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लवली गोस्वामी की एक प्रेम कविता

लवली गोस्वामी कवियों की भीड़ में कुछ अलग हैं. जीवन दर्शन को शब्दों में बुनने वाली इस कवयित्री की एक प्रेम कविता, अपनी ऐंद्रिकता में भी जिसका रंग बहुत जुदा है. मॉडरेटर

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बतकही

सुनो,

मुझे चूमते हुए तुम

हाँ तुम ही

 

मान सको तो मानना प्रेम वह सबसे बड़ा प्रायश्चित है

जो मैं तुम्हारे प्रति किये गए अपराधों का कर सकती हूँ

 

मेरा तुमसे प्रेम

मेरी देह के अब मेरे पास

“न होने” का प्रायश्चित है

 

**

 

सुनो,

नखरीली शिकायतों वाले तुम

 

बहुत बदमाश पीपल का घना पेड़ हो तुम

छाँव में बैठी जोगनियों को छेड़ने के लिए

पहले उनपर अपने पत्ते गिराते हो

 

फिर अकबका कर जागते हो

जोगनियों के सर

पतझड़ लाने का ठीकरा फोड़ते हो

 

**

 

सुनो,

देर रातों को बिना वजह झगड़ने वाले तुम

 

तुमने क्यों कहा

तुम एक रोतलू बीमार तनावग्रस्त बुढ़िया की आत्मा हो

जिसके पास बैठो तो वह जिंदगी भर मिले दुःखों का गाना गाने लगती है

 

जैसे हम देना पसंद करते थे

पूरे वाक्य के बजाय चंद शब्दों में

मैंने दिया जवाब “तुम भी ”

 

फिर हम लंबे समय तक साथ बैठकर रोये

फिर हँसे, अपने लिए किसी नए को ढूंढ लेने का ताना दिया

और एक – दूसरे को रोतलू कहा

 

**

 

सुनो,

दुनिया की सबसे मासूम नींद सोने वाले तुम

 

मैंने तुम्हें कभी नहीं बताया

कि जब मुझे लगता है मैं हार जाऊँगी

खुद से

ज़माने से

ज़िन्दगी की दुराभिसंधियों से

मैं अपनी स्टडी टेबल से उठकर

तुम्हारा नींद में डूबा चेहरा देखती हूँ

 

तुम्हारी पतली त्वचा के अंदर बह रहे खून का रंग

कंठ के पास  उँचक – बैठ रही तुम्हारी श्वासों की आवृत्ति

मुझसे मुस्कुरा कर कहती है तुम ऐसे नहीं हार सकती

कि हमने वादा किया था

हम साथ रहेंगे सुख में नहीं तो न सही

लेकिन अपने और सबके लिए की गई सुख की आशा में

 

**

सुनो,

महँगी दाल और सब्जी के दौर में

भात और आलू खाकर मोटे होते तुम

 

जिस क्षण प्रेम में चमत्कार न उत्पन्न हो सके

तुम अंतरालों पर भरोसा रखना

तुम्हें प्रतीक्षाएँ मेरे पास लेकर आएँगी

होगी कोई बेवजह सी लगने वाली बेवकूफी भरी बात

जो स्मृति बनकर तुम्हारे मन को अकेलेपन में गुदगुदाएगी

 

कर सको तो बस इतना सा उपकार करना प्रेम पर

अपने अहम् के महल में प्रेम को कभी ईंटों की जगह मत आँकना

मेरे नेह पगे शब्दों को कुर्ते में तमगे की तरह मत टाँकना

 

 

**

 

सुनो,

रसीली बातों और गाढ़ी मीठी

मुस्कान वाले तुम

 

तुम एक बड़ा सा पका रसभरा चीकू हो

इसे ऐसे भी कह सकते हैं

 

तुम्हारे अंदर बहुत सारे पके रसभरे चीकू भरे हैं

जो मेरी ओर देख – देख कर मुस्कराते हैं

 

सुनो ज़रा कम – कम मुस्कुराया करो

ज़ोर चोंच मारने वाली चिड़ियों को

थोड़ा कम -ज़ियादा लुभाया करो

 

**

सुनो,

गर्वीले और तुनकमिजाज़ मन वाले तुम

 

 

हमेशा कुछ बातें याद रखना

जिन्होंने तुम्हारी देह पर चुभोये होंगे

लपलपाते चाकू और बरछियाँ

वे तुम्हारी सुघडता की नेकनामी लेने आएंगे

 

जिन्होंने तुम पर तेज़ाब उड़ेला होगा

वे तुम्हारी जिजीविषा के

परीक्षक होने का ख़िताब पाएंगे

 

जिन्होंने शाख से काट कर

तुम्हें कीचड़ में फेंक दिया होगा

तुम्हारे वहां जड़ जमा लेने पर

वे तुम्हारे पोषक माली कहलायेंगे

 

उनसे बचना जो बहुत तारीफ़ या अतिशय निंदा करें

पुरानी पहचान की किरचें निकाल कर

वर्तमान में इंसान को शर्मिंदा करना

कुंठित लोगों का प्रिय शगल है

 

**

 

सुनो

आधी उम्र बीत जाने के बाद

ज़रा शातिर ज़रा लापरवाह हुए तुम

हाँ तुम ही

 

जाने कैसे पढ़ लेते हो तुम मेरा मन

कि अब नाराज़ होकर उठकर जाना चाहती हूँ मैं

और उठने से ठीक पहले तुम मेरा हाथ पकड़ लेते हो

 

प्रेम में लंबे समय तक होना शातिर बना देता है

जबकि प्रेम के स्थायित्व पर विश्वास होना

प्रेमी को लापरवाह बनाता है

 

**

 

सुनो

लंबी अंतरालों तक गुम हो जाने वाले तुम

 

यह न सोचा करो कि मेरा प्रेम

तुम्हारे सर्वश्रष्ठ होने का प्रतिफल है

यह तुम्हें प्रेम करते हुए

तुम में सर्वश्रेष्ठ पाने का संबल है

 

**

सुनो

कड़वी और जली – भुनी बातों वाले तुम

हाँ कि बस तुम ही

 

कोई गुण तो हरी घाँस की नोक का भी होगा

वरना चुभते नुकीलेपन के माथे

ऐसे कैसे जमी रह जाती मुझ सी तरल

ओस की नाज़ुक़ बूँद.

 

 

 

 
      

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2 comments

  1. “जबकि प्रेम के स्थायित्व पर विश्वास होना
    प्रेमी को लापरवाह बनाता है”
    प्रेम सप्ताह में प्रेम को अभिव्यक्ति देती एक खूबसूरत रचना…

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