाल लगे कोर की तरह
काल की दाढ़ का स्वाद बनेंगे
अगर पत्थर से बच गए तो –
एक दिन हम
एपिटेथ पर लिखे जाएंगे
अपने अपने शब्दों से
अगर पत्थर पा गए तो .
००००
पत्थर * – २
न पक कर गिरी
न पूरा बही
तुझे ले जाने के लिए
काल ने भी कुछ दांत गँवाए
…
चली गई
मेरी दुनिया के तमाम पत्थरों ऊपर
तुम लाल लाल लिखी गई .
००००
कविता लिखने का सही वक़्त
पड़ोसी का झण्डा जला
झोपड़ी को भूखा सुला
बालन पर पानी डलवाया जा रहा है
नावों को जला कर
चाशनी में डूबे दरबार में
लिजलिजे एक राजा का
स्तुतिगान गाया जा रहा है
मार्शल ला लगाकर
राष्ट्रीय पर्व मनाया जा रहा है
दीमक खाए हुए लोग
फेस बुक पर
कुल्हाड़ियों से लड़ने की बातें कर रहे हैं
सच से मुख मोड़ रहे हैं
शिक्षक मंच छोड़ रहे हैं
फोटो शूट करवाते इतिहासकार
प्रेस विज्ञप्तियों को
सबसे प्रामाणिक तथा विश्वस्त
दस्तावेज बता रहे हैं
दुनिया का सारा संगमरमर
उद्घाटन शिलाओं का रूप ले चुका है
देश की सुरक्षा के नाम पर
जननेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं
राजनेता अपने ही बुतों का
अनावरण कर रहे हैं
हम किराये के नारे लगा रहे हैं
गांधी सेवा सदन में
चीन निर्मित वस्तुओं की प्रदर्शनी लगी है
गाँधीवादी कम्युनिकेशन स्किल कोर्स करवा रहे हैं
कम्युनिस्ट वाल मार्ट का मुकाबला
सेल लगाकर कर रहे हैं
धरती की नसबन्दी करवाकर
दुनिया के चंद घराने
मंगल ग्रह पर प्लाट बेच रहे हैं
नदियों को ताला लगा कर
चाबियाँ काले कुओं में फेंक दी गई हैं
सपनों का गर्भपात करवाया जा रहा है
रातें लिंग परिवर्तन करवा रही हैं
मुर्दे और मर्दों में फर्क न महसूसते
औरतें दूध सुखाने के टीके लगवा रही हैं
उधर झुण्ड का सरताज
बच्चों की सामूहिक कब्रें खुदबा रहा है
इधर मीडिया फूलों व हीरों से भरा
सबसे महंगा प्रेम प्रस्ताव दिखा रहा है
आँगन में मुर्दा फूंक
मेरे गाँव के बच्चे चिता की आग सेंक रहे हैं
…
यह कविता लिखने का सही वक़्त है .
००००
कविता की तीसरी आँख
पेड़ पर सुबह
सूरज की जगह
कर्ज़ में डूबी
दो बीघा ठण्डी ज़मीं टंगी थी
नीचे नमक बिखर रहा था …
यह सामने दिख रहा था
पर तुम इसे चीरकर पार सूर्य को
उचक – उचक कर
नमामि – नमामि करते रहे
यह बताते हुए कि
कविता की तीसरी आँख होती है।
००००
सम्पर्क :-
गाँव व डाक – काली बड़ी
तहसील व जिला – साम्बा { 184121 }
दूरभाष – 09419274403
Kamal.j.choudhary@gmail.com
Posted 4th December 2016 by prabhat Ranjan
Labels: kamal jeet choudhary कमलजीत चौधरी