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प्रियंका वाघेला की कुछ कविताएँ

मेरे जीमेल अकाउंट में अनजान पतों से आई रचनाओं में छत्तीसगढ़ की प्रियंका वाघेला की कविताओं पर नजर गई. प्रियंका वाघेला, चित्रकार व लेखिका हैं. ‘शैडो ऑफ़ थॉट्स’, ‘प्रिजनर्स ऑफ मून’ व ‘स्नेह संपदा’ इत्यादि फिल्मों के लिये पटकथा लिखी हैं। देश विदेश की विभिन्न कलादीर्घाओं में चित्रों का प्रदर्शन तथा कुछ पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित हुई हैं। आज जानकी पुल पर पहली बार उनकी कवितायें. ज्यादा तो आप पढ़कर बताएँगे लेकिन एक ताजगी है, सोच का एक अलग आयाम. किसने कहा था कि कविता चिन्तन का ही एक ढंग है- मॉडरेटर

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चित्रकार

एक गहरी भूरी रेखा काली में बदलती हुई

काली भूरी रेखाओं के बीच झांकता वह,

बिखरे हुए अणुओं को समेट,

अस्तित्व के आकार को टटोलता

निःशब्द की रेखाओं के बीच अपने आकार को ढूंढ रहा है,

चारो ओर उसे छूकर गुजरते

समय के आकार प्रतिबिम्ब

उसके द्वारा रचे गए आकारों की तरह लग रहें हैं

क्या वह इनके बीच स्वयं को ढूंढ पायेगा ?

या फिर वह स्वयं इनमें से एक होकर

हमारे आसपास से बिना किसी पदचाप के गुजर जाएगा |

 

सफेद रंगोली

पीले रंग पर बैठी ..वह केवल फूल के बारे में जानती थी

फूल का आकार- उसका आँगन था !

निःसंदेह वह एक चिड़िया थी

पता नहीं क्यूँ ! माँ उसे गुड़िया पुकारा करती !!

माँ फूल नहीं तोड़ा करती थी

वह आँगन लीपती ..और उसपर सफ़ेद रंग से –

रंगोली बनाती … लक्छमी के पदचिन्हों वाली !

घर में लक्छमी नहीं थी |

वह सफ़ेद रंग के आस- पास, देर तक बनी रहती

और दूसरे रंग उसकी राह देखते ..

नन्ही चिड़िया थककर रंगों की गोद में सो जाती |

माँ उसदिन रंगीन चूड़ियाँ पहनती |

दीयों से सजा आँगन ..सोने सा दिपदिपाता !!

आँगन के बाहर का अँधेरा – गुड़िया नहीं जानती थी

उसका आकाश आँगन के आकार का था

माँ आँगन के बाहर देख सकती थी !

माँ देख रही थी …रंग उसे ले जायेंगे

माँ ने अँधेरे के आकार पर -सफ़ेद रांगोली डाल दी !

चिड़िया तभी से अँधेरे का आकार नहीं जानती है ..

उसके आँगन का आकार – रंगों से सजा हुआ है

सफ़ेद रांगोली और लक्छमी के पदचिन्हों के साथ खड़ी माँ

उसे छूटे हुए घर के आकार सी लगती है

माँ अब घर के आँगन में –

नन्ही चिड़ियों के लिये दाने डालकर छिप जाती है

गुड़िया चिड़िया के आकार में रोज़ घर आती है |

 

तुम

विषाद के गहन अन्धकार में तुम्हारी हँसी

जैसे चाँद काले बादलों से

आँख मिचौली हो खेल रहा

तुम ठहरने ही नहीं देते

मन के किसी कोने में

निराश कर देने वाला मन

उछलकर बाहर आ जाता है –

जीवन मुझसे !

जैसे तुम्हारी आहट पर दौड़ पड़ती हूँ

घर की दहलीज़ तक |

तुम्हारे आ जाने से –

मन के खिले कोने का पराग बरस जाता है

चारों ओर छाये वसंत की तरह

एक खुशबू होती है जिसे

महसूस करता है मन

और खिल उठता है सब कुछ

बस अभी ही थमी बारिश के बाद –

 

छाई हरियाली की तरह

तुम पे बरस पड़ती हूँ जब मैं

तुम बरस जाते हो

पहली बारिश की तरह

नहीं रहने देते

तप्त प्यासी बंजर ज़मीन का

सूखा एक भी कोना

जो सबसे अधिक जलता है

सबसे अधिक खिलता है

बहता है, डूबता है, उबरता है

और तुम पर आकर ही थमता है

गहन अंधकार को झकझोरते

दीप की तरह

तुम नहीं रहने देते

मुरझाये अतीत का बाकी कुछ भी –

सार्थक वर्तमान की तरह

 

लक्ष्मण – रेखा

मेरी पीठ पर घना अँधकार था

और चेहरा सूरज की ओर

मैं अँधकार के बारे मे बहुत ज़्यादा नही सोच रही थी

और वह बेफिक्र था यह सोचकर की –

मैं कोई प्रतिवाद नही कर रही

रौशनी की किरणें मेरे अस्तित्व में उतर चुकीं थीं

और अंधकार अब भी अंधेरे में था

मै दहलीज़ पर थी और अब –

दोनों को एक साथ महसूस कर रही थी

मैंने तय किया कि,एक छोटे बच्चे की तरह

दहलीज़ को केवल एक रेखा मानते हुए –

उस पार जाकर देखूँ !

और मैं रौशनी का हिस्सा हो गई

अँधेरा चुपचाप उसपार खड़ा देखता रहा

वह दहलीज़ अंधकार की लक्ष्मण रेखा थी -मेरी नही |

 

नदी

उसने सोचा वह नदी हो जाये

कल -कल कर बहती,

मोड़ों पर ठिठके बिना राह बनाती जाये

कुछ पदचिन्हों से हताहत, किनारे खामोश रहे |

वे लौटे हैं, पितरों को एक नया पिण्ड दे

सोचते है कि मुक्त हुए अपने हिस्से का तर्पण दे किन्तु ,

नदी की कोख में है अब, मृत पिण्डों का डेरा

पोषित हो रहे निरंतर – आदम के कुंम्भ स्नान से

जन्म जन्मांतर के उतारे हुए पाप और कर्मकाण्ड से |

गर्भकाल पूरा होगा – जन्म लेगा वह

जिससे पीछा छुड़ा आये थे

अंशज होगा तुम्हारा ही

क्रमवार लौटेगा तुम तक |

जो मुक्त करती आ रही थी अभिशाप से

जननी होगी एक अभिशप्त मानव की

गंगा अब एक नाम है, नदी नहीं

कहते है स्वर्ग को लौट गई

जो दिखाई देती है वह – वह स्त्री है,

जो कभी नदी हो जाना चाहती थी |

नदी अपने उदगम की ओर नही लौटती है कभी

अपनी यात्रा पूर्ण कर सागर हो जाती है |

कवयित्री संपर्क: Priyankawaghela@gmail.com

 
      

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2 comments

  1. It’s hard to find experienced people for this subject, but you sound like
    you know what you’re talking about! Thanks

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